समर्थक

Saturday 29 August 2009

’’अजीब दास्ताँ है ये.....’’(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



जी हाँ.............! हमको गर्व है कि हम एक उदारवादी, सुधारवादी और प्रजातान्त्रिक देश में रहते हैं।

हमारे भारत में सप्ताह में तो एक-दो आतंकवादी पकड़ ही लिए जाते हैं। उनके पास से गोला-बारूद और अस्त्र-शस्त्र भी बरामद हो जाते हैं।

फिर किन सबूतों के लिए उन्हें जिन्दा रखा जाता है?

पकी-पकाई रोटियाँ उन्हें क्यों खिलाई जाती हैं?

इनके पास से बरामद सबूतों को तुरन्त ही न्यायालय में पेश भी किया जाता है। लेकिन न्यायाधीश सजा का निर्धारण करने में कई साल क्यों बरबाद कर देते हैं?

ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं।

जिनका उत्तर मैं ही नही, भारत का हर जागरूक नागरिक देश की न्याय-व्यवस्था से माँग रहा है।

आतंकवाद पर रोक तो तुरन्त लग सकती है।

अगर इनको तुरन्त दण्ड मिल जाये।

Monday 24 August 2009

‘‘भाद्रपद मास में दूज’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)


भाद्रपद मास में दूज के दिन उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर और मुरादाबाद में गाँवों और शहरों में एक मेले का आयोजन होता है।
इसमें बुड्ढा बाबू की पूजा की जाती है। कढ़ी, साबुत उड़द, चावल, रोटी, पुआ, पकौड़ी और हलवा आदि सातों नेवज घर में बनते हैं। बुड्ढा बाबू को भोग लगा कर प्रसाद के रूप में घर के लोग भी इस भोजन को ग्रहण करते हैं।
इसके बाद मेले में बुड्ढा बाबू के थले पर जाकर प्रसाद चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि दाद, खाज, कोढ़ आदि के रोग भी यहाँ प्रसाद चढ़ाये जाने से ठीक हो जाते हैं।
हल्दौर कस्बे में तो दोयज का बहुत बड़ा मेला लगता है जो 10 दिनों तक चलता है।
दोयज के दिन मेले में जाने पर सबसे पहले आपको बाल्मीकि समाज के लोग सूअर के बच्चों को बाँधे हुए बैठे मिल जायेगें। वे टीन के कटे हुए छोटे-छोटे को दाद-फूल के रूप में देते हैं। जैसे ही आप उनसे ये दाद फूल खरीदेंगे, वे आपको इस दाद फूल के साथ सूअर के बच्चे के कान के बाल चाकू से नोच कर इन दाद-फूल के साथ दे देंगे।
यही प्रसाद आप बुड्ढा बाबू के थले पर जाकर चढ़ा देंगे।
ये नजारा खासकर छोटे बालकों को बहुत सुन्दर लगता है।
सूअर का कान नोचा जायेगा तो वो चिल्लायेगा और बच्चे इसका आनन्द लेंगे।

Tuesday 18 August 2009

‘‘आप भी इन बाढ़ के नजारों पर दृष्टिपात कर लें’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


खटीमा (उत्तराखण्ड) में
शाम के 5 बजे के बाढ़ के दृश्य

आज प्रातःकाल 8 बजे खटीमा (उत्तराखण्ड) की बाढ़ की कुछ तस्बीरे आपको इससे पूर्व की पोस्ट में दिखाईं थी।

आज 18 अगस्त 2009 मंगलवार का दिन है। करीब 3 घण्टे से वर्षा रुकी हुई हैं।
अब शाम के 5 बजे हैं। इस लिए मैंने सोचा कि खटीमा के समीपवर्ती क्षेत्र का भी भ्रमण किया जाये निकला। आप भी इन बाढ़ के नजारों पर दृष्टिपात कर लें।
बारिश रुकने के बाद भी बस्तियों और खेतों में पानी ही पानी था।

