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Monday 25 October 2010

"करवाचौथ" (प्रस्तोता:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

"करवाचौथ"
(आज मेरे एक मित्र ने फोन पर
मुझे एक लतीफा सुनाया 
वही में आप लोगों से 
सहभाग कर रहा हूँ!)
       एक दिन उल्लू लक्ष्मी जी के पास जाकर बहुत ही दीन भाव में बोला कि माता लक्ष्मी जी मैं आपका वाहन हूँ! लेकिन मैं बहुत ही दुखी हूँ कि सब आपकी पूजा करते हैं परन्तु मुझे तिरस्कारभरी दृष्टि से देखते हैं! 
ऐसा क्यों है?
      लक्ष्मी जी ने उल्लू की वेदना समझकर उसे वरदान दिया कि दीपावली से पूर्व एक दिन तुम्हारी भी लोग पूजा करेंगे!
     कल करवाचौथ का दिन है! कहीं यही तो वो दिन नहीं है!
         अगर सत्यता हो तो बताइए! अन्यथा पढ़कर भूल जाइएगा!

Monday 18 October 2010

“जन्मदिवस-पं.नारायणदत्त तिवारी” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

जन्मदिन पर हार्दिक शुभकामनाएँ!
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पं. नारायण दत्त तिवारी का जन्म 18 अक्टूबर, सन् 1925 में नैनीताल के समीप पदमपुरी ग्राम में हुआ था! बाल्यकाल से इन पर माँ सरस्वती का वरद हस्त था! प्रारम्भिक शिक्षा के उपरान्त इन्होंने उच्चशिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राप्त की! राजनीति का अंकुर यहीं से इमें प्रस्फुटित हुआ और ये  इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गय! अपने छात्र जीवन में ही ये स्वाधीनता आन्दोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लेने लगे थे। जिसके कारण इन्हें जेल यातनाएँ भी सहन करनी पड़ीं!।
शिक्षा-दीक्षा के उपरान्त इन्होंने राजनीति के अखाड़े में कदम रखा और ये प्रजा सोसलिस्ट पार्टी में सक्रिय भागीदारी निभाने लगे। लेकिन पं. गोविन्द बल्लभ के सानिध्य के कारण इन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस का दामन थाम लिया और आज भी ये काँग्रेस पार्टी की सेवा में संलग्न हैं!
श्रीमती इन्दिरा का इन के सिर पर वरद हस्त था! उस समय कहा यह जाता था कि  जिन इन्दिरा जी को पं. नारायणदत्त तिवारी जैसा राजनीति का चतुर खिलाड़ी मिला हुआ है उसे भला कौन पराजित कर सकता है?
इन्होने केन्द्र में वित् मन्त्री, विदेश मन्त्री, योजना मन्त्री, वाणिज्य मन्त्री आदि शीर्षस्थ पदों को सुशोभित किया।
इन्होंने भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 1976 से 77 तक, 1984 से 1985 तक और 1988 से 1989 तक मुख्यमन्त्री पद को सुशोभित किया है।
इनको उत्तराखण्ड के तीसरे मुख्यमन्त्री बनने के भी सौभाग्य मिला है और इन्होने 2002 से 2007 तक उत्तराखण्ड के मुख्यमन्त्री का अपना पूरा कार्यकाल निभाया।
ये 22 अगस्त 2007 से 26 दिसम्बर 2009 तक आन्ध प्रदेश के महामहिम राज्यपाल के पद को भी सुशोभित कर चुके हैं! वर्तमान में ये एफ.आर.आई. देहरादून में रह रहे हैं।
मैं उन सौभाग्यशाली व्यक्तियों में से एक हूँ जिसे कि प्रारम्भ से ही भरपूर सानिध्य पं. नारायण दत्त तिवारी मिला है।
प्रस्तुत है उनके साथ कुछ चित्रों की झलकियाँ!
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(तिवारी जी के साथ1989 के खटीमा क्षेत्र के दौरे की कुछ यादें)
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(चित्र में तिवारी जी के साथ ठा. कमलाकान्त सिंह और डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री)
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  (चित्र में तिवारी जी के साथ डॉ.केडी.पाण्डेय और डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री)

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 (चित्र में पं.नारायणदत्त तिवारी जी के देहरादून स्थित आवास एफ.आर.आई.  में जावेद अंसारी, ज्ञानी स्वर्णसिंह और डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री)
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 (चित्र में पं.नारायणदत्त तिवारी जी के देहरादून स्थित आवास एफ.आर.आई.  में जावेद अंसारी, ज्ञानी स्वर्णसिंह और डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री)

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 (चित्र में पं.नारायणदत्त तिवारी जी के देहरादून स्थित आवास एफ.आर.आई.  में तिवारी जी के साथ डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री)
आज 18 अक्टूबर, 2010 पर 
पं. नारायण दत्त तिवारी जी को 
उनके 87वें जन्मदिन पर 
मैं हार्दिक शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ और 
उनके दीर्घायु होने की ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ!

