अभी दो दिन पहले की ही तो
बात है। घर में राशन, दालें आदि समाप्त हो गये थे। पूरा नगर लॉकडाउन था। आवाजाही
बिल्कुल बन्द थी। मैंने स्थानीय किराना व्यापारी को फोन करके घर का सामान लिखवा
दिया। लेकिन उसने कहा कि सामान तो मैं पैक करके रख दूँगा। मगर लेकर कैसे जाओगे?
मैंने व्यापारी से कहा कि
आप अपने किसी कर्मचारी से भिजवा दीजिए। परन्तु उसने असमर्थता व्यक्त की।
तभी मुझे ध्यान आया कि
स्थानीय खटीमा पुलिस कोतवाली में मेरी पहचान का एक सिपाही है। उससे सम्पर्क करता
हूँ। शायद वो ही मुझे बाजार जाने की कोई व्यवस्था करके मुझे अनुमति दिलवा दे।
और मैंने उसे फोन कर
दिया।
जब उससे बात हुई तो उसने कहा कि अंकल आपकी उम्र तो 65 साल
से अधिक है आपको तो वैसे ही इजाजत नहीं मिलेगी। लेकिन उसने कहा कि मैं आपको अपना
व्हाट्सप नम्बर देता हूँ। आप मुझे दुकानदार का पता दे दें और मेरा नम्बर उसे दे
दें तथा उसका फोन नम्बर मुझे दे दें। मैं खुद आपके घर सामान पहुँचाऊँगा।
पुलिस की इस मानवीय
सम्वेदना पर मेरे पास शुक्रिया के लिए शब्द पर्याप्त नहीं थे। बस दिल से दुआ ही
निकली।
धन्य हैं ऐसे कोरोना वीर!
और हाँ,
इस कांस्टेबिल का
नाम इशाक अली था।
आपातकाल में अपनी सेवा की
भूमिका को निभाने के लिए
मैं अपने नगर के ऐसे निष्ठावान सजग प्रहरी को नमन
करता हूँ।
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Sunday, 29 March 2020
संस्मरण "निष्ठावान सजग प्रहरी इशाक अली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (30-03-2020) को 'ये लोग देश हैं, देशद्रोही नहीं' ( चर्चाअंक - 3656) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
प्रेरक प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही प्रेरक वर्दी में इस प्रकार के लोग आजकल बहुत कम ही बचे हुए हैं पर कह सकते हैं इंसानियत अभी बाकी है लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं बहुत-बहुत साधुवाद भाई इसाक अली जी को
ReplyDeleteप्रेरणा ग्रहण करने लायक वाक़िए आम जिंदगी के ।
ReplyDeleteमानवता जिंदा है अभी ।
बहुत सुंदर।
Interpersonal Relationship
ReplyDeleteसच में ऐसे ही लोगो के वजह से आज भी इंसानियत जिन्दा है और आगे भी जिन्दा रहेगा अगर मई ये कहु की इन्ही लोगो के वजह से सायद हम सकून से सोते है |
ReplyDeletejawal-ka-waqt-kya-hai
शास्त्री जी आपकी रचनाओं में अलग ही आनंद है । खूबसूरत सृजन करते है ।
ReplyDeleteसादर