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Friday 30 October 2009

"ब्लॉगिंग सिर्फ नेट तक ही सीमित नही है!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")








मुझे किसी कार्य से दिल्ली जाना था। रात में एक पोस्ट लगा दी कि कल दिल्ली की यात्रा है।
अगले दिन सुबह मेल चैक करके दिल्ली के लिए निकलना था। इसलिए मैं रात मे 3 बजे ही उठ गया।
पोस्ट पर टिप्पणी देखकर मन गद-गद हो गया।

M VERMA ने कहा…

पलकें बिछाए हम दिल्ली वाले बैठे हैं.
वन्दना ने कहा…

shastri ji delhi mein aapka swagat hai..........jis uddeshya se yatra ki hai wo poorna ho.

आपकी दिल्ली यात्रा शुभ हो,वैसे मैं भी दिल्ली जा रहा हूँ २८ की रात में और ३ तक हूँ वहाँ !


अविनाश वाचस्पति

 मुझे

भूल न जाना , मिलने है आना
अथवा , मुझे बुलाना।

सादर।
09868166586,   09711537664









28 अक्टूबर को प्रातः 5 बजे दिल्ली के लिए प्रस्थान किया


11 बजे तक दिल्ली के दर्शन हो गये। 
अविनाश वाचस्पति जी
को फोन लगाया। 

उनके आग्रह में इतना बल था कि मैं अविनाश वाचस्पति जी की 
बात टाल नही पाया।
2 घण्टे में नेहरू-प्लेस का काम निपटा कर सीधा
"सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम"
 उनके कार्यालय में पहुँच गया।
यानि रिश्ते नेट से आगे बढ़कर घर-परिवार तक के हो गये।
शाम के श्री M VERMA जी का फोन आ गया। वो कहने लगे- "शास्त्री जी! कल आप मेरे घर पर आमन्त्रित है।"

रात मे वापिस घर के लिए लौटना था। अतः उनसे क्षमा माँग कर अगली बार अवश्य उनके घर आने का वायदा किया।
कुछ लोग शायद यह भी प्रश्न करें कि यह बेकार का यात्रा संस्मरण लगाने की क्या आवश्यकता थी?
प्रश्न उठना वाजिब भी है। मगर इस पोस्ट को लगाने मेरा उद्देश्य ब्लॉगिंग के लाभ बताने का है।
मैं तो आज बहुत विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि "ब्लॉगिंग सिर्फ नेट तक ही 
सीमित नही है!" यह अब घर परिवारों तक भी पहुँच गयी है।
खटीमा से दिल्ली 350 किमी दूर है, मगर यह लगता है कि दिल्ली में रिश्तेदारों को
छोड़कर ब्र्लॉग-जगत से जुड़े हुए भी मेरे कुछ अपने परिवार हैं।
नगर, जिला, प्रदेश, देश और विदेश में भी आपको अपनापन देने के लिए आपके 
ब्लॉगर मित्र आपके स्वागत में कोई कोर-कसर नही छोड़ेंगे।
जी हाँ ! यही तो मजा है ब्लॉगिंग का।





Monday 26 October 2009

"ब्लॉगर मीट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


!! ब्लागिंग का भविष्य !!
ज सायं 6 बजे  डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" के निवास पर एक ब्लॉगर-मीट का आयोजन किया गया। जिसमे "ब्लागिंग का भविष्य" पर व्यापक चर्चा की गयी। चर्चा का प्रारम्भ खटीमा स्नातकोत्तर महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष और "कर्मनाशा" नाम से ब्लॉग चलाने वाले डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने किया। 





उन्होने कहा कि ब्लॉगिंग से वो प्रसिद्धि नही मिलती, जो पत्र-पत्रिकाओं मे छपने पर मिलती है।


इनके सुर में सुर मिलाते हुए राष्ट्रपति पदक से अलंकृत "सरस पायस" के ब्लॉगर रावेंद्रकुमार रवि ने कहा कि हम लोग दस हजार रुपये प्रति वर्ष व्यय नेट पर व्यय करते हैं। इतना खर्च करके तो हम लोग एक बढ़िया लाइब्रेरी सजा सकते हैं।