Tuesday 12 October 2010

“मानसिक दासता” (प्रस्तोता-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

“मानसिक दासता” 
1- ईस्वी नव वर्ष को हम बड़े ही उत्साह से मनाते हैं परन्तु हमें याद नहीं कि विक्रमी सम्वत कौन सा है, कौन सा मास चल रहा है और हमारा नव-वर्ष कब होता है?
2- बालक के जन्म-दिन पर केक न काटा जाये तो जन्मदिन अधूरा माना जाता है। 
प्रश्न- ऐसा क्यों? 
उत्तर- अंग्रेज ऐसा करते हैं। 
अरे इनके पास तो केक, पेस्ट्री और टॉफी के सिवा कोई मिष्ठान है ही नही। जबकि हमारे पास तो लड्डू, बरफी, गुलाबजामुन, रसगुल्ला आदि अनेक मिठाइयाँ हैं। जन्मदिन उनसे क्यों नही मनाया जा सकता है!
3- जन्मदिन पर मोमबत्ती बुझाने का रिवाज चल पड़ा है। जबकि जन्मदिन तो प्रसन्नता का विषय है।जब हम रामनवमी. कृष्णजन्माष्टमी मनाते हैं, गुरूनानकदेव का जन्मदिन मनाते हैं तो मन्दिरों-गुरूद्वारों में दीपमाला सजाते हैं, विद्युत प्रकाश करते हैं, मोमबत्तियाँ जलाते हैं। यदि लाइट चली जाये तो विद्युत विभाग को कोसते हैं। क्योंकि प्रसन्नता के वातावरण में अंधेरा शोक का सूचक माना जाता है। फिर अपने बालक के जन्मदिवस पर मोमबत्ती बुझाकर अन्धेरा क्यो करते हैं? उस दिन तो हवन-यज्ञ करना चाहिए और हवन की अग्नि से पूरे घर को प्रकाशित और सुवासित करना चाहिए।
4- हम अपने देश की वेश-भूषा को भी भुला बैठे हैं। धोती-पाजामा पहनने में हीन भावना से ग्रसित होते हैं और पैण्ट पहन कर अपने को उच्चस्तरीय नागरिक समझते हैं। यह भावना अपने मन में पालना हमारी मानसिक गुलामी नही तो क्या है? लंदन में जॉर्ज पंचम के दरबार में सरकारी पोशाक पहन कर ही उनसे मिलने का नियम था। परन्तु महात्मा गांधी और मदनमोहन मालवीय ने इस पोशाक को पहन कर उनसे मिलने से मना कर दिया था। जब जॉर्ज पंचम को इस बात का पता चला तो उन्होंने कहा कि ये जिस वेश-भूषा को पहन कर उनसे मिलने के लिए आना चाहें इन्हे मुझसे मिलने के लिए आने दिया जाये! तब गांधी जी और मालवीय जी इनसे भारतीय वेश-भूषा धोती-कुर्ता पहिन कर ही मिले थे! यबकि उस समय हमार देश अंग्रेजों के पराधीन था! आज आजाद होते हुए भी हम मानसिक गुलाम नहीं तो और क्या है?
5- कुछ समय पहले भारतीय रसोई में जमीन पर बैठकर आसन बिछाकर भोजन करते थे!
इसका लाभ यह था कि रसोई में प्रवेश से पूर्व जूता उतारना पड़ता था! जूता न जाने कहाँ-कहाँ जाता है? इसमें गन्दगी भी लग जाती है और रोग के कीटाणु आने की पूरी संभावना रहती है। आपने देखा होगा कि डॉक्टर लोग ऑपरेशन करने के लिए जूता उतारकर और दस्ताने पहन कर ही ऑपरेशन करते हैं। परन्तु हम तो आधुनिकता के मोह में रोगों को स्वयं ही निमन्त्रण देते हैं!
6- पेण्ट पहनना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक है। क्योंकि खडे होकर लघुशंका करने से बीमारी तीव्र गति से हम पर हमला करती है!
7- टाई पहनना भी हमारी मानसिक गुलामी का ही प्रतीक है। अंग्रेज तो इसे ईसूमसीह के क्रॉस के प्रतीक के रूप में इस्तेमाल करते हैं। लेकिन हम यज्ञोपवीत के तीन तार के महत्व को भूल बैठे हैं! इसीलिए माता-पिता और आचार्य का सम्मान भूल बैठे हैं!
7- हमने अपनी मातृभाषा को भी भुला दिया है। हम अंग्रेजी में बात करने में अपने को सभ्य मानने लगे हैं। इसी लिए हम भारतीयों की न तो अंग्रेजी ही अच्ची है और नही हिन्दी ही! विदेशी भाषा सीखने में कोई हानि नही है लेकिन परन्तु हमें अपनी मातृभाषा भी आनी चाहिए और उसको प्रयोग करने में अपने को गर्व का अनुभव करना चाहिए!
8- यह देखने में आया है कि अंग्रेजी भाषा में पर्याप्त शब्दावली भी नही है। यदि किसी के घर में मृत्यु हो जाये तो तो अभिवादन के लिए अंग्रेजी में गुडमार्निंग ही कहना पड़ेगा ना! जरा विचार करके देखिए कि उस समय लोग क्या सोचेंगें! जबकि अपनी भाषा में नमस्ते कहने में कुछ भी हानि नही है।
9- पाश्चात्य सभ्यता में रंगा भारतीय युवक भारतीय शास्त्रीय संगीत को धीमा राग कह कर इसका तिरस्कार कर रहा है और उस पाश्चात्य संगीत की धुनों पर थिरक रहा है। जिसमें मधुरता नहीं मात्र कर्कशता है! 
यह सब हमारी मानसिक दासता का सूचक नहीं तो और क्या है?
(अमृत पथ से साभार)

