आपकी तानाशाही अनुशासन और अपनी बात कहना अनुशासन हीनता।
बहुत अच्छी परिभाषा है।
राजनाथ सिंह जी आपको तो याद ही होगा कि फील-गुड के नारे की जनता ने किस तरह हवा निकाल दी थी। इसके बाद भी आपको और आपकी पार्टी के चाटुकारों को सद्-बुद्धि नही आयी। सीधे चुनाव के मैदान में आडवानी जी को उतार दिया प्रधानमन्त्री का कैण्डीडेट बना कर। काश चुनाव से पहले सर्वेक्षण कर लिया होता कि श्री आडवानी जी को भारत की जनता प्रधानमन्त्री के रूप में चाहती भी है या नही।
आख़िर चुनाव सम्पन्न हुए और असलियत सामने आ गयी। परन्तु राजनाथसिंह अब भी अपनी गल्ती सुधारने के मूड में नही लगते हैं। एक से बढ़कर एक दिग्गज इस्तीफे देते जा रहे हैं और आप बड़े मजे से इनको स्वीकार करते जा रहे हो।
मान्यवर, आप तो इतने बड़े पदों पर मुश्किल से ही पदासीन रहे होंगे। जितने कि ये पार्टी छोड़कर जाने वाले लोग रहे हैं । इनमें से किसी ने तो कई बार उत्तर प्रदेश की कमान सम्भाली है। कोई वित्तमन्त्री रहा है और कोई विदेश मन्त्री के पद को सुशोभित कर चुका है।
कहने का तात्पर्य यह है कि ये कोई बात या सुझाव दें तो अनुशासन हीनता और आपके कारण पार्टी की जो शर्मनाक पराजय हुई है, उसके खिलाफ पश्चाताप तो दूर आप अपनी तानाशाही को अनुशासन का नाम दे रहे हैं।
लोग तो अब यह भी कह रहे हैं कि राजनाथ सिंह बनाम भारतीय जनता पार्टी के ताबूत की आखिरी कील।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
त्वरित आलेख के लिये बधाई.
ReplyDeleteमयंक जी क्या खूब कहा आपने सटीक लेख है बधाई
ReplyDeletehakeekat bayan kar di
ReplyDeleteसच लिखा है आपने..देखिये अब इस पार्टी का क्या होता है.
ReplyDeleteआप से अनुरोध है कि समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर जरूर देंखे....