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Sunday 29 December 2013

"कैसे उतरें पार?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

लिए पुरानी अपनी नौका, 
टूटी सी पतवार,
बताओ कैसे उतरें पार?

देख रवानी लहरों की, 
हमने मानी है हार,
बताओ कैसे उतरें पार?

Saturday 9 November 2013

"उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस-9 नवम्बर)

उत्तराखण्ड राज्य स्थापना दिवस
उत्तर भारत में स्थित एक राज्य है जिसका निर्माण ९ नवम्बर २००० को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात  भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। सन २००० से २००६ तक यह उत्तराञ्चल के नाम से जाना जाता था। जनवरी २००७ में स्थानीय लोगों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए राज्य का आधिकारिक नाम बदलकर उत्तराखण्ड कर दिया गया।[4] राज्य की सीमाएँ उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल से लगी हैं। पश्चिम मेंहिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश इसकी सीमा से लगे राज्य हैं। सन २००० में अपने गठन से पूर्व यह उत्तर प्रदेश का एक भाग था। पारम्परिक हिन्दू ग्रन्थों और प्राचीन साहित्य में इस क्षेत्र का उल्लेख उत्तराखण्ड के रूप में किया गया है। हिन्दी और संस्कृत में उत्तराखण्ड का अर्थ उत्तरी क्षेत्र या भाग होता है। राज्य में हिन्दू धर्म की पवित्रतम और भारत की सबसे बड़ी नदियों गंगा और यमुना के उद्गम स्थल क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री तथा इनके तटों पर बसे वैदिक संस्कृति के कई महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थान हैं।
      देहरादून, उत्तराखण्ड की अन्तरिम राजधानी होने के साथ इस राज्य का सबसे बड़ा नगर है। गैरसैण नामक एक छोटे से कस्बे को इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भविष्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है किन्तु विवादों और संसाधनों के अभाव के चलते अभी भी देहरादून अस्थाई राजधानी बना हुआ है।[5][6]राज्य का उच्च न्यायालय नैनीताल में है।
           राज्य सरकार ने हाल ही में हस्तशिल्प और हथकरघा उद्योगों को बढ़ावा देने के लिये कुछ पहल की हैं। साथ ही बढ़ते पर्यटन व्यापार तथा उच्च तकनीकी वाले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक कर योजनायें प्रस्तुत की हैं। राज्य में कुछ विवादास्पद किन्तु वृहत बाँध परियोजनाएँ भी हैं जिनकी पूरे देश में कई बार आलोचनाएँ भी की जाती रही हैं, जिनमें विशेष है भागीरथी-भीलांगना नदियों पर बनने वाली टिहरी बाँध परियोजना। इस परियोजना की कल्पना १९५३ मे की गई थी और यह अन्ततः २००७ में बनकर तैयार हुआ। उत्तराखण्ड, चिपको आन्दोलन के जन्मस्थान के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमंत्री और उनके कार्यकाल
९ नवम्बर २००० से २९ अक्तूबर २००१
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३० अक्तूबर २००१ से १ मार्च २००२
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२ मार्च २००२ से ७ मार्च २००७
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८ मार्च २००७२ से ३ जून २००९
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०५- रमेश पोखरियाल निशंक
२४ जून २००९ से १० सितम्बर २०११
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१० सितम्बर २०११ से १३ मार्च २०१२
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०५- विजय बहुगुणा१३ मार्च २०१२
अभी तक
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उत्तराखण्ड के श्री राज्यपाल
सुरजीत सिंह बरनाला९ नवम्बर २०००७ जनवरी २००३
सुदर्शन अग्रवाल८ जनवरी २००३२८ अक्टूबर २००७
बनवारी लाल जोशी२९ अक्टूबर २००७५ अगस्त २००९
मार्गरेट अल्वा६ अगस्त २००९१४ मई २०१२
अज़ीज़ कुरैशी१५ मई २०१२पदधारक
उत्तराखण्ड की नदियाँ
      उत्तराखण्ड की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उत्तराखण्ड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं। हिन्दुओं की पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिणी श्रेणियाँ हैं। गंगा का प्रारम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी, भागीरथी के रुप में गौमुख स्थान से २५ कि.मी. लम्बेगंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रुप में पहचानी जाती है। यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र बन्दरपूँछ के पश्चिमी यमनोत्री हिमनद से है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य सहायक हैं। राम गंगा का उद्गम स्थल तकलाकोट के उत्तर पश्चिम में माकचा चुंग हिमनद में मिल जाती है। सोंग नदी देहरादून के दक्षिण पूर्वी भाग में बहती हुई वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है। इनके अलावा राज्य में काली, रामगंगाकोसीगोमतीटोंसधौली गंगा, गौरीगंगा, पिंडर नयार(पूर्व) पिंडर नयार (पश्चिम) आदि प्रमुख नदियाँ हैं।

