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Wednesday 6 November 2019

समीक्षा “खेलें घोड़ा-घोड़ा-डॉ.आर.पी.सारस्वत” समीक्षक (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

बाल सुलभ जिज्ञासाओं की अभिव्यक्तियाँ
“खेलें घोड़ा-घोड़ा”
      सहारनपुर निवासी डॉ.आर.पी.सारस्वत 2016 में मेरे द्वारा आयोजित “राष्ट्रीय दोहाकार समागम“ में खटीमा पधारे थे। मेरी धारणा थी कि ये दोहाकार ही हैं मगर तीन-चार दिन पूर्व मुझे इनका बाल कविता संग्रह “खेलें घोड़ा-घोड़ा” प्राप्त हुई। तो मेरी धारणा बदल गई और बाल साहित्यकार के रूप में इनका नया अक्स उभरकर सामने आया। इनकी बालकृति “खेलें घोड़ा-घोड़ा” पर कुछ शब्द लिखने के लिए आज डेस्कटॉप ऑन करते ही मेरी उँगलियाँ की-बोर्ड पर चलने लगी।

      “नीरजा स्मृति बाल साहित्य न्यास” सहारनपुर द्वारा प्रकाशित 7X11 इंच के साइज में छपी इस बालकृति में 32 पृष्ठ हैं और इसमें चौबीस बाल गीतों को श्वेत-श्याम चित्रों के साथ बाल सुपाठ्य फॉण्ट में आकार दिया गया है। जिसका मूल्य 100/- मात्र है।
      बाल गीतों के संग्रह में मेला, दादी, नानी, टीवी, बन्दर, गौरैया, चिड़ियाँ, पेड़, छुट्टी, हाथी, सूरज, बादल, आदि बाल सुलभ विषयों पर रोचक बाल रचनाएँ हैं, जो बालकों को सदैव लुभाते हैं।
      बाल साहित्यकार डॉ.आर.पी.सारस्वत ने कृति के शीर्षक “खेलें घोड़ा-घोड़ा” से इसका श्रीगणेश किया है-
“आओ-आओ दादू आओ
खेलें घोड़ा-घोड़ा!
देखो दादू मुझको अपनी
बातों में न घुमाना
सच कहता हूँ सीधे से
फौरन घोड़ा बन जाना...”
      इसी मिजाज की मेले पर आधारित एक और रचना भी बाल सुलभ है-
“कोई सुनना नहीं बहाना
मुझको है मेले में जाना
नाम जलेबी का आया है
मुँह में पानी भर आया है
गर्म समोसे बुला रहे है
सिंघाड़े मुँह फुला रहे हैं
सुनो भीड़ में मत खो जाना
मुझको है मेले में जाना”
       गौरैया के लुप्त प्रायः होने पर कवि ने बालक की जिज्ञासा को प्रकट करते हुए लिखा है-
“गाँव गया था सब कुछ था
पर गौरैया ना पड़ी दिखाई
जाने किसकी नजर लगी है
किससे उसने करी ठगी है
गायब चिड़िया कहाँ हो गयी
असमंजस में बैठी ताई”
         पर्यावरण की चिन्ता करते हुए डॉ.आर.पी.सारस्वत ने बच्चों के माध्यम से पेड़ बचाने की गुहार कुछ इस प्रकार से लगाई है-
