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Friday 30 March 2012

"कर्मनाशा-मर्मस्पर्शी रचनाओं का संकलन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मर्मस्पर्शी रचनाओं का संकलन है
कर्मनाशा
    लगभग दो माह पूर्व डॉ. सिद्धेश्वर सिंह द्वारा रचित मुझे एक कविता संग्रह मिला जिसका नाम था कर्मनाशा। साठ रचनाओं से सुसज्जित 128 पृष्ठों की इस पुस्तक को अन्तिका प्रकाशन, गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसका मूल्य रु.225/- रखा गया है। जनसाधारण की सोच से परे इसका आवरण चित्र रवीन्द्र व्यास ने तैयार किया है।
       इस कविता संग्रह को आत्मसात् करते हुए मैंने महसूस किया है कि इसके रचयिता डॉ. सिद्धेश्वर सिंह स्वयं में एक कविताकोष हैं। चाहे उनकी लेखनी से रचना निकले या मुँह से बात निकले वह अपने आप में कविता से कम नहीं होती है।
       रचनाधर्मी ने निज़ार कब्बानी की कविता के अनुवाद के रूप में अपनी इच्छा प्रकट करते हुए लिखा है-
तुम्हारी आँखों में
मैं जगमग करूँगा आने वाले वक्त को
स्थिर कर दूँगा समय की आवाजाही
और काल के असमाप्य चित्रपट से
पोंछ दूँगा उस लकीर को
जिससे विलय होता है यह क्षण
       और निकाल ही लिया उस पगदण्डी को जिसे बीच का रास्ता कहा जाता है-
नहीं थी
कहीं थी ही नहीं बीच की राह
खोजता रहा
होता रहा तबाह.....
       आज जमाना इण्टरनेट का है और उसमें एक साइट है फेसबुक! जिसके बारे में कवि ने प्रकाश डाला है कुछ इस प्रकार से-
की-बोर्ड की काया पर
अनवरत-अहर्निश
टिक-टिक टुक-टुक

खुलती सी है इक दुनिया
कुछ दौड़-भाग
कुछ थम-थम रुक-रुक....
        हर वर्ष नया साल आता है लोग नये साल में बहुत सी कामनाएँ करते हैं मगर रचनाधर्मी ने इसे बेसुरा संगीत का नाम देते हुए लिखा है-
देखो तो
शुरू हो गया और एक नया साल
नये-नये तरीके और औजार हैं
सहज उपलब्ध
जिन पर सवार होकर
यात्रा कर रहीं हैं शुभकामनाएँ
और उड़े जा रहे हैं संदेश.....
......   ......    .......
ग़ज़ब नक्काशी उभर आयी है हर ओर
......   ......    .......
और रात्रि की नीरवता में
भरता जा रहा है
एक बेसुरा संगीत
         कर्मनाशा के बारे में भी कवि ने पाठकों को जानकारी दी है कि आखिर कर्मनाशा क्या है?....
फूली हुई सरसों के
खेतों के ठीक बीच से
सकुचाकर निकलती है एक पतली धारा।
......   ......    .......
भला बताओ
फूली हुई सरसों
और नहाती हुई स्त्रियों के सानिध्य में
कोई भी नदी
आखिर कैसे हो सकती है अपवित्र
           पुस्तक के रचयिता ने अपने इस संग्रह में पर्यायवाची, कस्बे में कविगोष्ठी, अंकुरण, वेलेण्टाइन-डे, बालदिवस, लैपट़ाप, तलाश, सितारे, प्रतीक्षा, घृणा, तिलिस्म, हथेलियाँ, टोपियाँ आदि विविध विषयों पर भी अपनी सहज बात कविता में कही है।
           अन्त में इतना ही कहूँगा कि इस पुस्तक के रचयिता डॉ. सिद्धेश्वर सिंह बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और खटीमा के राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी के प्राध्यापक हैं। लेकिन वे अंग्रेजी पर भी हिन्दी के समान ही अधिकार रखते हैं। इसीलिए उनको अनुवाद में खासी दिलचस्पी है। कुल मिलाकर यही कहूँगा कि उनकी कर्मनाशा एक पठनीय और संग्रहणीय काव्य पुस्तिका है।

Saturday 10 March 2012

"समीक्षा-टूटते सितारों की उड़ान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