यह कुमाऊँ मण्डल विकास निगम की गैस एजेंसी है।
यहाँ बिल्डिंग में तो पानी भरा ही हुआ है साथ ही कार्यालय जाने का मार्ग ही अवरुद्ध हो गया है। गैस गोदाम ने तालाब ले लिया है।
एक और मकान का दृश्य देखिए-

अरे!
इस मकान की तो
खिडकियाँ भी पानी में डूबी हैं।
अब खेतों में बने मकानों का जायजा लेते हैं-
ओह! यहाँ तो जल-थल एक हो रहा है।
कुल मिलाकर बाढ़ की विभषिका बड़ी भयंकर है।

"खटीमा में बाढ़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


लो भाई! "खटीमा में बाढ़" आ ही गई।
१३ अगस्त,२००९ का दृश्य


१८ अगस्त,२००९ का नज़ारा

कल तक तो सूखे की मार झेल रहे थे। १३ अगस्त से उमड़-घुमड़ कर बादल आ गये। बारिश बरसने लगी। मन को तसल्ली मिली।
पाँच दिनों से लगातार पानी गिर रहा है।
१८ अगस्त,२००९ का नज़ारा
अब तो ऐसा लग रहा है जैसे कि आसमान में छेद हो गया है।
उत्तराखण्ड का खटीमा शहर जलमग्न हो गया है। बाढ़ का पानी ८० प्रतिशत् घरों में घुस चुका है। खाना पकाने तक के लाले पड़ गये हैं।
अभी भी बादल छँटने के आसार नहीं लग रहे हैं।
प्रकृति की इस मार के आगे सब लाचार हैं।
इन्द्र-देवता अब तो बस करो!

Saturday 15 August 2009

खटीमा मे स्वतन्त्रता-दिवस (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


आज हम भारतवासी स्वतन्त्रता-दिवस की 63वीं वर्ष-गाँठ मना रहे हैं।
60 वर्ष के पश्चात मनुष्य वरिष्ठता की श्रेणी में आ जाता है। हमारा आजादी का यह पर्व भी वरिष्ठता के दौर में प्रवेश कर चुका है।

विगत 25 वर्षों से स्थानीय तहसील और परगना-न्यायालय के परिसर में मेंरे विद्यालय (राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय, खटीमा) के बालक राष्ट्र-गान गाने के लिए अनवरत रूप से राष्ट्रीय पर्वों पर जाते हैं। लेकिन इस बार नजारा बदला-बदला था।

झण्डारोहण स्थल काफी ऊबड़-खाबड़ था। जगह-जगह पानी भरा था।
स्थानीय तहसीलदार से इस बाबत मैंने पूछा तो उन्होंने जवाब दिया- ‘‘ अब हमें यहाँ रहना ही नही है। कुछ महीने बाद तहसील नये भवन में चली जायेगी।’’
क्या अर्थ लगाया जाये इस बात का। यानि नये की आशा में हम अपने पुराने घर में झाड़ू लगाना और साफ-सफाई ही बन्द कर दें।
इस बाबत एक व्यक्ति ने चुटकी ली कि साहब रिश्वत तो आजकल तहसील में चरम सीमा पर है। नये भवन में जाकर ही रिश्वत भी ले लेना। तब तक यह भी बन्द कर दो ना।
इसके बाद स्थानीय पेपर मिल में इस विद्यालय के बालक मेरे साथ 15 अगस्त की परेड में गये। दर-असल मुझे इस कारखाने से विशेष लगाव है। वो इसलिए नही कि ये मेरे मित्र श्री राकेश चन्द्र रस्तोगी का संस्थान है, बल्कि इसलिए कि इन्होंने इसका नाम खटीमा के नाम से खटीमा फाइबर्स रखा है। देश-विदेश में मेरे नगर का नाम रोशन किया है।

यहाँ स्वतन्त्रता दिवस की परेड देखने लायक थी। जिसमें ध्वजारोहण फैक्ट्री के प्रबन्ध निदेशक एवं अध्यक्ष आर0सी0 रस्तोगी ने किया।