अब "उच्चारण" के नाम से ब्लॉगिंग करने वाले डॉ..रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" अर्थात्  मेरी बारी थी-
मैंने इस पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा - 
1- पत्र-पत्रिकाओं में छपने से केवल अपने देश में ही नाम मिल जाता है परन्तु देश-विदेश में प्रसिद्धि तो कुछ विरलों को ही मिल पाती है। जबकि ब्लॉगिंग से पूरी दुनिया में नाम तथा जान-पहचान हो जाती है।
2- दस हजार रुपये प्रति वर्ष खर्च करके एक बढ़िया लाइब्रेरी तो सजाई जा सकती है परन्तु इसमे सुसज्जित साहित्य को पढ़ना भी तो पड़ता है और सभी पुस्तकों को पढ़ना सम्भव नही होता है।
3- पुस्तक पढ़ने से ज्ञान तो निश्चितरूप से बढ़ता है लेकिन वाह-वाही नही मिलती है। मगर ब्लॉगिंग में तो इधर पोस्ट लगाओ और उधर वाहवाही से भरी टिप्पणी मिलनी शुरू हो जाती हैं। इससे प्रेरणा भी मिलती है और उत्साहवर्धन भी होता रहता है।


तभी सूरत (गुजरात) से हास्य-कवि अलबेला खत्री जी की चैट आ गयी। चैट में ही उनसे उनका मोबाइल नं. ले लिया गया। अब तो वे भी इस मीट में शामिल हो गये।
हास्य-कवि अलबेला खत्री जी ने कहा कि पढ़ना लिखना अपनी जगह महत्वपूर्ण है लेकिन ब्लॉगिंग का तो मजा ही अलग है।
अब आप क्या कहेंगे इस पर.............!

Friday 23 October 2009

"अन्तिम संस्कार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

"भस्मान्तम् शरीरम्"

वेद में कहा है-"भस्मान्तम् शरीरम् !" 
अर्थात् शरीर के भस्म हो जाने के पश्चात कोई भी क्रिया शेष नही रहती है।
मेरे मामा जी कट्टर आर्य-समाजी थे। कुछ दिनों से उनका स्वास्थ्य बहुत खराब चल रहा था। एक दिन मैं उनसे मिलने के लिए बरेली गया। घर की कुशल-क्षेम जानने के बाद उन्होंने मुझसे कहा- 
"बेटा ! मेरा घर अब रहने योग्य नही रहा है। शरीर जर्जर हो गया है। पता नही कब प्राण निकल जायें।"
मैंने कहा- "मामा जी ! आप अच्छे हो जायेंगे। ऐसी बातें क्यों कहते हो?"
वो कहने लगे- "देखो ! मैं तुम पर बहुत भरोसा करता हूँ। मैं अपने पास अपने अन्तिम क्रिया-कर्म के लिए 4-5 हजार रुपया हमेशा बण्डी की अन्दर वाली जेब में रखता हूँ। तुम आर्य-समाजी हो। इसलिए तुम्हें यह बात बता रहा हूँ।"
मैंने कहा- "मामा जी ! मुझे इस पैसे का क्या करना होगा?"
वो बोले- "मेरे मरने के बाद तुम इस पैसे को निकाल लेना और मेरे क्रिया-कर्म में इस सारे पैसे को खर्च कर देना। इससे 20 किलो हवन सामग्री, 11 किलो देशी घी लेना और लकड़ियाँ 5 कुन्टल से कम मत लेना। पूर्ण वैदिक-रीति से वेद-मन्त्रों के पाठ के साथ मेरा अन्तिम संस्कार करवाना।"
मामा जी का एक ही पुत्र है, जो बरेली में पशु-चिकित्साधिकारी है।
मामा जी ने आगे कहना प्रारम्भ किया- "इस पैसे को तुम मेरे पुत्र के हाथ में मत देना। क्योंकि वो लोगों की बातों में आकर कंजूसी कर सकता है।"
इस घटना के दस दिन बाद मामा जी का देहावसान हो गया।
उनके पुत्र डॉ.इन्द्रदेव माहर ने मुझे फोन किया। मैं 2 घण्टे के भीतर ही खटीमा से बरेली पहुँच गया। 
बरेली के एक आर्य समाजी श्री रामस्वरूप स्नातक जी भी तब तक वहाँ पहुँच गये थे।
जब मामा जी की बण्डी की जेब देखी तो उसमें चार हजार आठ सौ कुछ रुपये निकले।
उन्ही के पैसों से उनकी इच्छा के अनुसार सामान खरीद कर उनकाअन्तिम संस्कार पूरे विधि-विधान से किया गया। वेद मन्त्रों से लगभग 200 आहुतियाँ घी और सामग्री की दी गयीं।
श्मशान की वेदी पर जब उनका अन्तिम संस्कार किया जा रहा था तो एक और शव का क्रिया-कर्म कर रहे लोग बड़े कौतूहल से देख रहे थे। बाद में इन लोगों ने प्रश्न किया कि इतना घी सामग्री लगाने की और इतना खर्च करने की क्या जरूरत थी?
मैं तो कुछ बोला नही परन्तु स्नातक जी ने कहा कि आप लोगों का हमसे ज्यादा खर्चा हो जायेगा।
ये लोग बोले- "कैसे?"
स्नातक जी ने कहा- "अस्थियाँ लेकर आप लोग कहाँ जाओगे?"
इन्होंने कहा- "हरिद्वार और सोंरो।"
स्नातक जी ने कहा- "इसमें कितना खर्च होगा?"
इन्होंने कहा- "लगभग 8-10 हजार।"
स्नातक जी ने कहा- " लेकिन हमारा तो केवल 6-7 हजार ही कुल खर्च होगा।"
ये लोग बोले- "कैसे?"
स्नातक जी ने कहा- "हम लोग 3 दिनों तक गृह-शुद्धि के लिए प्रातः-सायं यज्ञ करेंगे। तीसरे दिन अस्थियाँ चुन कर पास की नदी में विसर्जित करेंगे, उसके बाद कुछ नही।"
स्नातक जी ने आगे कहा- "वेद कहता है- "भस्मान्तम् शरीरम्" अर्थात् शरीर के भस्म हो जाने के बाद कुछ भी क्रिया शेष नही रहती। जब शरीर पञ्च तत्वों में विलीन हो गया तो किसके लिए यह सब ढोंग-ढकोसला?"
स्नातक जी की बात का उन पर इतना प्रभाव हुआ कि उन्होंने भी अपने ताऊ जी की बाद की सारी क्रियाओं को यज्ञ के साथ ही वैदिक रीति से सम्पन्न कराया।
(चित्र गूगल सर्च से साभार)