टूटते सितारों की उड़ान
सत्यम् शिवम् ब्लॉगिस्तान की दुनिया में एक ऐसा युवा चेहरा है जिसने अपनी लेखनी के बल पर हिन्दी ब्लॉगिंग में अपनी एक पहचान बनाई है। ये पेशे से अभियन्ता हैं लेकिन शब्दों को भी इन्होंने अपने अभियन्त्रण से नियन्त्रित किया है।
स्वार्थी दुनिया में लोग अपनी कृतियों को ही प्रकाशित करा कर सुख का अनुभव करते हैं लेकिन इन्होंने निःस्वार्थभाव से हिन्दी ब्लॉगिंग के जाने माने बीस रचनाधर्मियों की रचनाओं को एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराया है। इस काव्य संकलन को इन्होंने नाम दिया है टूटते सितारों की उड़ान
जब इन्होंने मुझसे इस विषय में चर्चा की तो मैं चौंका कि 20 कवियों की काव्य माधुरियों के संकलन का नाम टूटते सितारों की उड़ान क्यों रखा गया है। लेकिन मंथन करने के बाद समझ में आया कि इसका शीर्षक बिल्कुल सही रखा गया है। क्योंकि सितारों की किस्मत ही टूटना रही है। और हो भी क्यों नहीं। अन्तर्जाल पर  झिलमिलाते सितारों की उडान कब थम जाए कोई नहीं जानता है। मैंने अपने तीन वर्षों के अनुभवों से यही तो सीखा है!
दो सौ आठ पृष्ठों के इस काव्य संग्रह को उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ ने प्रकाशित किया है। जिसका ISBN 978-81-921666-4-3 है और इसका सम्पादन इं. सत्यम् शिवम् द्वारा किया गया है। यह पेपर बैक संस्करण हैं जिसका मूल्य मात्र 251रुपये रखा गया है।
सम्पादक ने अपनी बात में कहा भी है
"जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है और काव्य सृजन संघर्षरत मन की व्यथा के उदगार....।"
"आज के परिवेश में लोग ऐसा सोचने लगे हैं, जितना ज्यादा दिखावा उतना ज्यादा फायदा। पर इस सन्दर्भ में मेरा सोचना अलग है। मैं ऐसा सोचता हूँ कि जो वाकई सुन्दर है, उत्कृष्ट है उसकी सुन्दरता तो शाश्वत है।.......क्योंकि सफलता कुछ और नहीं बस आत्म संतुष्टि है।"
सम्पादक आगे कहता है कि-
"मैं तुम्हारे रंग में अब रंग गया हूँ,
संग तेरे ही तुझी में ढल गया हूँ।
कौन सी पहचान मेरी कौन हूँ मैं?
तुम हो मेरे या मैं तेरा हो गया हूँ।।".....
"जिसके कारण मैं आज टूटते सितारों की उड़ान काव्य का संपादन कर रहा हूँ। बड़ी ही मशक्कत और तल्लीनता के साथ मैंने 20 भावप्रधान कवियों को इस काव्य संग्रह के लिए चुना है। जिनकी भावनाएँ दिल पर गहरा असर करती हैं...।"

"टूटते सितारों की उड़ान" में जिन बीस कवियों की काव्य माधुरियों को स्थान दिया गया है वे हैं-
1-      राज शिवम्
2-      संगीता स्वरूप
3-      रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
4-      दर्शन कौर धनोए
5-      वन्दना गुप्ता
6-      अशोक शुक्ला
7-      गौरव 'सुमन'
8-      बब्बन पाण्डेय
9-      माहेश्वरी कानेरी
10- नीरज द्विवेदी
11- लक्ष्मी नारायण लहरे 'साहिल'
12- साधना वैद
13- दिव्येन्द्र कुमार 'रसिक'
14- विभोर गुप्ता
15- नील कमल वैष्णव 'अनिश'
16- सुषमा 'आहुति'
17- उदयवीर सिंह
18- प्रदीप कुमार साहनी (दीपक)
19- सत्यम् शिवम्
अन्त में मैं इस संकलन के बारे में इतना ही कहूँगा कि यह एक पठनीय और संग्रहणीय काव्य संग्रह है
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड)
वेब साइट- http://uchcharan.blogspot.in/
फोन/फैक्स- 05943-250207, 05943-250129
Mobiles: 
09368499921, 
09997996437, 07417619828