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Wednesday 29 June 2011

“दुनिया का सबसे कुशल वास्तुविद” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

बया
दुनिया का सबसे कुशल वास्तुविद
बात बहुत पुरानी है। उन दिनों में कक्षा 9 में नजीबाबाद में पढ़ता था। वहाँ से 4-5 किमी दूर मेरे मौसा जी का गाँव अकबरपुर-चौगाँवा था। मेरे मौसा श्री जयराम सिंह अधिक पढ़े-लिखे तो नहीं थे मगर तार्किक बहुत थे। मुझे वो बहुत पसंद करते थे क्योंकि मैं उनके साथ खेती-बाड़ी के काम में उनका हाथ भी बँटा देता था।
जब भी मैं उनके गाँव में जाया करता था तो रास्ते में रेतीला बंजर और खजूर के पेड़ों का जंगल पार करना पड़ता था जिसके 500 मीटर बाद मौसा जी का गाँव बसा हुआ था। इन खजूर के पेड़ों पर बया के बहुत सारे घोंसले लटके होते थे। जिन पर बया चिड़ियाएँ कलरव करती हुई मुझे बहुत अच्छी लगती थीं।
आज उनके बारे में पाठकों को कुछ बताना चाहता हूँ।
बया गौरय्या जैसी ही एक चिड़िया होती है। जिसको जुलाहा पक्षी भी कहा जाता है। क्योंकि यह दुनिया का सबसे कुशल शिल्पी होता है।
बहुत से लोग शायद यह नहीं जानते होंगे कि बया हर मौसम में उसके अनुकूल अपना घोंसला बनाता है। 
बात शुरू करते हैं गर्मियों से। तो यह गर्मियों में अपना घर बहुत हवादार बनाता है। जिसमें कि प्राकृतिक हवा आती-जाती रहे।
जैसे ही इसे बरसात के आगमन का आभास होता है यह बरसात के अनुकूल घोसला बनाने में जुट जाता है। बारिश से बचने के लिए यह विशेष प्रकार का घर बुनता है जो उलटी सुराहीनुमा होता है। अर्थात यह इस घोंसले में आने-जाने के लिए नीचे की ओर द्वार रखता है।
जैसे ही बारिश का मौसम समाप्त होता है तो उस समय यह जाड़ें की ऋतु के अनुकूल अपना घोंसला बुनने लगता है। इसकी बनानट ऐसी होती है कि इसमें शीत की हवाएँ घोंसले के भीतर नहीं जा सकती हैं।
एक बार मैं बरसात के मौसम में मौसा जी के गाँव गया तो शाम को चौपाल पर बया के बारे में चर्चा चल पड़ी। मौसा जी ने बताया कि बया के तुरही नुमा घर में रौशनी का भी इन्तजाम रहता है। इस पर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ।
मैंने मौसा जी से पूछा मौसा जी बया के घोसलें में रौशनी कैसे होती है?
मौसा जी ने बताया कि बया अपनी चोंच में गीली मिट्टी ले जाकर उसको अपने घोंसले की दीवारों में चिपका आता है और शाम होते ही जुगनुओं (खद्योतों) को अपनी चोंच में पकड़कर घोंसले के भीतर ले जाता है और उनको गीली मिट्टी में इस प्रकार लगा देता है कि उसका मुँह मिट्टी में धँस जाए और उसका पीछे का हिस्सा जो प्रकाशित होकर टिमटिमाता है वह बाहर की ओर रहे। इस प्रकार बया का अंधेरा घोंसला प्रकाशमान होता रहता है।
मुझे मौसा जी बात पर सहज ही विश्वास न हुआ तो उन्होंने एवरेडी की 3 सेल वाली टॉर्च साथ ली और मुझे खजूरियों के वृक्षों के जंगल की ओर ले गये। इस चमत्कारी बात की सत्यता को जानने के लिए गाँव के कुछ और लोग भी हमारे चल पड़े।
जंगल में पहुँच कर मौसा जी ने टॉर्च बन्द कर दी और कहा कि इन लटकते हुए घोंसलों में झाँक कर देखो।
यब मैंने 2-4 घोंसलों के नीचे जाकर झाँककर देखा तो उनमें से टिम-टिम करता हुआ प्रकाश आलोकित होता हुआ नज़र आया।
अब तो आप समझ ही गये होंगे कि बया दुनिया का सबसे बड़ा भवनइंजीनियर और वास्तुविद् होता है।

Friday 17 June 2011

‘‘18 जून-बलिदान-दिवस पर विशेष’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