मण्डल और जिले


उत्तराखण्ड में १३ जिले हैं जो दो मण्डलों में समूहित हैं: 

कुमाऊँ मण्डल 
और गढ़वाल मण्डल।
कुमाऊँ मण्डल के छः जिले हैं
अल्मोड़ा जिला
उधम सिंह नगर जिला
चम्पावत जिला
नैनीताल जिला
पिथौरागढ़ जिला
बागेश्वर जिला

गढ़वाल मण्डल के सात जिले हैं
उत्तरकाशी जिला
चमोली गढ़वाल जिला
टिहरी गढ़वाल जिला
देहरादून जिला
पौड़ी गढ़वाल जिला
रूद्रप्रयाग जिला
हरिद्वार जिला
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उत्तराखण्ड की जनसंख्या
२०११ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या १,०१,१६,७५२ है 
२००१ की जनगणना के अनुसार, उत्तराखण्ड की जनसंख्या ८४,८९,३४९ थी, जिसमें 
४३,२५,९२४ पुरुष और ९१,६३,८२५ स्त्रियाँ थीं। 
इसमें सर्वाधिक जनसंख्या राजधानी देहरादून की ५,३०,२६३ है।
२०११ की जनगणना तक जनसंख्या का १ करोड़ तक हो जाने का अनुमान है। 
मैदानी क्षेत्रों के जिले पर्वतीय जिलों की अपेक्षा अधिक जनसंख्या घनत्व वाले हैं। 
राज्य के मात्र चार सर्वाधिक जनसंख्या वाले जिलों में 
राज्य की आधे से अधिक जनसंख्या निवास करती हैं। 
जिलों में जनसंख्या का आकार २ लाख से लेकर अधिकतम १४ लाख तक है। 
राज्य की दशकवार वृद्धि दर १९९१-२००१ में १९.२ प्रतिशत रही। 
उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को कुमाऊँनी या गढ़वाली कहा जाता है 
जो प्रदेश के दो मण्डलों कुमाऊँ और गढ़वाल में रहते हैं। 
एक अन्य श्रेणी हैं गुज्जर, जो एक प्रकार के चरवाहे हैं 
और दक्षिण-पश्चिमी तराई क्षेत्र में रहते हैं।
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प्रमुख नगर और जनसंख्या
देहरादून         4,47808
हरिद्वार         1,75,010
हल्दवानी        1,29,140
रुड़की          97,064
काशीपुर        92,778
रुद्रपुर          88,720
ऋषिकेश      59,771
रामनगर        47,099
पिथौरागढ़        41,157
जसपुर      39,048
नैनीताल      38,559
किच्छा     30,517
मसूरी         26,069
कोटद्वार          25,400
पौड़ी              24,742
श्रीनगर            19,861
गोपेश्वर         19,865
रानीखेत           19,049
खटीमा            14,378
जोशीमठ          13,202
बागेश्वर         7,803
(उपरोक्त आँकड़े 2001 की जनगणना पर आधारित हैं)
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उत्तराखण्ड की अर्थव्यवस्था
राज्य की अर्थ-व्यवस्था मुख्यतः कृषि और संबंधित उद्योगों पर आधारित है। उत्तराखण्ड की लगभग ९०% जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। राज्य में कुल खेती योग्य क्षेत्र ७,८४,११७ हेक्टेयर (७,८४१ किमी²) है। इसके अलावा राज्य में बहती नदियों के बाहुल्य के कारण पनविद्युत परियोजनाओं का भी अच्छा योगदान है। राज्य में बहुत सी पनविद्युत परियोजनाएं हैं जिनक राज्य के लगभग कुल ५,९१,४१८ हेक्टेयर कृषि भूमि में सिंचाई में भी योगदान है। राज्य में पनबिजली उत्पादन की भरपूर क्षमता है। यमुना, भागीरथी, भीलांगना,अलकनन्दामन्दाकिनीसरयू, गौरी, कोसी और काली नदियों पर अनेक पनबिजली संयंत्र लगे हुए हैं, जिनसे बिजली का उत्पादन हो रहा है। राज्य के १५,६६७ गांवों में से १४,४४७ (लगभग ९२.२२%) गांवों में बिजली है।इसके अलावा उद्योग का एक बड़ा भाग वन संपदा पर आधारित हैं। राज्य में कुल ५४,०४७ हस्तशिल्प उद्योग क्रियाशील हैं।
उत्तराखण्ड का सकल घरेलू उत्पाद 
वर्ष २००४ के लिए वर्तमान मूल्यों के आधार पर अनुमानित २८०.३२ अरब रुपए (६ अरब डॉलर) था। उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना यह राज्य, पुराने उत्तर प्रदेश के कुल उत्पादन का ८% उत्पन्न करता है। २००३ की औद्योगिक नीति के कारण, जिसमें यहाँ निवेश करने वाले निवेशकों को कर राहत दी गई है, यहाँ पूँजी निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सिडकुल यानि स्टेट इन्फ़्रास्ट्रक्चर एण्ड इण्डस्ट्रियल डिवेलपमण्ट कार्पोरेशन ऑफ उत्तराखण्ड लि. ने उत्तराखण्ड राज्य के औद्योगिक विकास के लिये राज्य के दक्षिणी छोर पर सात औद्योगिक भूसंपत्तियों की स्थापना की है[23], जबकि ऊचले स्थानों पर दर्जनों पनबिजली बाँधों का निर्माण चल रहा है। फिर भी, पहाड़ी क्षेत्रों का विकास अभी भी एक चुनौती बना हुआ है क्योंकि लोगों का पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन जारी है।