Monday 19 October 2009

"रस्म पगड़ी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! रस्म-पगड़ी समाज का आवश्यक अंग है !!

श्री रामचन्द्र आर्य जी के पार्थिव शरीर का पूरे विधि-विधान के साथ 
अन्तिम-संस्कार वैदिक रीत्यानुसार कर दिया गया।


इसके पश्चात तीन दिनों तक प्रातः सायं यज्ञ किया गया।
आज रस्म-पगड़ी थी।


आखिर क्या है ये रस्म-पगड़ी?
इस अवसर पर मैंने इस गम्भीर विषय पर कुछ प्रकाश डाला।
हमारा देश ऋषि-मुनियों का देश रहा है। यहाँ प्रारम्भ से ही राज-तन्त्र रहा है। आर्यावृत्त के आदि नरेश महाराज मनु हुए हैं। 
कहने को तो भारत लोकतान्त्रिक देश है। परन्तु राजतन्त्र की जड़ें इतनी सुदृढ़ हैं कि प्रजातन्त्र में यह परोक्षरूप में परिलक्षित होता है। अब ऊपर से नीचे की ओर चलते हैं-
एक राष्ट्र और उसका एक नरेश, एक प्रान्त और उसका एक नरेश, एक नगर और उसका एक नरेश, एक गाँव और उसका एक नरेश और एक परिवार का एक ही मुखिया अर्थात राजा।
इनमें से किसी के भी गुजर जाने के बाद नये मुखिया की नियुक्ति की जाती है। उसको जिम्मेदारी दी जाती है। 
पहले समय में तो युवराज को राजमुकुट से सुशोभित किया था, वर्तमान में शपथ दिलाई जाती है। लेकिन परिवारों में समाज के सामने आज तक उत्तराधिकारी को पगड़ी पहनाने का रिवाज है।
परिवार की व्यवस्था को सुचारूरूप से चलाने के लिए अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
यही तो रस्म पगड़ी है। 

Thursday 15 October 2009

"बुद्धि में ही बल है।" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

!! बुद्धिर्यस्य बलम् तस्य !!