अमर वीरांगना झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई के

बलिदान-दिवस पर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि समर्पित करते हुए
श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान की
यह पूरी अमर कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ।
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सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटि तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नई जवानी थी।
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन् सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपुर के नाना की मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम पिता की वह संतान अकेली थी।
नाना के संग पढ़ती थी वह नाना के संग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाली की गाथाएँ उसको याद जबानी थीं।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता का अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार।
नकली युद्ध व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्ट्र कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में।
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आई झाँसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजयाली छाई,
किन्तु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई।
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाईं,
रानी विधवा हुई हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निःसंतान मरे राजा जी रानी शोक-समानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौजी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया।
फौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय-विनय नहीं सुनता है, विकट फिरंगी की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया।
डलहौजी ने पैर पसारे अब तो पलट गई काया,
राजाओं नब्वाबों के भी उसने पैरों को ठुकराया।
रानी दासी बनी यह दासी अब महारानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी देहली की, लिया लखनऊ बातों-बात.
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात।
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात,
जबकि सिंध, पंजाब, ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र निपात।
बंगाले-मद्रास आदि की भी तो यही कहानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोई रनिवासों में, बेगम गम से थी बेजार,
उनके गहने।कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाजार।
सरेआम नीलाम छापते थे अंग्रेजों के अखबार,
नागपूर के जेवर ले लो, लखनऊ के लो नौलख हार।
यों परदे की इज्जत पर। देशी के हाथ बिकानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटिया में थी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था, अपने पुरखों का अभिमान।
नाना धुंधुंपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रणचंडी का कर दिया प्रकट आह्वान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरमन से आई थी।
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थीं,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी।
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

नाना, धुंधुंपंत, ताँतिया, चतुर अजीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम।
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम,
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़ चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में।
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुआ द्वंद्व असमानों में।
जख्मी होकर वाकर भागा उसे अजब हैरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थककर गिरा भूमि पर, गया स्वर्ग तत्काल सिधार।
यमुना-तट पर अंग्रेजों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेजों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेजों की फिर सेना घिर आई थी,
अब के जनरल स्मिथ सन्मुख था, उसने मुँह की खाई थी।
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आईं थीं,
युद्ध-क्षेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर, पीछे ह्यूरोज आ गया हाय! घिरी अब रानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार।काटकर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था यह संकट विषम अपार।
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार पर वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर-गति पानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार, चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी।
अभी उम्र थी कुल तेईस की, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आई बन स्वतंत्रता नारी थी।
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे हम कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनाशी।
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू होगी तू खुद अमिट निशानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

♥ सुभद्रा कुमारी चौहान ♥

Thursday 9 June 2011

"माता पूर्णागिरि की यात्रा-फोटो फीचर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

शनिवार 4 जून, 2011 को हम लोग 
माता पूर्णागिरि के दर्शनों के लिए निकल पड़े।
घर के सामने पूर्णागिरि के भक्तों का हुजूम था!
सुबह 6 बजे सड़क का नजारा
रास्ते में चकरपुर गाँव मिला!
इसके बाद 1 किमी आगे
वनखण्डी महादेव का मन्दिर मिला,
यहाँ भी पूर्णागिरि के यात्रियों का जत्था था!
यहाँ बाबा जी से आशीर्वाद लिया
 
 
 
 
यहाँ रात में शिव की पिण्डी
7 बार रंग बदलती है! 
अब यहाँ से टनकपुर की ओर आगे बढ़े!
टनकपुर से 12 किमी आगे
 आद्या महाकामेश्वरी शक्तिपीठ के दर्शन किये!
 
इसके बाद ठुलीगाड़ नामक स्थान पर पहुँचे!
यहाँ से पैदल यात्रा शुरू करनी थी!
रास्ता दुर्गम चढ़ाई वाला था!
 दूर पर्वत पर शिखर पर
माता पूर्णागिरि का मन्दिर दिखाई दे रहा था!
नीचे शारदा नदी 
कलकलनिनाद करती हुई बह रही थी!
 कुछ दूर चलने पर एक भाई सीना पकड़े बैठे थे!
आखिर मैं भी सुस्ताने के लिए बैठ ही गया!
 
कुछ दूर आगे जाने पर यह नन्दी भी सुस्ताता हुआ मिला!
अब टुन्यास आ गया था!
इसके बाद नाई बाड़ा शुरू हुआ!
यहाँ मुण्डन संस्कार हो रहे थे!
यहाँ से माता जी का पहाड़ शुरू होता है!
कुछ दूर चलने पर सीढ़िया भी आ गईं थी!
यहाण दर्शनार्थियों की भारी भीड़ थी
और मैंने माता जी के मन्दिर के
पिछले भाग का फोटो ले लिया!
अब माता जी का दरबार सामने था!
माता पूर्णागिरि के दर्शन करके मन प्रसन्न हो गया
और मैं सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा! 
रास्ते में झूठे मन्दिर के भी दर्शन किये! 
 कुछ सुन्दर दृश्यों को कैमरे में भी कैद किया!
 
 
यहाँ से शारदा नदी ऐसी नजर आ रही थी!
 
 अब भूख बहुत जोर से लगी थी!
 सबने प्रेम से भोजन किया!
 बचा हुआ खाना 
इन महात्मा जी को दे दिया!
 इस प्रकार से हमारी पूर्णागिरि की यात्रा 
सम्पन्न हुई!
आपकी जानकारी के लिए !
पूर्णागिरि माता का मन्दिर चम्पावत जिले में 
टनकपुर से 25 किमी दूर है!
खटीमा से मन्दिर की दूरी 50 किमी है!
दिल्ली से यह 350 किमी
मुरादाबाद से 200 किमी
बरेली से 135 किमी तथा
रुद्रपुर से 130 किमी दूर है!