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Tuesday 24 May 2011

"अनोखी पिकनिक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

मेरी गर्मियों की छुटियाँ!

    आज से 34 साल पुरानी बात है। मेरे विवाह को यही कोई दो साल हुए थे। मैं उन दिनों जिला-बिजनौर के हल्दौर कस्बे मे अपनी डॉक्टरी की प्रैक्टिस करता था।
एक वर्ष पहले मेरा अपनी पत्नी से किसी बात को लेकर मतभेद हो गया था और वो मायके मे चली गयी थी। मैं भी काफी ऐंठ में था। वहीं पर मेरे बड़े पुत्र का जन्म हुआ था। एक साल गुजर जाने पर जब नया साल आया तो श्रीमती जी का नववर्ष का बधाईपत्र मिला। उसपर नाम तो किसी का नहीं था मगर लेख से आभास हुआ कि यह तो अपनी सजनी का ही भेजा हुआ है।
    थोड़े दिन तो मन को मजबूत बनाया मगर कुछ दिन वाद वो पिघल गया। तभी श्रीमती जी का सन्देश किसी के द्वारा आ गया कि मुझे आकर ले जाओ।
    उन दिनों मैंने नई राजदूत मोटरसाईकिल ले ली थी। जैसे ही अप्रैल का महीना आया मैं बाइक से हल्दौर से अपनी ससुराल (रुड़की) के लिए रवाना हो गया।
    उन दिनों पत्नी से खुलेआम बात करना असभ्यता माना जाता था। अतः उससे बात न हो सकी। मगर शाम को मेरी पत्नी की सहेली मुझे अपने घर बुला कर ले गई। वहाँ पर मेरी श्रीमती जी भी थीं। खूब बाते हुईं और सारे गिले-शिकवे दूर हो गये। तभी पत्नी ने कहा कि मेरे माता-पिता मुझे आपके साथ भेजने में सहमत नहीं हैं। मैं आपके साथ (नीटू) बेटे को बाजार भेजूँगी और आप उसे लेकर सीधे हल्दौर चले जाना। बाकी मैं सम्भाल लूँगी।
अगले दिन ऐसा ही हुआ। मैं अपने डेढ़ साल के पुत्र को लेकर हल्दौर के लिए उड़न-छू हो गया। तीन घंटे का मोटरसाईकिल का सफर था। थोड़ी देर में इस बालक को नींद आने लगी। तब मैंने अपनी बुशर्ट निकालकर उसे अपने से बाँध लिया और घर आ गया।
    हमारे घर में तो मानों दीवाली की खुशियाँ ही आ गई थीं। मगर उधर मातम पसर गया था। अब तो ससुरालवालों को आना ही था। वो मिन्नते करने लगे कि भारती को ले आओ। कुछ नखरे करने के बाद मैं भी मान गया। मानना तो था ही क्योंकि यह तो हम पति-पत्नि की योजना का हिस्सा था।
अब मैं उनके साथ ससुराल गया। वहाँ पर तो आव-भगत का ढंग बिल्कुल ही बदल गया था। साली-साले जीजाजी-जीजाजी कहते न अघाते थे।


गर्मी का मौसम था। सबने कहा कि आप और भारती मसूरी घूम आओ। साथ में साले जी और उनकी श्रीमती जी भी गए। लेकिन वो घूमने के लिए कम आये थे और हमारा खर्च वहन करने के लिए अधिक।
इस तरह से हमारी गर्मी की छुट्टियों की पिकनिक हुई!

Tuesday 3 May 2011

"सम्मान की गूँज" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")


दैनिक अमर उजाला, नैनीताल में 
परिकल्पना एवं हिन्दी साहित्य निकेतन 
सम्मान की गूँज!
3 मई, 2011 के अमर उजाला के 
नैनीताल संस्करण में 
पृष्ठ-7 पर पहले कालम में 
युवा ऊधमसिंहनगर के अन्तर्गत 
उपरोक्त समाचार प्रकाशित हुआ है!