पहाड़ की तलहटी में एक भेड़पालक का घर था। घर के साथ ही उसने भेड़ का भी बाड़ बनाया हुआ था। 
रात मे भेड़पालक उसमें भेड़ों के बन्द करके फाटक लगा देता था और सुबह होते ही खोल देता था।
दिन में भेड़ें जंगल में चरने के लिए चली जातीं थीं।
इस बाड़े में एक भेड़ अपने छोटे बच्चे के साथ भी रहती थी।
बच्चा बहुत छोटा था इसलिए वो उसे अपने साथ जंगल में नही ले जाती थी।
एक दिन भेड़ जब जंगल जाने लगा तो उसका बच्चा भी जंगल में जाने की जिद करने लगा। परन्तु वह उसे अपने साथ नही ले गई।
जैसे ही भेड़ बाड़े से ओझल हुई तो भेड़ का बच्चा भी बाड़े से निकल कर जंगल की ओर जाने लगा।
तभी उसे एक भेड़िया दिखाई दिया। जो काफी दिनों सो उसकी ताक में था।

भेड़िये को देख कर तो बच्चे की जैसे जान ही निकल गई। वह डर से थर-थर काँपने लगा।
धीर-धीरे भेड़िया बच्चे की ओर बढ़ने लगा। बच्चा बहुत डर गया था इसलिए वो कुछ बोल भी नही सका।
भेड़िया बच्चे के पास आकर बोला- "प्यारे बच्चे डरो नही। आज मैं तुम्हें खाकर अपनी भूख मिटाऊँगा।"
बच्चे ने डरते हुए कहा- "मामा! मैं अभी बहुत छोटा हूँ, मुझे खाकर त आपका पेट भी नही भरेगा।"
भेड़िया बोला- "मुझे तुम्हारे जैसे कोमल बच्चे बहुत अच्छे लगते हैं।"
बच्चा कुछ देर चुप रहा और फिर साहस करके बोला- "मामा! पहले मुझे एक गाना सुना दो। फिर जो इच्छा हो करना।"
भेड़िया खुश होकर बोला- "पर मुझे तो गाना नही आता।"
बच्चे ने फिर कहा- "पर मेरी माँ तो आपके गाने की बहुत तारीफ करती है।"
अब तो भेड़िया फूला नही समाया और ऊँची आवाज मे गाने लगा।
कुछ दूरी पर शिकारी कुत्ते जा रहे थे। उन्होंने जब भेड़िए की आवाज सुनी तो वे उसकी ओर झपट पड़े।
जब भेड़िया आँखें बन्द किए मस्ती से गा रहा था तो भेड़ का बच्चा चुपके से उसके पास से खिसक लिया और अपने बाड़े में आ गया।
जैसे ही भेड़िए ने गाना खत्म करके अपनी आँखे खोली तो शिकारी कुत्ते उसके सामने थे।
भेड़िया भाग भी नही पाया और शिकारी कुत्तों ने उसका काम तमाम कर दिया।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि-
"हमें अपने माता-पिता का कहना मानना चाहिए।"
यदि कभी मुसीबत में घिर जायें तो-
"धैर्य रखकर बुद्धि से काम लेना चाहिए।"