Friday 1 October 2010

"वरिष्ठ नागरिक दिवस-एक रपट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

खटीमा प्रशासन द्वारा
वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया गया।

          खटीमा प्रशासन द्वारा वरिष्ठ नागरिक दिवस के अवसर पर 1 अक्टूबर,2010 को नये तहसील भवन में स्थित  सभागार में सीनियर सिटीजन वैलफेयर सोसायटीज, की ओर से सम्बोधित करते हुए -डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक", पी.एन.सक्सेना,  सतपाल बत्तरा, कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष मलिकराज बत्तरा कार्यक्रम के आयोजक सन्तोष कुमार पाण्डेय (तहसीलदार, खटीमा) आदि।
      इस अवसर पर वरिष्ठ नागरिक  सतपाल बत्तरा ने अपने सम्बोधन में कहा कि वरिष्ठ-नागरिकों को समाज और शासन-प्रशासन संरक्षण दे। आज यह देखा जाता है कि बूढ़े और अशक्त पिता और 85 साल के दादा के ऊपर दहेज एक्ट और एस.सी.-एस.टी. एक्ट लगा दिया जाता है! जो कि जाँच के उपरान्त ही लगाया जाना चाहिए।
       सीनियर सिटीजन वैलफेयर सोसायटीज, खटीमा के सचिव डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ने अपने सम्बोधन में उत्तराखण्ड के मा.मुख्य-मन्त्री से यह माँग करते हुए कहा कि केन्द्र सरकार की भाँति हमारे प्रदेश की सरकार को भी उत्तराखण्ड रोडवेज की बसों में किराये में वरिष्ठ पुरुषों को 33 प्रतिशत और वरिष्ठ महिलाओं को 50 प्रतिशत की छूट देनी चाहिए।
       कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष मलिकराज बत्तरा ने अपने सम्बोधन में कहा कि हर नगर में वृद्धाश्रम सरकार को बनवाने चाहिए। जिसमें घर तथा परिवार से उपेक्षित तथा निराश्रित वरिष्ठ नागरिकों रहने-खाने और मनोरंजन की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।   
     कार्यक्रम के आयोजक सन्तोष कुमार पाण्डेय (तहसीलदार, खटीमा) ने यह आश्वासन दिया कि वह वरिष्ठ नागरिकों की आवाज को अपने स्तर से जिले के उच्चाधिकारियों को अवगत करा देंगे।
      गोष्ठी में नरेश तलवार, रमेशचन्द्र राणा, रोशनलाल ग्रोवर, रामवचन एडवोकेट, डॉ.
बाबूराम अरोड़ा, कानूनगो-सत्यदेव आदि ने अपने विचार प्रकट किये।