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Thursday 30 April 2009

"बाबा नागार्जुन अक्सर याद आते हैं।" डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’


उत्तर-प्रदेश के नैनीताल जिले के काशीपुर शहर (यह अब उत्तराखण्ड में है) से धुमक्कड़ प्रकृति के बाबा नागार्जुन का काफी लगाव था।


सन् 1985 से 1998 तक बाबा प्रति वर्ष एक सप्ताह के लिए काशीपुर आते थे। वहाँ वे अपने पुत्र तुल्य हिन्दी के प्रोफेसर वाचस्पति जी के यहाँ ही रहते थे।

मेरा भी बाबा से परिचय वाचस्पति जी के सौजन्य से ही हुआ था। फिर तो इतनी घनिष्ठता बढ़ गयी कि बाबा मुझे भी अपने पुत्र के समान ही मानने लगे और कई बार मेरे घर में प्रवास किया।

प्रो0 वाचस्पति का स्थानानतरण जब जयहरिखाल (लैन्सडाउन) से काशीपुर हो गया तो बाबा ने उन्हें एक पत्र भी लिखा। जो उस समय अमर उजाला बरेली संस्करण में छपा था।

इसके साथ बाबा नागार्जुन का एक दुर्लभ बिना दाढ़ी वाला चित्र भी है। जिसमें बाबा के साथ प्रो0 वाचस्पति भी हैं।

बाबा ने 15 अक्टूबर,1998 को अपना मुण्डन कराया था। उसी समय का यह दुर्लभ चित्र प्रो0 वाचस्पति और अमर उजाला के सौजन्य से प्रकाशित कर रहा हूँ।


बाबा अक्सर अपनी इस रचना को सुनाते थे-



खड़ी हो गयी चाँपकर कंगालों की हूक


नभ में विपुल विराट सी शासन की बन्दूक


उस हिटलरी गुमान पर सभी रहे हैं मूक


जिसमें कानी हो गयी शासन की बन्दूक


बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक


धन्य-धन्य, वह धन्य है, शासन की बन्दूक


सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक


जहाँ-तहाँ ठगने लगी, शासन की बन्दूक


जले ठूँठ पर बैठ कर, गयी कोकिला कूक


बाल न बाँका कर सकी, शासन की बन्दूक


"दंगल अब तैयार हो गया।" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

यह कविता मेरे पुराने ब्लॉग ‘‘उच्चारण" पर भी उपलब्ध है।



शब्दों के हथियार संभालो, सपना अब साकार हो गया।

ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।


करो वन्दना सरस्वती की, रवि ने उजियारा फैलाया,

नई-पुरानी रचना लाओ, रात गयी अब दिन है आया,

गद्य-पद्य लेखनकारी में शामिल यह परिवार हो गया।

ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।




देश-प्रान्त का भेद नही है, भाषा का तकरार नही है,

ज्ञानी-ज्ञान, विचार मंच है, दुराचार-व्यभिचार नही है,

स्वस्थ विचारों को रखने का, माध्यम ये दरबार हो गया।

ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।




सावधान हो कर के अपने, तरकश में से तर्क निकालो,

मस्तक की मिक्सी में मथकर, सुधा-सरीखा अर्क निकालो,

हार न मानो रार न ठानो, दंगल अब परिवार हो गया।

ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।