“आओ-आओ पेड़ लगायें
धरती कितनी प्यारी है
लगती सबसे न्यारी है
आओ इसको और सजायें
आओ-आओ पेड़ लगायें”
        हाथी को जब गुस्सा आया नामक बालक कविता में कवि ने जानवरों को अकारण नहीं सताने पर अपनी कलम इस तरह से चलाई है-
“जी भरके उत्पात मचाया
हाथी को जब गुस्सा आया
जो भी उसके रस्ते आया
सबको सस्ते में निबटाया
जिसने उसको पत्थर मारे
उसको मीलों तक दौड़ाया”
       गरमी के प्रति अपना आक्रोश प्रकट करते हुए सूरज दादा छुट्टी जाओ शीर्षक से बालक की इच्छा को अपने शब्द देते हुए कवि ने कहा है-
“सूरज दादा छुट्टी जाओ
बहुत हो गयी मारा-मारी
तड़प उठी है दुनिया सारी
खुद भी जलो न हमें जलाओ
सूरज दादा छुट्टी जाओ”
         बच्चों को दादा-दादी बहुत अच्छे लगते हैं इसी बात को लेकर कवि ने बच्चों की अभिव्यक्ति को अपने शब्द कुछ इस प्रकार से दिये हैं-
“दादू मेरे प्यारे दादू
मुझसे मिलने आ जाओ
याद आ रही मुझे तुम्हारी
आकर मन बहला जाओ
--
वहाँ तुम्हारा, बिना बिना हमारे
मन कैसे लगता होगा
वक्त तुम्हारा टीवी-मोबाइल
पर ही कटता होगा
हमको भी तो नई कहानी
आकर और सुना जाओ”
       बाल गीतों के इस उपयोगी संग्रह “खेलें-खेलें घोड़ा” में जितनी भी बाल रचनाएँ हैं सभी बहुत भावप्रवण और मनमोहक हैं।
       बाल साहित्य रचना केवल तुकबन्दी करना ही नहीं होता अपितु बाल साहित्य को रचने के लिए स्वयं भी बालक बन जाना पड़ता है, मेरा ऐसा मानना है । जिसको विद्वान बालसाहित्यकार डॉ.आर.पी.सारस्वत ने बाखूबी निभाया है।
       इस बाल कविता संग्रह में कवि ने बाल साहित्य की सभी विशेषताओं का संग-साथ लेकर जो निर्वहन किया है वह प्रशंसनीय है।
       मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि “खेलें-खेलें घोड़ा” की कविताएँ और बालगीत बच्चों के ही नहीं अपितु बड़ों के दिल को अवश्य गुदगुदायेंगें और समीक्षकों के लिए भी यह कृति उपादेय सिद्ध होगी। इस उपयोगी बाल लेखन के लिए मैं डॉ.आर.पी.सारस्वत को हृदय से धन्यवाद देता हूँ।
दिनांकः 05 नवम्बर, 2019  
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
समीक्षक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
मोबाइल-7906360576
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com