इसके बाद विद्यालय के छात्रों द्वारा देश-भक्ति से ओत-प्रोत एक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर पर आर0सी0 रस्तोगी ने अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को विस्तार से बताते हुए अपना सन्देश दिया।

94 वर्षीय श्री आनन्द प्रकाश रस्तोगी ने अपने वक्तव्य में सभी को स्वतन्त्रता दिवस की बधाई दी।

समारोह में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, उत्तराखण्ड सरकार के पूर्व सदस्य डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज यदि हम विकास के जिम्मेदार हैं तो जीवन में नैतिक मूल्यों के पतन के भी हम ही जिम्मेदार हैं। स्वतन्त्रता-दिवस तभी सार्थक होगा जब कि हर नागरिक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ईमानदारी से करे।

इस अवसर पर उद्योगपति पी0एन0 सक्सेना, कारखाने के उपाध्यक्ष अचल शर्मा, मुकेशचन्द्र रस्तोगी आदि ने भी अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित की।

अन्त में विद्यालय के छात्र-छात्राओं को भी पुरस्कृत किया गया।

Friday 14 August 2009

‘‘हिन्दू से ईसाई बनने बनने का राज क्या है?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


आज से लगभग 32 वर्ष पुरानी बात है। मेरे गृह जनपद के एक व्यक्ति खटीमा आकर बस गये। यहीं पर उन्होंने एक रिश्तेदार डाक्टर के यहाँ कुछ दिन रह कर डाक्टरी सीख ली और निकट के गाँव में अपना चिकित्साभ्यास शुरू कर दिया। गुजर-बसर ठीक-ठाक होने लगी।
उस गाँव में एक पादरी परिवार भी रहता था। उसने इस व्यक्ति के यहाँ आना जाना शुरू कर दिया।
नित्य प्रति पादरी इसे बाइबिल की बातें बताने लगा। यह डाक्टर भी उसकी बातें रस लेकर सुनने लगा।
अब पादरी ने उसे किसी ईसाई सम्मेलन में ले जाने के लिए राजी कर लिया।
4 दिनों के बाद जब यह डाक्टर लौट कर अपने घर आया तो सिर से चोटी और कन्धे से जनेऊ गायब था। यह पूरी तरह ईसाइयत के रंग में रंग चुका था।
अब इसने डाक्टरी का रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र फाड़ कर फेंक दिया था। इसका एक ही काम था गाँव-गाँव जाकर ईसाईयत के पर्चे बाँटना।
इसको इस काम के लिए उस समय तीन हजार रुपये प्रति माह मिलता था।
आज इसने अपना मकान बना लिया है। दोनों पुत्रियों और पुत्र का विवाह भी ईसाई परिवारों में कर दिया है।
वर्तमान समय में विदेशी ईसाई मिशन इसे दस हजार रुपये प्रति माह दे रहा है।
अपने घर में यह हर रविवार (सन-डे) को दरबार लगाता है। आदिवासी लोगों के भूत-प्रेत को उतारने का ढोंग करता है। हजारों रुपये का चढ़ावा प्रति रविवार इसके घर पर आता है।
अब तक यह सैकड़ों भोले-भाले आदिवासियों को ईसाई धर्म में दीक्षित कर चुका है।
अब समझ में आ गया है कि ईसाई मिश्नरी हमारे देश के भोले-भाले लोगों को लोभ देकर ईसाई बनाते हैं।

Sunday 9 August 2009

बग्वाल मेला (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)


