समर्थक

Sunday 29 March 2020

संस्मरण "निष्ठावान सजग प्रहरी इशाक अली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

        अभी दो दिन पहले की ही तो बात है। घर में राशन, दालें आदि समाप्त हो गये थे। पूरा नगर लॉकडाउन था। आवाजाही बिल्कुल बन्द थी। मैंने स्थानीय किराना व्यापारी को फोन करके घर का सामान लिखवा दिया। लेकिन उसने कहा कि सामान तो मैं पैक करके रख दूँगा। मगर लेकर कैसे जाओगे?
         मैंने व्यापारी से कहा कि आप अपने किसी कर्मचारी से भिजवा दीजिए। परन्तु उसने असमर्थता व्यक्त की।
       तभी मुझे ध्यान आया कि स्थानीय खटीमा पुलिस कोतवाली में मेरी पहचान का एक सिपाही है। उससे सम्पर्क करता हूँ। शायद वो ही मुझे बाजार जाने की कोई व्यवस्था करके मुझे अनुमति दिलवा दे।
      और मैंने उसे फोन कर दिया। 
      जब उससे बात हुई तो उसने कहा कि अंकल आपकी उम्र तो 65 साल से अधिक है आपको तो वैसे ही इजाजत नहीं मिलेगी। लेकिन उसने कहा कि मैं आपको अपना व्हाट्सप नम्बर देता हूँ। आप मुझे दुकानदार का पता दे दें और मेरा नम्बर उसे दे दें तथा उसका फोन नम्बर मुझे दे दें। मैं खुद आपके घर सामान पहुँचाऊँगा।
     पुलिस की इस मानवीय सम्वेदना पर मेरे पास शुक्रिया के लिए शब्द पर्याप्त नहीं थे। बस दिल से दुआ ही निकली।
धन्य हैं ऐसे कोरोना वीर!
और हाँ, 
इस कांस्टेबिल का नाम इशाक अली था।
आपातकाल में अपनी सेवा की भूमिका को निभाने के लिए 
मैं अपने नगर के ऐसे निष्ठावान सजग प्रहरी को नमन करता हूँ।