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Sunday 14 June 2009

‘‘तानाशाही अनुशासन और सुझाव देना अनुशासन हीनता’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


पहले कल्याण सिंह, फिर जसबन्त सिंह और अब यशवन्त सिन्हा। भाई राजनाथ सिंह क्या हो रहा है ये?
आपकी तानाशाही अनुशासन और अपनी बात कहना अनुशासन हीनता।
बहुत अच्छी परिभाषा है।
राजनाथ सिंह जी आपको तो याद ही होगा कि फील-गुड के नारे की जनता ने किस तरह हवा निकाल दी थी। इसके बाद भी आपको और आपकी पार्टी के चाटुकारों को सद्-बुद्धि नही आयी। सीधे चुनाव के मैदान में आडवानी जी को उतार दिया प्रधानमन्त्री का कैण्डीडेट बना कर। काश चुनाव से पहले सर्वेक्षण कर लिया होता कि श्री आडवानी जी को भारत की जनता प्रधानमन्त्री के रूप में चाहती भी है या नही।
आख़िर चुनाव सम्पन्न हुए और असलियत सामने आ गयी। परन्तु राजनाथसिंह अब भी अपनी गल्ती सुधारने के मूड में नही लगते हैं। एक से बढ़कर एक दिग्गज इस्तीफे देते जा रहे हैं और आप बड़े मजे से इनको स्वीकार करते जा रहे हो।
मान्यवर, आप तो इतने बड़े पदों पर मुश्किल से ही पदासीन रहे होंगे। जितने कि ये पार्टी छोड़कर जाने वाले लोग रहे हैं । इनमें से किसी ने तो कई बार उत्तर प्रदेश की कमान सम्भाली है। कोई वित्तमन्त्री रहा है और कोई विदेश मन्त्री के पद को सुशोभित कर चुका है।
कहने का तात्पर्य यह है कि ये कोई बात या सुझाव दें तो अनुशासन हीनता और आपके कारण पार्टी की जो शर्मनाक पराजय हुई है, उसके खिलाफ पश्चाताप तो दूर आप अपनी तानाशाही को अनुशासन का नाम दे रहे हैं।
लोग तो अब यह भी कह रहे हैं कि राजनाथ सिंह बनाम भारतीय जनता पार्टी के ताबूत की आखिरी कील।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

4 comments:

  1. त्वरित आलेख के लिये बधाई.

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  2. मयंक जी क्या खूब कहा आपने सटीक लेख है बधाई

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  3. सच लिखा है आपने..देखिये अब इस पार्टी का क्या होता है.
    आप से अनुरोध है कि समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर जरूर देंखे....

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