उत्तराखण्ड में चूना पत्थर, राक फास्फेट, डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, तांबा, ग्रेफाइट, जिप्सम आदि के भण्डार हैं। राज्य में ४१,२१६ लघु औद्योगिक इकाइया स्थापित हैं, जिनमें लगभग ३०५.५८ करोड़ की परिसंपत्ति का निवेश हुआ है और ६३,५९९ लोगों को रोजगार प्राप्त है। इसके अतिरिक्त १९१ भारी उद्योग स्थापित हैं, जिनमें २,६९४.६६ करोड़ रुपयों का निवेश हुआ है। १,८०२ उद्योगों में ५ लाख लोगों को कार्य मिला हुआ है। वर्ष २००३ में एक नयी औद्योगिक नीति बनायी गई जिसके अन्तर्गत्त निवेशकों को कर में राहत दी गई थी, जिसके कारण राज्य में पूंजी निवेश की एक लहर दौड़ गयी।
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उत्तराखण्ड के हवाई अड्डे
  • जॉलीग्रांट हवाई अड्डा (देहरादून): जॉलीग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून हवाई अड्डे के नाम से भी जाना जाता है। यह देहरादून से २५ किमी की दूरी पर पूर्वी दिशा में हिमालय की तलहटियों में बसा हुआ है। बड़े विमानों को उतारने के लिए इसका हाल ही में विस्तार किया गया है। पहले यहाँ केवल छोटे विमान ही उतर सकते थे लेकिन अब एयरबसए३२० और बोइंग ७३७ भी यहाँ उतर सकते हैं।[25]
  • चकराता वायुसेना तलः चकराता वायुसेना तल चकराता में स्थित है, जो देहरादून जिले का एक छावनी कस्बा है। यह टोंस और यमुना नदियों के मध्य, समुद्र तल से १,६५० से १,९५० मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
  • पंतनगर हवाई अड्डा (नैनी सैनी, पंतनगर)
  • उत्तरकाशी
  • गोचर (चमोली)
  • अगस्त्यमुनि (हेलिपोर्ट) (रुद्रप्रयाग)
  • पिथौरागढ़

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उत्तराखण्ड के बसअड्डे
राज्य के प्रमुख बस अड्डे हैं:
  • देहरादून
  • हरिद्वार
  • हल्द्वानी
  • रुड़की
  • रामनगर
  • कोटद्वार
  • टनकपुर (खटीमा इसी के अन्तर्गत आता है)
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उत्तराखण्ड के पर्यटन स्थल
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उत्तराखण्ड की बोलियाँ

