दिल का दर्पण है,
काव्य संग्रह "मेरा
गाँव मिल गया है"
आज उत्तरायणी
कौतिक मेले में खटीमा के प्रख्यात चिकित्सक डॉ.चन्द्र शेखर जोशी की काव्यपुस्तिका "मेरा गाँव मिल गया है" का विमोचन किया
गया।
दो घंटे के अल्प समय में "मेरा गाँव मिल गया है" को बाँचने का काम
करके कुछ शब्द लिखने का प्रयास किया है।
मुझे अधिकांश कविगोष्ठियों में प्रियवर चन्द्र शेखर जोशी का काव्यपाठ सुनने
का अवसर मिला है। जिसमें उनकी सहजभाव से रचित अभिव्यक्तियों का दिग्दर्शन हुआ
है। जिस बात को तुकान्त छन्द में बाँधकर प्रयास करके कहता है। उसे डॉ.चन्द्र शेखर
जोशी सीधी-सादी जबान में बिना लाग-लपेट के सहजता से व्यक्त कर देते हैं। उनकी यही
शैली उनकी लोकप्रियता में चारचाँद लगा देती है।
"मेरा
गाँव मिल गया है" के बारे में दो शब्द लिखते हुए हेमवती नन्दन बहुगुणा
स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खटीमा के एसोसियेट प्रोफेसर (हिन्दी) डॉ.सिद्धेश्वर
सिंह कहते हैं-
“शब्द संसार में सहृदय सृजन ...डॉ.चन्द्र
शेखर जोशी चिकित्सक है, हृदयरोग विशेषज्ञ हैं और इस संग्रह की कविताओं को देखकर
निश्चिततौर पर कहा जा सकता है कि दृदय की बनावट, उसके क्रिया संकेतों, उसकी
व्याधि व निदान को तो समझते ही हैं, हृदय के मर्म और हृदय की बात को बखूबी समझते
हैं और उसे वाणी देने में भी सफल व सृजनशील हैं।“
इस काव्यसंग्रह की प्रमुख रचनाओं की
झलक इस प्रकार है।
“दुविधा” शीर्षक से रचित रचना में कवि ने
पर्वतीय बुजुर्ग का जीवन्त चित्र खींचते हुए लिखा है-
“तजुर्बा जमाने का चेहरे पर लिखे
आज राह चलते क बूबू दिखे
चूसे हुए आम सा चेहरा
आंखों तले गड्ढों का पहरा
तेज फर्राटा सड़कों पर
गांव का बूढ़ा-बहरा...”
दसौला गाँव (पहाड़ीगाँव) का दृश्य खींचते
हुए कवि लिखता है-
“पूरब के पहाड़ की
काली छाया डराती है
मेरे यहाँ
भोर-भोर नहीं आती है
यहाँ ओस
बहुत ठण्ड पीती है
लम्बा जीती है...”
एक और रचना “बूँद सी किस्मत” में कवि
लिखता है-
“मैं बूँद सी
किसम्त लिए
फिरता हूँ
कभी पत्ते पर
कभी पत्थर पर गिरता हूँ...”
हम सबकी जिन्दगी में हर साल पर्व
आते हैं मगर हम कभी उन पर अपनी व्यवहारिकता नहीं दिखाते हैं। लेकिन कवि ने अपनी सोच
को इस छोटी सी क्षणिका “लुप्तप्राय जीव” के माध्यम से कुछ इस प्रकार व्यक्त किया
है-
“जो थे
जन्मजात इमानदार
सिर्फ उनको ही
बुलाया था
जनाब!
पिछला गणतन्त्रदिस
अकेले ही मनाया था”
“जीवन संगीत” रचना में कवि कहता
है-
“दर्द सी मुस्कान का
कब किसने राज खोला
हद जब बेहद हो गयी
सुरसंग साज बोला...”
पालतू पशु “श्वान” के बारे में कवि
कहता है-
“वह चौपायी श्वान
मैं दोपाया इन्सान
जब साथ-साथ रहते
नैनै उसके, मुझसे कहते
है इन्सान, करता परेशान
तुम्हारा सन्तुलित, मौन बेईमान...”
समीक्षा की दृष्टि से मैं कृति के बारे
में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि काव्यसंकलन "मेरा गाँव मिल गया है" में मानवता, प्रेम और हृदय की सम्वेदना मणिकांचन संगम है।
कृति पठनीय ही नही अपितु संग्रहणीय भी है और कृति में अतुकान्त काव्य का
नैसर्गिक सौन्दर्य निहित है। जो पाठकों के हृदय पर सीधा असर करता है।
मुझे पूरा विश्वास है कि यह काव्यसंग्रह सभी वर्गों के पाठकों में मानवीय सम्वेदना जगाने
में सक्षम है। इसके साथ ही मुझे आशा है कि यह "मेरा गाँव मिल गया है" समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा।
डॉ.चन्द्र शेखर जोशी द्वारा रचित "मेरा गाँव मिल गया है" काव्यसंकलन को
मार्डर्न यूटोपियन सोसायटी, जमुना मेमोरियल हास्पीटल, खटीमा (उत्तराखण्ड) द्वारा
प्रकाशित किया गया है तथा हिमालया प्रिन्टर्स, खटीमा द्वारा मुद्रित किया है। जिसमें
56 पृष्ठ है और इसका मूल्य मात्र 70/- रु. है।
पुस्तक मिलने का पता है-
मार्डर्न
यूटोपियन सोसायटी,
प्रथम तल,
जमुनामेमोरियल हास्पीटल,
खटीमा, जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड)
मो.नम्बर-09897733900,
09837783984
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262
308
E-Mail
. roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
फोन-(05943) 250129
मोबाइल-09368499921
|
समर्थक
Sunday 12 January 2014
"मेरा गाँव मिल गया है" की समीक्षा (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Subscribe to:
Posts (Atom)