Wednesday 23 October 2019

समीक्षा “तीन अध्याय-कथा संग्रह” समीक्षक (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति
 
      अदबी दुनिया में साधना वैद अब तक ऐसा नाम था जो काव्य के लिए ही जाना जाता था। किन्तु हाल ही में इनका कथा संग्रह तीन अध्याय और बाल कथा संग्रह “एक फुट के मजनूँमियाँ” प्रकाशित हुआ तो लगा कि ये न केवल एक कवयित्री है अपितु एक सफल कथाकारा और गद्य लेखिका भी हैं।
     एक सौ बीस पृष्ट के इस कहानी संग्रह में कुल 24 कहानियाँ हैं। जिसका मूल्य 400 रुपये मात्र है। जिसे “निखिल पब्लिशर्स एण्ड डिस्ट्रीब्यूटर्स” आगरा से प्रकाशित किया है। लगभग एक महीने से यह संग्रह मेरे पास समीक्षा की कतार में था। आज समय मिला तो तीन अध्याय के बारे में कुछ शब्द लिख रहा हूँ।
      साहित्य की दो विधाएँ हैं गद्य और पद्य, जो साहित्यकार की देन होती हैं और वह समाज को दिशा प्रदान करती हैं, जीने का मकसद बताती हैं। कथाकारों ने अपनी कहानियों के माध्यम से समाज को कुछ न कुछ प्रेरणा देने का प्रयास किया है। तीन अध्याय भी एक ऐसा ही प्रयोग है। जो साधना वैद की कलम से निकला है। इस कथा संग्रह के शीर्षक की सार्थकता के बारे में स्वयं लेखिका ने ही अपने समर्पण में स्पष्ट कर दिया है-
“मेरा मानना है कि हर नारी को अपने जीवन काल में तीन अध्यायों से अवश्यमभावी रूप से गुजरना पड़ता है...”
      मैं लेखिका के कथ्य को और अधिक स्पष्ट करते हुए यह कहूँगा कि नारी ही नहीं अपितु समस्त चराचर जगत को जीवन के तीन अध्यायों (बचपन-यौवन और वृद्धावस्था) से रूबरू होना पड़ता है। तीन अध्याय  संग्रह में लेखिका ने अपनी चौबीस कहानियों में जन जीवन से जुड़ी कड़ियों को कथाओं का रूप दिया है।
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     लेखिका ने अपने कथा संग्रह का श्री गणेश “जमाना बदल गया है” की कहानी से किया है जिसमें प्रचीन और अर्वाचीन का तुलनात्मक आकलन प्रस्तुत किया है। जिसमें सभी कुछ तो वही पहले जैसा है मगर उसका रूप बदल गया है जिसमें पहले जैसी आत्मीयता नहीं है। वैभव का दिखावा अधिक है और अपनापन और प्यार कहीं खो गया है।
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     संकलन की दूसरी कथा “सुनती हो शुभ्रा” पुरुष प्रधान समाज में एक महिला को महिला होने का आभास कराया गया है। जिसमें गृहणी पर ही सारे काम की जिम्मेदारी का बोझ लाद दिया जाता है।
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     तीन अध्याय कथा संग्रह में “नई फ्रॉक” एक निम्न वर्ग के लोगों की जिन्दगी की मार्मिक कहानी है। जो सीधे मन पर असर करती है।
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     इस संग्रह में एक और कथा “फैशनपरस्त” के नाम से एक कामवाली की कथा है। जो हमारे समाज की विडम्बना को दर्शाती है। जिसके पास अपने वेतन से नये कपड़े खरीदने की हैसियत नहीं है। वह जिन घरों में काम करती है वहाँ से ही कभी-कभार कुछ पुराने कपड़े मिल जाते हैं। मगर जब वह उनको पहनती है तो उसे फैसनपरस्त होने के उलाहने मिलते हैं।
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     “अनाथ-सनाथ” नामक कथा में कथा लेखिका साधना वैद ने नन्हीं दिशा के  उसकी दादी के प्रति निश्छल प्यार की कहानी है। जिसके जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। देखिए इस कथा का उपसंहार-
“...आतंकित दिशा आज एक बार फिर अनाथ हुई जा रही थी।
इस बार अनाथाश्रम की जगह वह होस्टल भेजी जा रही थी,
नितान्त अपरिचित और अनजान लोगों के बीच।“
      हमारे आस-पास जो कुछ घट रहा है उसे कहानीकार साधना वैद ने बाखूबी अपनी लेखनी से चित्रित किया है। कहानी के सभी पहलुओं को संग-साथ लेकर कथा शैली में ढालना एक दुष्कर कार्य होता है मगर विदूषी लेखिका ने इस कार्य को सम्भव कर दिखाया है। 
      कुल मिलाकर देखा जाये तो इस कथा संग्रह की सभी कहानी बहुत मार्मिक और पठनीय है। यह श्लाघा नहीं किन्तु हकीकत है और मैं बस इतना ही कह सकता हूँ कि यह कथायें कथा जगत में मील का पत्थर साबित होंगी।
      मुझे आशा ही नहीं अपितु पूरा विश्वास भी है कि तीन अध्याय  की कहानियाँ पाठकों के दिल की गहराइयों तक जाकर अपनी जगह बनायेगी और समीक्षकों की दृष्टि में भी यह उपादेय सिद्ध होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-
समीक्षक
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262308
मोबाइल-7906360576
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
E-Mail . roopchandrashastri@gmail.com