आज प्रस्तुत है हाल ही में प्रकाशित
संगीता स्वरूप 'गीत' के काव्य संकलन
"उजला आसमाँ" की समीक्षा।
समीक्षा करना तो मैं जानता नहीं हूँ मगर संगीता स्वरूप जी ने बहुत ही स्नेह से इस पुस्तक को मुझ तक पहुँचाया है इसलिए प्रतिक्रियास्वरूप कुछ लिखना अपना धर्म समझता हूँ।
पुस्तक के बारे में कुछ कहने से पहले मैं संगीता जी के बारे में कुछ कहना जरूरी समझता हूँ।
श्री सुरेशचन्द्र गुप्ता और श्रीमती सरोज गुप्ता की पुत्री संगीता का जन्म सात मई 1953 को रुड़की में हुआ था। इन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ (उ.प्र.) से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इन्हें बाल्यकाल से ही खेलों में बहुत रुचि रही है। यह अपने विश्वविद्यालय की टेबिलटेनिस टीम की कैप्टेन भी रह चुकी हैं। संगीता जी का विवाह पेशे से इंजीनियर प्रशान्त स्वरूप के हुआ। इन्होंने केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन भी किया लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों को देखते हुए इन्होंने सेवा को स्वेच्छा से छोड़ दिया। वर्तमान समय में आप अपने पति एवं पुत्र के साथ दिल्ली में रह रहीं हैं।
जहाँ आज कुछ लोग यह कह रहे हैं कि ब्लॉग पर साहित्य जैसा कुछ नहीं होता है, वहीं संगीता स्वरूप ने यह सिद्ध करके दिखाया है कि ब्लॉग पर साहित्य भी है और साहित्यकार भी। क्योंकि “उजला आसमाँ” ब्लॉगिंग की ही देन है।
आकर्षक हार्डबाइंडिग में गुँथी हुई 104 पृष्ठों की इस काव्यपुस्तिका को शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।
इसमें संकलित अधिकांश रचनाओं को मैं इनके ब्लॉग “गीत” तथा “राजभाषा हिन्दी” पर पढ़ चुका हूँ।
परिवेश में व्याप्त कुरीतियों और विसंगतियों को कवयित्री ने अपनी पैनी दृष्टि से देखा और निर्भय होकर उस पर अपनी लेखनी चलाई।
“चिलचिलाती धूप में
चीथड़े पहने हुए
चौराहे पर खड़ा
चौदह बरस का बालक
चिल्ला रहा था
आज की ताजा खबर........
बाबू ले लो अखबार
आज की ताजा खबर
शिक्षा का सबको अधिकार”
पुत्र होने पर माँ का सम्मान और पुत्री होने पर माँ का तिरस्कार देखकर कवयित्री के मन में भाव कुछ इस तरह जन्म लेते हैं-
“न जाने क्यों आज भी हमारे समाज में
हर घर परिवार में
पुत्र की चाहत का इज़हार किया जाता है
गर बेटी हो जाए तो
माँ का तिरस्कार किया जाता है........”
रचना के अन्त में ये लिखती हैं-
“बेटियाँ मन के आँगन में गूँजती
पायल की रुन-झुन होती हैं
उनके जीवन के गीतों में
प्यारी सी धुन होती हैं”
मार्मिक शब्दों में समाज की मानसिकता पर चोट करने से भी संगीता जी ने कभी अपना मुँह नहीं फेरा है-
“रचयिता सृष्टि की” रचना में अपनी बात को शुरू करते हुए रचनाकर्त्री ने लिखा है-
“मां के गर्भ में साँस लेते हुए
मैं खुश हूँ बहुत......
.............
क्या होगा?
परीक्षण का परिणाम।
....................
माँ बेतहासा रो रही है......
मना कर रही है
...............
इस बार भी परीक्षण में
कन्या भ्रूण ही आ गया है
इसीलिए बाबा ने
मेरी मौत पर हस्ताक्षर कर दिया है........”
“उजला आसमाँ” पुस्तक का मूल्य 125 रुपये है जो अधिक लगता है किन्तु इस मँहगाई के युग में यह इतना अधिक भी नहीं कि पाठक इसको खरीद ही न सके। इस संकलन में जोड़ी गयीं रचनाएँ तो अमूल्य है। जिसमें जीवन से जुड़े हुए सभी प्रमुख विषयों पर सारगर्भित रचनाएँ संकलित हैं।
संकलन को आद्योपान्त पढ़ने के बाद मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि संगीता जी की कविताएँ न केवल नये युग की कविताएँ है बल्कि कालजयी रचनाओँ का यह एक ऐसा गुलदस्ता है जिसकी ताजगी युगों-युगों तक बनी रहेगी।
पुस्तक के कलापक्ष पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो इसमें पृष्ठों का दुरुपयोग कहीं पर भी नही किया गया है अर्थात् एक रचना एक या दो पृष्ठों पर और पृ्ष्ठ पूरे भरे हुए।
कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि “उजला आसमाँ” एक उपयोगी काव्य संकलन है जिसमें रचनाकर्त्री की विद्वता और परिश्रम परिलक्षित होता है।