मध्य पहाड़ी की दो बोलियाँ कुमाऊँनी और गढ़वाली
क्रमशः कुमाऊँ और गढ़वाल में बोली जाती हैं। 
जौनसारी और भोटिया दो अन्य बोलियाँ, जनजाति समुदायों द्वारा 
क्रमशः पश्चिम और उत्तर में बोली जाती हैं। 
लेकिन हिन्दी पूरे प्रदेश में बोली और समझी जाती है 
और नगरीय जनसंख्या अधिकतर हिन्दी ही बोलती है।
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उत्तराखण्ड के हिम शिखर
       राज्य के प्रमुख हिमशिखरों में गङ्गोत्री (६६१४ मी.), दूनगिरि (७०६६), बन्दरपूँछ (६३१५), केदारनाथ (६४९०), चौखम्बा (७१३८), कामेट (७७५६), सतोपन्थ (७०७५), नीलकण्ठ (५६९६), नन्दा देवी (७८१८), गोरी पर्वत (६२५०), हाथी पर्वत (६७२७), नंदा धुंटी (६३०९), नन्दा कोट (६८६१) देव वन (६८५३), माना(७२७३), मृगथनी (६८५५), पंचाचूली (६९०५), गुनी (६१७९), यूंगटागट (६९४५) हैं।

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उत्तराखण्ड के  हिमनद

            राज्य के प्रमुख हिमनदों में गंगोत्रीयमुनोत्री, पिण्डर, खतलिगं, मिलम, जौलिंकांग, सुन्दर ढूंगा इत्यादि आते हैं।

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उत्तराखण्ड की झीलें

राज्य के प्रमुख तालों व झीलों में गौरीकुण्ड, रूपकुण्ड, नन्दीकुण्ड, डूयोढ़ी ताल, जराल ताल, शहस्त्रा ताल, मासर ताल, नैनीतालभीमताल, सात ताल, नौकुचिया ताल, सूखा ताल, श्यामला ताल, सुरपा ताल, गरूड़ी ताल, हरीश ताल, लोखम ताल, पार्वती ताल, तड़ाग ताल (कुमाऊँ क्षेत्र) इत्यादि आते हैं

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उत्तराखण्ड के दर्रे

उत्तराचंल के प्रमुख दर्रों में बरास- ५३६५ मी.,(उत्तरकाशी), माना - ६६०८ मी.(चमोली), नोती-५३००मी. (चमोली), बोल्छाधुरा- ५३५३मी.,(पिथौरागड़), कुरंगी-वुरंगी-५५६४ मी.( पिथौरागड़), लोवेपुरा-५५६४ मी. (पिथौरागड़), लमप्याधुरा-५५५३ मी. (पिथौरागढ़), लिपुलेश-५१२९ मी. (पिथौरागड़), उंटाबुरा, थांगला, ट्रेलपास, मलारीपास, रालमपास, सोग चोग ला पुलिग ला, तुनजुनला, मरहीला, चिरीचुन दर्रा आते हैं।

Wednesday 9 October 2013

♥ समाचार ♥ ‘... दे देंगे जान वतन पर कश्मीर नहीं देंगे।’ (दैनिक अमर उजाला)