बग्वाल मेला

बग्वाल मेला साल में रक्षा-बन्धन के दिन आता है।
आज के दिन बहने अपने भाईयों को राखी बाँधती हैं।परन्तु उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल के चम्पावत जिले में एक स्थान ऐसा है, जहाँ यह अनोखा त्योहार मनाया जाता है।
माँ वाराही का मन्दिर देवीधुरा में स्थित है।
इसी मन्दिर के प्रांगण में आपस में पत्थर मारने का युद्ध शुरू किया जाता है। इसके लिए विधिवत् मन्दिर का पुजारी शंख बजा कर युद्ध करने आगाज करता है।
बग्वाल खेलने वाले लमगड़िया, चमियाल, गहरवाल और बालिक कुलों के लोग चार खेमों में बँटे होते हैं। जब तक एक आदमी के रक्त के बराबर खून नही बह जाता है। तब तक यह युद्ध जारी रहता है।
इसके बाद मन्दिर का पुजारी शंख बजा कर युद्ध का समापन करता है।
इसकी ऐतिहासिकता के बारे में निम्न कथा प्रचलित है-
पौराणिक कथा के अनुसार पहले देवी के गणों को प्रसन्न करने के लिए यहाँ पर नर बलि दी जाती थी। इसके लिए लमगड़िया, चमियाल, गहरवाल और बालिक कुलों के व्यक्तियों की बारी क्रम से आती थी।
एक बार चमियाल कुल के एक परिवार की बारी आयी। लेकिन उस कुल में केवल एक ही इकलौता पुत्र था।
परिवार की वृद्धा ने अपने इकलौते पौत्र को बचाने के लिए घोर तपस्या की। वृद्धा की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी जी ने आकाशवाणी करके कहा-
"यदि लमगड़िया, चमियाल, गहरवाल और बालिक चारों कुलों के लोग मन्दिर प्रांगण में एकत्र होकर एक दूसरे को पत्थर मार-मार कर युद्ध करें। जब तक एक आदमी के रक्त की बराबर खून न बह जाये तब तक युद्ध जारी रहे। जैसे ही एक आदमी के रक्त के बराबर खून बह जाये, यह युद्ध बन्द कर दिया जाये। इससे देवी के गण प्रसन्न हो जायेंगे और नरबलि से छुटकारा मिल जायेगा।"
तब से प्रतिवर्ष यहाँ बग्वाल का मेला लगता है और पत्थरमार का खेल चलता है।
चोटिल व्यक्तियों के घावों पर बिच्छू घास का लेप लगाया जाता है। जिससे चोट का दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है।
कहा जाता है कि तब से आज तक चली इस परम्परा में कोई जन-हानि नही हुई है।
इस पत्थर युद्ध को देखने के लिए बड़ी संख्या में स्थानीय लोग ही नही अपितु विदेशों तक से पर्यटक भी आते हैं।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

Tuesday 4 August 2009

‘‘हुक्म की बेगम, चिड़ी का गुलाम’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


हुक्म की बेगम,
चिड़ी का गुलाम,

कलयुगी स्वयम्बर की इस सप्ताह बड़ी चर्चा रही।
कमाल की बात तो यह रही कि स्वयम्बर रचा रही तारिका ने अपने को सीता की उपाधि से अलंकृत कर दिया।
सच पूछा जाये तो यह सब दुनिया भर को मूर्ख बनाने का एक उपक्रम ही था। हुक्म की बेगम ने आखिर एक अमीर को फाँस ही लिया।
कनाडा का एक चिड़ी का गुलाम, हुक्म की बेगम के चँगुल में फँस ही गया।
वही हुआ जिसकी पहले से ही आशंका थी। हमेशा की तरह गरीबी पर अमीरी भारी पड़ गई।
सभ्यता और संस्कृति के इस मजाक को राम के वंशज देखते रहे। कहाँ सो रहे थे जय श्री राम का नारा लगाने वाले। यदि फिरकापरस्ती और वोटों की बात होती तो ये कलयुगी राम भक्त दंगा फैलाने से बाज नही आते और पुरातत्व के अवशेषों को ढहाने से भी बाज नही आते।
यह सिर्फ कहने भर की बात नही है। हममें से बहुतों ने काला दिन देखा है, जिसकी आग अभी तक ठण्डी नही हो पाई हैं।
प्रेम दिवस आता है तो इन संस्कृति के कथित रक्षकों के कारनामें ऐसे होते हैं जिन्हे याद करके मानवता भी शर्मसार हो जाती है।

