| 
बाल सुलभ जिज्ञासाओं की अभिव्यक्तियाँ 
“खेलें घोड़ा-घोड़ा” 
      सहारनपुर निवासी डॉ.आर.पी.सारस्वत 2016
  में मेरे द्वारा आयोजित “राष्ट्रीय दोहाकार समागम“ में खटीमा पधारे थे। मेरी
  धारणा थी कि ये दोहाकार ही हैं मगर तीन-चार दिन पूर्व मुझे इनका बाल कविता
  संग्रह “खेलें घोड़ा-घोड़ा” प्राप्त हुई। तो मेरी धारणा बदल गई और बाल
  साहित्यकार के रूप में इनका नया अक्स उभरकर सामने आया। इनकी बालकृति “खेलें
  घोड़ा-घोड़ा” पर कुछ शब्द लिखने के लिए आज डेस्कटॉप ऑन करते ही मेरी उँगलियाँ
  की-बोर्ड पर चलने लगी। 
  
      “नीरजा स्मृति बाल साहित्य न्यास”
  सहारनपुर द्वारा प्रकाशित 7X11 इंच के साइज में छपी इस
  बालकृति में 32 पृष्ठ हैं और इसमें चौबीस बाल गीतों को श्वेत-श्याम चित्रों के
  साथ बाल सुपाठ्य फॉण्ट में आकार दिया गया है। जिसका मूल्य 100/- मात्र है। 
      बाल गीतों के संग्रह में मेला, दादी, नानी,
  टीवी, बन्दर, गौरैया, चिड़ियाँ, पेड़, छुट्टी, हाथी, सूरज, बादल, आदि बाल सुलभ
  विषयों पर रोचक बाल रचनाएँ हैं, जो बालकों को सदैव लुभाते हैं। 
      बाल
  साहित्यकार डॉ.आर.पी.सारस्वत ने कृति के शीर्षक “खेलें घोड़ा-घोड़ा” से इसका
  श्रीगणेश किया है-  
“आओ-आओ दादू आओ 
खेलें घोड़ा-घोड़ा! 
देखो दादू मुझको अपनी 
बातों में न घुमाना 
सच कहता हूँ सीधे से 
फौरन घोड़ा बन जाना...” 
      इसी मिजाज की मेले पर आधारित एक और रचना भी बाल सुलभ है-  
“कोई सुनना नहीं बहाना 
मुझको है मेले में जाना 
नाम जलेबी का आया है 
मुँह में पानी भर आया है 
गर्म समोसे बुला रहे है 
सिंघाड़े मुँह फुला रहे हैं 
सुनो भीड़ में मत खो जाना 
मुझको है मेले में जाना” 
       गौरैया के लुप्त प्रायः होने पर कवि ने बालक की
  जिज्ञासा को प्रकट करते हुए लिखा है- 
“गाँव गया था सब कुछ था 
पर गौरैया ना पड़ी दिखाई 
जाने किसकी नजर लगी है 
किससे उसने करी ठगी है 
गायब चिड़िया कहाँ हो गयी 
असमंजस में बैठी ताई” 
         पर्यावरण की चिन्ता करते हुए डॉ.आर.पी.सारस्वत
  ने बच्चों के माध्यम से पेड़ बचाने की गुहार कुछ इस प्रकार से लगाई है- 
“आओ-आओ पेड़ लगायें 
धरती कितनी प्यारी है 
लगती सबसे न्यारी है 
आओ इसको और सजायें 
आओ-आओ पेड़ लगायें” 
        हाथी को जब गुस्सा आया नामक बालक कविता
  में कवि ने जानवरों को अकारण नहीं सताने पर अपनी कलम इस तरह से चलाई है- 
“जी भरके उत्पात मचाया 
हाथी को जब गुस्सा आया 
जो भी उसके रस्ते आया 
सबको सस्ते में निबटाया 
जिसने उसको पत्थर मारे 
उसको मीलों तक दौड़ाया” 
       गरमी के प्रति अपना आक्रोश प्रकट करते
  हुए सूरज दादा छुट्टी जाओ शीर्षक से बालक की इच्छा को अपने शब्द देते हुए कवि ने
  कहा है- 
“सूरज दादा छुट्टी जाओ 
बहुत हो गयी मारा-मारी 
तड़प उठी है दुनिया सारी 
खुद भी जलो न हमें जलाओ 
सूरज दादा छुट्टी जाओ” 
         बच्चों को दादा-दादी बहुत अच्छे लगते
  हैं इसी बात को लेकर कवि ने बच्चों की अभिव्यक्ति को अपने शब्द कुछ इस प्रकार से
  दिये हैं- 
“दादू मेरे प्यारे दादू 
मुझसे मिलने आ जाओ 
याद आ रही मुझे तुम्हारी 
आकर मन बहला जाओ 
-- 
वहाँ तुम्हारा, बिना बिना हमारे 
मन कैसे लगता होगा 
वक्त तुम्हारा टीवी-मोबाइल 
पर ही कटता होगा 
हमको भी तो नई कहानी 
आकर और सुना जाओ” 
       बाल गीतों के इस उपयोगी संग्रह “खेलें-खेलें
  घोड़ा” में जितनी भी बाल रचनाएँ हैं सभी बहुत भावप्रवण और मनमोहक हैं। 
       बाल साहित्य रचना केवल तुकबन्दी करना ही
  नहीं होता अपितु बाल साहित्य को रचने के लिए स्वयं भी बालक बन जाना पड़ता है, मेरा
  ऐसा मानना है । जिसको विद्वान बालसाहित्यकार डॉ.आर.पी.सारस्वत ने बाखूबी
  निभाया है। 
       इस बाल कविता संग्रह में कवि ने बाल साहित्य
  की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह प्रशंसनीय है। 
       मुझे
  आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि “खेलें-खेलें घोड़ा” की कविताएँ और बालगीत बच्चों के ही नहीं
  अपितु बड़ों के दिल को अवश्य गुदगुदायेंगें और समीक्षकों के लिए भी यह कृति उपादेय
  सिद्ध होगी। इस उपयोगी बाल लेखन के लिए मैं डॉ.आर.पी.सारस्वत को हृदय से धन्यवाद देता हूँ। 
दिनांकः 05 नवम्बर, 2019    
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-  
समीक्षक 
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')  
कवि एवं साहित्यकार 
टनकपुर-रोड, खटीमा 
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308 
मोबाइल-7906360576 
Website.
  http://uchcharan.blogspot.com/  
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com | 
आप की पोस्ट बहुत अच्छी है आप अपनी रचना यहाँ भी प्राकाशित कर सकते हैं, व महान रचनाकरो की प्रसिद्ध रचना पढ सकते हैं।
ReplyDelete