दैनिक अमर उजाला 
दिनांक 04-10-2013 
पृष्ठ-6, कॉलम 7-8 
नैनीताल-ऊधमसिंह संस्करण
♥ समाचार 
‘... दे देंगे जान वतन पर कश्मीर नहीं देंगे।
खटीमा। संस्कार भारती के तत्वावधान में गांधी जयंती के अवसर पर आयोजित काव्य मंच में कवियों और साहित्यकारों ने अपने कविता पाठ से उपस्थित जनों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
राणा प्रताप इंटर कालेज में डा. रुप चंद्र शास्त्री 'मयंक' की अध्यक्षता में आयोजित काव्य मंच का शुभारंभ 
अनिल कुमार कपिल ने मां सरस्वती के चित्र के सम्मुख दीप प्रज्जवलित कर किया। शहजादा अवसार सिद्दीकी ने कहा अहसास किसी दर्द का होने नहीं देता, बेवजह मां को मैं रोने नहीं देता। बेटी को न ले जाये अंधेरों के लुटेरे, ये खौफ किसी बाप को सोने नहीं देता। गेंदालाल शर्मा निर्जन ने अपने कविता पाठ में ‘...सतत परिश्रम करें तो भारत विश्व गुरु बन जाए।डा. तारकेश्वर ने कहा सत्य अहिंसा का पुजारी आज भी यह कह रहा, अपना लो मुझे आज ऐसा ही कुछ कह रहा।दयाशंकर शर्मा ने कहा सत्य अहिंसा भातृभाव के जीवन भर आदी थे, गीता के पालक राष्ट्रपिता वह हमारे गांधी थे।जीएस भटनागर ने कश्मीर के मुद्दे पर कहा नापाक इरादों को हम पलने नहीं देंगे, दे देंगे जां वतन पर कश्मीर नहीं देंगे। देवदत्त प्रसून ने नेताओं पर कटाक्ष करते हुए कहा कुकुरमुत्तों से उगे नेता आज अनेक, गांधी जैसा कौन अब चले लकुटिया टेक। डा. रूप चंद्र शास्त्री ने कहा सत्य अहिंसा का पथ जिसने दुनिया को दिखलाया, सारे जग से न्यारा गांधी अपना वापू कहलायाविभूति ने महंगाई पर कहा महंगाई इतना बढ़ी नहीं ठिकाना आज करती क्या सरकार है लिए है अपना साज
इस अवसर पर डा. एम इलियास सिद्दीकी, रामचंद्र प्रेमी, एसबी मिश्रा, गीताराम बंसल, डा. सिद्धेश्वर सिंह, खेम सिंह सामंत, हरीश जोशी, हरीश गंगवार, साकेत शाही, संतोष अग्रवाल, हामिद हुसैन हामिद, कृष्णा नंद भट्ट आदि मौजूद थे। ब्यूरो