Friday 9 October 2009

"महत्वपूर्ण दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ
ल सेना दिवस ----------------------------------15 जनवरी
अन्तर्राष्ट्रीय सीमा शुल्क दिवस -------------------26 जनवरी
गणतन्त्र दिवस ----------------------------------26 जनवरी
शहीद दिवस -------------------------------------30 जनवरी
सेंट वैलेंटाइन दिवस -----------------------------14 फरवरी
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस ----------------------------28 फरवरी
विश्व सैन्य दिवस ---------------------------------8 मार्च
विश्व जल दिवस ---------------------------------22 मार्च
विश्व मौसम विज्ञान दिवस -----------------------23 मार्च
नेशनल मेरीटाइम दिवस --------------------------5 अप्रैल
विश्व स्वास्थ्य दिवस ------------------------------7 अप्रैल
विश्व पुस्तक दिवस -------------------------------23 अप्रैल
मजदूर दिवस---------------------------------------1 मई
विश्व दूरसंचार दिवस-------------------------------17 मई
तम्बाकू विरोधी दिवस------------------------------31 मई
विश्व पर्यावरण दिवस--------------------------------5 जून
नशीली दवाओं के दुरुपयोग और तस्करी के विरुद्ध -
अन्तर्राष्टीय दिवस----------------------------------26 जून
डॉक्टर्स दिवस---------------------------------------1 जुलाई
विश्व जनसंख्या दिवस-----------------------------11 जुलाई
स्वतन्त्रता दिवस----------------------------------15 अगस्त
राजीव जयन्ती (सदभावना-दिवस)----------------20 अगस्त
विश्व फोटोग्राफी दिवस-----------------------------20 अगस्त
शिक्षक दिवस-------------------------------------5 सितम्बर
दिश्व साक्षरता दिवस------------------------------ 8 सितम्बर
हिन्दी दिवस--------------------------------------14 सितम्बर
ओजोन परत संरक्षण अन्तर्राष्टीय दिवस-----------16 सितम्बर
विश्व पर्यटन दिवस-------------------------------- 27 सितम्बर
अन्तर्राष्टीय वृद्ध दिवस------------------------------1 अक्टूबर
राष्ट्रीय स्वैच्छिक रक्तदान  दिवस--------------------1 अक्टूबर
महात्मा गांधी, लालबहादुर शास्त्री जन्म  दिवस------2 अक्टूबर
विश्व जीव-जन्तु क्रूरता निवारण  दिवस-----------4 अक्टूबर
वायु सेना  दिवस-----------------------------------8 अक्टूबर
विश्व डाक  दिवस-----------------------------------9 अक्टूबर
विश्व खाद्य दिवस-----------------------------------16 अक्टूबर
विश्व विकास सूचना दिवस--------------------------24 अक्टूबर
संयुक्त राष्ट्र दिवस-----------------------------------24 अक्टूबर
राष्ट्रीय बचत दिवस---------------------------------30 अक्टूबर
इन्दिरा गांधी बलिदान  दिवस-----------------------31 अक्टूबर
बाल दिवस -----------------------------------------14 नवम्बर
विश्व एड्स दिवस ---------------------------------- -1 दिसम्बर
अन्तर्राष्टीय विकलांग दिवस-------------------------3 दिसम्बर
भारतीय नौ-सेना दिवस----------------------------- 4 दिसम्बर
झण्डा दिवस-----------------------------------------7 दिसम्बर
विश्व मानवाधिकार दिवस---------------------------10 दिसम्बर
राष्ट्रीय ऊर्जा सम्वर्धन दिवस-------------------------14 दिसम्बर
किसान दिवस---------------------------------------23 दिसम्बर
क्रिसमस-डे----------------------------------------- 25 दिसम्बर
अन्तर्राष्टीय जैव विविधता दिवस--------------------29 दिसम्बर

Saturday 3 October 2009

"पं. लालबहादुर शास्त्री" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘‘मयंक’’)




"पं0 लालबहादुर शास्त्री का संक्षिप्त जीवन वृत्त"

लगभग 100 वर्ष पुरानी बात है। कुछ बालक वाराणसी में गंगा के पार मेला देख कर लौट रहे थे। 
इनमें से एक बालक पीछे रह गया था। ये बालक तो नाव में बैठ कर वाराणसी आ गये किन्तु पीछे रह गया बालक जब गंगा तट पर पहुँचा तो उसके पास नाव में बैठने के लिए पैसे ही नही थे। अतः यह साहस करके गंगा में कूद गया और तैर कर दूसरे किनारे पर आ गया।
आप जानना चाहते हो कि यह बालक कौन था? जी हाँ, यह साहसी बालक था लाल बहादुर। इनकी माता का नाम रामदुलारी और पिता का नाम शारदा प्रसाद था। दो अक्टूबर सन् 1904 को इनका जन्म हुआ था। माता-पिता इन्हें प्यार से नन्हे कह कर पुकारते थे।
जब ये डेढ़ वर्ष के ही थे कि इनके सिर से पिता का साया उठ गया था। इसलिए इनकी प्राथमिक शिक्षा इनके ननिहाल मिर्जापुर में हुई। बढ़े होने पर ये अपनी शिक्षा एक सम्बन्धी के घर रहकर वाराणसी में करने लगे।

