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Friday 6 January 2012

"विनीत संग पल्लवी-सत्यकथा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

उसके मन में बहुत कुंठाए थीं, जिसके कारण मेरा छोटा पुत्र लगभग मानसिक रोगी हो गया था। कभी दिल में दर्द तो कभी उसके सिर में भयंकर दर्द हो जाता था। वह बहुत दिनों से मन में दबाए हुए बैठा था कि कैसे वह अपना राज़ परिवार वालों के साथ साझा करे।
लेकिन एक दिन मैंने प्यार से उससे पूछ ही लिया कि बेटा क्या बात है जो तुम युवावस्था में इतने परेशान रहते हो।
उसने कहा- पापा पहले यह बताओ कि मेरी बात सुनकर आप मुझे घर से तो निकाल नहीं दोगे।
मैंने कहा- बेटा! तुम कैसी बात करते हो? कोई अपनी सन्तान को घर से भला क्यों निकालेगा?

बेटे ने उत्तर दिया- पापा मैंने दो साल पहले 2 फरवरी, 2010 को आर्य समाज, पीलीभीत में शादी कर ली है और उसके बाद हिन्दू विवाह अधिनियम के अन्तर्गत सितारगंज फैमिली कोर्ट से अपने विवाह को पंजीकृत भी करा लिया है।
मैंने सहजभाव से पुत्र विनीत के निर्णय को स्वीकार कर लिया और उसे बधाई दी। अब मैंने पूछा कि हमारी बहू कौन है और क्या करती है. कहाँ की रहने वाली है?
विनीत ने बताया कि पापा! वह इंजीनियर है। उसका नाम पल्लवी है, रुड़की की रहने वाली है और देहरादून में मैनेजमेंट के किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाती है।
इस पर मैंने विनीत से कहा कि बेटा! पल्लवी को शीघ्र ही यहाँ बुला लो। मेरी बात मानकर उसने पल्लवी को घर पर बुला लिया है।
विनीत की मम्मी जी ने थोड़ा सा विरोध तो अवश्य किया लेकिन अब उन्होंने भी पल्लवी को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर लिया है। हमारे घर में तो खुशियाँ अनायास ही खुद-ब-खुद चल कर आ गईं हैं।
सोच रहा हूँ कि इनकी वैवाहिक वर्षगाँठ पर पूरे शहरभर का प्रीतिभोज करके दोनों के विवाह को सामाजिक मान्यता भी दिला दूँ!
बेटी के रूप में मिली पुत्रवधु "पल्लवी"
पुत्रवधु को आशीर्वाद देते हुए हम पति-पत्नी
विनीत ने परिवार की मौजूदगी में पल्लवी को अँगूठी पहनाई।
पल्लवी की सासू माँ
विनीत से अपनी बहू की माँग भरवाती हुई।
सुहाग का प्रतीक विछुए पहनाई हुई श्रीमती अमर भारती
अब पैरों में पायल भी तो पहनानी थी।
श्रीमती अमर भारती अपने गोत्र "गरुड़िया" का नाम लेकर
दोनों का सिरजोड़ा करके अपने गोत्र में मिलाती हुई
अपनी दादी सासू के साथ श्रीमती पल्लवी
हम दोनों ने वस्त्र और आभूषण देकर
पल्लवी को अपनी पुत्रवधु के रूप में स्वीकार कर लिया!
चि.विनीत और आयुष्मती पल्लवी

जुग-जुग जियो और सदा फूलो-फलो!