Friday 30 August 2013

"पुस्तक समीक्षा प्रारब्ध" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अभिव्यक्तियों का उपवन है "प्रारब्ध"
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     कुछ समय पूर्व मुझे श्रीमती आशा लता सक्सेना के काव्यसंकलन प्रारब्ध की प्रति डाक से मिली थी। आज इसको बाँचने का समय मिला तो प्रारब्ध काव्यसंग्रह के बारे में कुछ शब्द लिखने का प्रयास मैंने किया है।
     श्रीमती आशा लता सक्सेना जी से कभी मेरा साक्षात्कार तो नहीं हुआ लेकिन पुस्तकों के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन देख कर मेरा मन गदगद हो उठा। आज साहित्य जगत में कम ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपनी लेखनी को पुस्तक का रूप दिया है।    
     इस कृति के बारे में शासकीय संस्कृत महाविद्यालय की हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. रंजना सक्सेना लिखती हैं -
     श्रीमती आशा सक्सेना का काव्य संकलन प्रारब्ध सुखात्मक और दुखात्मक अनुभूति से उत्पन्न काव्य है। पहले अनकहा सचफिर अन्तःप्रवाह और अब प्रारब्ध’... ऐसा प्रतीत होता है मानो कवयित्री ने उस सब सच को कह डाला, जो चाह कर भी पहले कभी कह न पायी हों और अब कहने लगी तो वह प्रवाह अन्तःकरण से निरन्तर बह निकला। फिर अपने भाग्य पर कुछ क्षण के लिए ठिठक कर रह गयी और अब...लेखनी को एक हिम्मत-एक आत्मविश्वास के साथ अपना लक्ष्य मिल गया है जो निरन्तर ह्रदय से अद्भुत विचारों और भावनाओं को गति देता रहेगा।"
    डॉ.शशि प्रभा ब्यौहार, प्राचार्य-शासकीय संस्कृत महाविद्यालय, इन्दौर ने अपने शुभाशीष देते हुए पुस्तक के बारे में लिखा है- 
    "मैं हूँ एक चित्रकार रंगों से चित्र सजाता हूँ। 
हर दिन कुछ नया करता हूँ आयाम सृजन का बढ़ता है।
      आशा लता सक्सेना का लेखकीय सरोकार सृजन रंगों से सराबोर जीवन यथार्थ की इसी पहचान से जुड़ा है..."प्रारब्ध" काव्य संग्रह की रचनाएँ केवल गृह, एकान्त, स्त्रीजीवन के ब्योरे मात्र नहीं हैं वरन् वे सच्चाइयाँ हैं जिन्हें बार-बार नकारा जाता है।... संग्रह का मूल स्वर आस्था, जिजीविषा है जीवन के पक्षधर इन रचनाओं में प्रत्येक से जुड़ने का सार्थक भाव है।...
     श्रीमती आशा लता सक्सेना ने अपने निवेदन में भी यह स्पष्ट किया है- 
    मैं एक संवेदवशील भावुक महिला हूँ। आस-पास की छोटी-छोटी घटनाएं भी मुझे प्रभावित करती हैं। मन में उमड़ते विचारों और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के लिए कविता लेखन को माध्यम बनाया है।
अब तक लगभग 630 कविताएँ लिखी हैं। सरल और बोधगम्य भाषा में अपने विचार लिपिबद्ध किये हैं। ....मुझेघर से जो सहयोग और प्रोत्साहन मिला है वह अतुल्य है। उनके सहयोग के कारण ही मैं कुछ कर पायी हूँ। ...."
   "प्रारब्ध" में अपनी वेदना का स्वर मुखरित करते हुए कवयित्री कहती है-
मैं नहीं जानती
क्यों तुम्हें समझ नहीं पाती
तुम क्या हो क्या सोचते हो
क्या प्रतिक्रिया करते हो..."
      कवयित्री आगे कहती है-
महकता गुलाब और गुलाबी रंग
सबको अच्छा लगता है
और सुगन्ध
उसकी साँसों में भरती जाती है
ऐ गुलाब तुम
कमल से ना हो जाना
जो कीचड़ में खिलता है
पर उससे लिप्त नहीं होता..."
     कवयित्री के इस काव्य में कुछ कालजयी कविताओं का भी समावेश है जो किसी भी परिवेश और काल में सटीक प्रतीत होते हैं-
उड़ चला पंछी
कटी पतंग सा,
समस्त बन्धनों से हो मुक्त
उस अनन्त आकाश में
छोड़ा सब कुछ यहीं
यूँ ही इस लोक में
बन्द मुट्ठी लेकर आया था..."
    कवयित्री अपनी एक और कविता में कहती हैं-
दीपक ने पूछा पतंगे से
मुझमें ऐसा क्या देखा तुमने
जो मुझ पर मरते मिटते हो
जाने कहाँ छिपे रहते हो
पर पाकर सान्निध्य मेरा
तुम आत्म हत्या क्यों करते हो..."
     श्रीमती आशा लता सक्सेना ने इस काव्य संकलन में कुछ क्षणिकाओं को भी समाहित किया है-
ज़ज़्बा प्रेम का
जुनून उसे पाने का
कह जाता बहुत कुछ
उसके होने का..."
    विश्वास के प्रति अपनी वेदना प्रकट करते हुए कवयित्री कहती है-
ऐ विश्वास जरा ठहरो
मुझसे मत नाता तोड़ो
जीवन तुम पर टिका है
केवल तुम्हीं से जुड़ा है
यदि तुम ही मुझे छोड़ जाओगे
अधर में मुझको लटका पाओगे..."
       “प्रारब्ध” की शीर्षक रचना के बारे में कवयित्री आशा लता सक्सेना लिखतीं है-
“जगत एक मैदान खेल का
हार जीत होती रहती
जीतते-जीतते कभी
पराजय का मुँह देखते
विपरीत स्थिति में कभी होते
विजय का जश्न मनाते
राजा को रंक होते देखा
रंक कभी राजा होता...!"
      समीक्षा की दृष्टि से मैं कृति के बारे में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि इस काव्य संकलन में मानवता, प्रेम, सम्वेदना जिज्ञासा मणिकांचन संगम है। कृति पठनीय ही नही अपितु संग्रहणीय भी है और कृति में अतुकान्त काव्य का नैसर्गिक सौन्दर्य निहित है। जो पाठकों के हृदय पर सीधा असर करता है।
      श्रीमती आशा लता सक्सेना द्वारा रचित इस की प्रकाशक स्वयं श्रीमती आशा लता सक्सेना ही है। हार्डबाइंडिंग वाली इस कृति में 192 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य मात्र 200/- रुपये है। सहजपठनीय फॉंण्ट के साथ रचनाएँ पाठकों के मन पर सीधा असर करती हैं।
       मुझे पूरा विश्वास है कि प्रारब्धकाव्यसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम है। इसके साथ ही मुझे आशा है कि प्रारब्धकाव्य संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा।
      प्रारब्धश्रीमती आशा लता सक्सेना के पते सी-47, एल.आई.जी, ऋषिनगर, उज्जैन-456 010 से प्राप्त की जा सकती है। कवयित्री से दूरभाष-(0734)2521377 से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार 
टनकपुर-रोडखटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail .  roopchandrashastri@gmail.com
फोन-(05943) 250129
मोबाइल-09368499921