Monday 3 August 2009

‘‘शठे शाठ्यं समाचरेत’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)



मेरे एक मित्र हैं, डा0 अशोक शर्मा। शहर के जाने-माने कालोनाइजर हैं।
वो पीलीभीत में अपना घर बना रहे थे। बरेली के एक ईंट भट्टा मालिक से उनकी 3500/- रु0 प्रति हजार की दर से 30 हजार ईंटों की बात तय हो गई। बयाने के रूप में वो मुनीम के पास पचास हजार रुपये जमा कर आये। शेष पचपन हजार रुपये देने के लिए उन्होने मुनीम से कह दिया कि जब चाहे ये रुपये मँगा लेना।
अगले दिन ईंटों का रेट 300 रुपये प्रति हजार की दर से बढ़ गया। मुनीम ने 5 दिन में पचास हजार रुपये की ईटे भेज कर शेष ईंटें भेजने को मना कर दिया।
जब उसके पास शर्मा जी 2-4 लोगों को लेकर गये तो मुनीम बद-तमीजी पर उतारू हो गया। सभी लोगों को यह बात बहुत बुरी लगी।
शर्मा जी के एक साथी ने कहा कि छोटे आदमी के क्या मुँह लगना चलो दूसरे भट्टे वाले से बात करते हैं। परन्तु शर्मा जी स्वाभिमानी व्यक्ति थे। कहने लगे कि बढ़ा हुआ रेट ले लेता पर इसने बद-तमीजी क्यों की है।
अन्ततः निकट के पुलिस स्टेशन पर एफ आई आर दर्ज कराने चले गये। थानेदार ने रिपोर्ट दर्ज करने में आना-कानी की तो मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने बाहर जाकर अपने किसी सचिव मित्र से लखनऊ में सम्पर्क साधा। पूरी बात बताई तो उन्होने बरेली के एस0एस0पी0 को फोन कर दिया।
जब तक मैं दोबारा थानेदार के पास आया, तब तक एस0एस0पी0 साहब का फोन थानेदार के पास आ गया था। अब तो नजारा ही बदल गया था।
थानेदार मय-फोर्स के भट्टे पर हमारे साथ गया। मुनीम की भी पूरी बात सुनी। फिर कुछ गुणा भाग करने लगा। उसने मुनीम से जो बात कही बस वो ही बताने के लिए ये पोस्ट लगाई है।
थानेदार ने कहा- ‘‘अच्छा मुनीम जी यह बताइए कि शादी में टेण्ट लगाने के लिए जब एडवांस दिया जाता है तो पूरा पेमेण्ट तो कार्य हो जाने के बाद ही किया जाता है। आपने पूरी ईंट भेजे बिना ही अपना एग्रीमेंट क्यों तोड़ दिया।’’
अब तो मुनीम की हालत देखने लायक थी।
वह बोला- ‘‘साहब ईंटें पहुँच जायेंगी। बल्कि मैं एक हजार ईंटे अधिक दे दूँगा।’’
थाने दार ने उसकी एक न सुनी और बिल बुक माँग ली। बिल बुक में तो सारे फर्जी बिल कटे थे और 15 सौ रुपये प्रति हजार की दर से बिल कटे हुए थे।
अब थानेदार ने शर्मा जी से कहा कि मैं आपकी एफ आई आर दर्ज करूँगा, मगर शर्त यह है कि आप यह एफ आई आर वापिस नही लेंगे।
आज भट्टा-मालिक व मुनीम दोनों जेल में हैं और उन पर टैक्स चोरी, वैट चोरी आदि के न जाने कितनी धाराएँ लगाई गयीं हैं।
बाद में पता चला कि थानेदार एक आई0पी0एस0 आफीसर था जो ट्रेनिंग पर थाना इंचार्ज के पद पर तैनात था।