महात्मा गांधी की प्रेरणा से लालबहादुर ने अपनी शिक्षा बीच में ही रोक दी और वे आजादी की जंग में सम्मिलित हो गये। बाद में उन्होंने अपनी पढ़ाई फिर शुरू की और काशी विद्यापीठ से शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण की। 
अब ये लालबहादुर शास्त्री बन गये थे और इन्होंने अपना सारा जीवन समाजसेवा और स्वतन्त्रता संग्राम को समर्पित कर दिया था।
आजादी की लड़ाई में ये तीन बार जेल गये और नौ वर्षों तक इन्होंने जेल यातनाएँ सहीं।
चौबीस वर्ष की आयु में इनका विवाह सन् 1928 में ललिता जी के साथ हुआ। 
विवाह में सादगी इतनी थी कि इन्होंने दहेज के नाम पर एक चरखा और खादी का कुछ गज कपड़ा ही स्वीकार किया था। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री कांग्रेस में सम्मिलित हो गये और इलाहाबाद को अपनी कर्मस्थली बनाया।
शास्त्री जी ने अपनी योग्यता और सादगी के बल पर कांग्रेस पार्टी के उच्च पदों को सुशोभित किया। सन् 1937 में ये उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गये।
देश के स्वतन्त्र होने के पश्चात इन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में मन्त्री बनाया गया।  
देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पं0 जवाहर लाल नेहरू इनकी योग्यता से बहुत प्रभावित थे। अतः केन्द्र सरकार में इन्हें रेल मन्त्री बना दिया गया। रेल मन्त्रालय का कार्यभार सम्भालने के उपरान्त इनहोंने इस विभाग में बहुत सारे सुधार किये। लेकिन इनके कार्यकाल में दक्षिण भारत में एक रेल दुर्घटना में 144 व्यक्ति मारे गये। शास्त्री जी ने रेल मन्त्री होने के नाते इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए रेल मन्त्री का पद छोड़ने में पल भर की भी देर नही लगाई। यह उनकी ईमानदारी का उत्कृष्ट उदाहरण था।
देश को इस सच्चे और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की जरूरत थी। अतः उन्होंने केन्द्र सरकार में बारी-बारी से अनेक मन्त्रालयों का दायित्व बड़ी जिम्मेदारी से निभाया। अन्ततः उन्हें देश का गृहमन्त्रालय दिया गया। पं0 जवाहर लाल नेहरू उस समय देश के प्रधानमंत्री थे। जीवन में अन्तिम दिनों में नेहरू जी अस्वस्थ रहने लगे थे। उस समय राज-काज में लाल बहादुर शास्त्री जी की सहायता की उनको जरूरत थी। जिसके लिए उन्हें केन्द्र सरकार में बिना विभाग का मन्त्री बना दिया गया था।
नेहरू जी की मृयु के उपरान्त पं0 लाल बहादुर शास्त्री को देश का प्रधानमन्त्री पद सौंपा गया। शास्त्री जी कुल 18 महीने प्रधानमन्त्री रहे। लेकिन उनके कार्यकाल को लोग आज भी गर्व के साथ स्मरण करते हैं।
जब ये प्रधानमन्त्री बने तो देश में अन्न की कमी थी। दूसरे देश अनाज देने के बदले में हम पर मनमानी शर्तें थोपना चाहते थे। अतः शास्त्री जी इस संकट की घड़ी में भी किसी देश के सामने नही झुके। उन्होंने विदेशी अनाज को ठुकरा दिया और का देश के किसानों और वैज्ञानिकों को अधिक से अधिक अनाज उपजाने के लिए प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने सप्ताह में एक दिन सोमवार को एक समय का भोजन करना बन्द कर दिया। देश के करोड़ों लोगों ने भी उनका अनुसरण किया।
साहस, धैर्य और परिश्रम के बल पर देश में अन्न की तंगी तो मिट गई। परन्तु सन् 1965 में पाकिस्तान ने हमारे देश पर यह सोच कर हमला कर दिया कि यह गांधी जी की तरह सीधा-सच्चा और अहिंसा का पुजारी हमें भला क्या जवाब देगा? लेकिन वह यह भूल गया था कि पं0 लाल बहादुर शास्त्री एक स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी भी रहा है और उसे अपने देश की स्वतन्त्रता प्राणों से भी प्यारी है।
लाल बहादुर का एक आदेश पाकर भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के इस आक्रमण का मुँहतोड़ जवाब दिया। अब पाकिस्तान यह समझ गया था कि यह विनम्र प्रधानमन्त्री कमजोर नही है।
पं0 लाल बहादुर शास्त्री छोटे कद के होते हुए भी अपनी चारित्रिक विशंषताओं के कारण लम्बे से लम्बे व्यक्ति से भी ऊँचे थे।
शास्त्री जी मानते थे कि पड़ोसी देशों के साथ मिल-जुल कर ही रहना चाहिए। अतः युद्ध जीतने के बावजूद भी उन्होंने रूस की मध्यस्थता में ताशकन्द में जाकर समझौता किया। समझौता होने के बाद रात में ही उनहें दिल का दौरा पड़ गया और वे भारतवासियों को रोता-बिलखता छोड़कर सदा-सदा के लिए संसार से विदा हो गये। शास्त्री जी एक सच्चे देशभक्त थे। इतने ऊँचे पद पर रह कर भी वे अपना निजी घर न बना सके। उनकी ईमानदारी का इससे बड़ा और क्या या सबूत होगा।
भारतमाता के इस सपूत को मैं श्रद्धा से शत्-शत् नमन करता हूँ।