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Sunday 28 June 2009

"बचपन की आदते जाती नही हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)







लगभग 200 वर्ष से अधिक पुरानी बात है। उन दिनों स्कूल की जगह काजी जी के मकतब हुआ करते थे। एक दिन काजी जी एक छात्र को डाँट-डाँट कर कह रहे थे कि अबे! मैंने तुझे गधे से आदमी बनाया है।
संयोग से एक कुम्हार मकतब के पास से गुजर रहा था। उसके कानों में काजी जी की यह आवाज पड़ी तो बहुत खुश हुआ। क्योंकि कुम्हार के कोई सन्तान नही थी। उसने कई सारे गधे पाले हुए थे।
घर आकर उसने अपनी पत्नी को मकतब वाली बात बताई तो वह भी बहुत प्रसन्न हुई।
उसने अपने पति से कहा- ‘‘एजी्! हमारे पास जो छोटा गधे का बच्चा है उसका आदमी बनवा लाओ तो हमारा नाम-निशान चल जायेगा।’’
कुम्हार को भी उसकी बात समझ में आ गयी।
अगले दिन प्रातःकाल कुम्हार गधे के बच्चे को लेकर काजी जी के पास गया और बोला- ‘‘काजी जी! मैं एक गधे का बच्चा आपके हवाले करता हूँ। मेहरबानी करके इसका आदमी बना दीजिए।’’
काजी जी ने कुम्हार को लाख समझाया कि भाई गधे का आदमी नही बनाया जा सकता। परन्तु कुम्हार कहाँ मानने वाला था।
उसने काजी जी से कहा कि काजी जी बहाना नही चलेगा। मैं कल मकतब के पास से गुजर रहा था तो आप एक बालक को डाँट-डाँट कर कह रहे थे कि अबे! मैंने तुझे गधे से आदमी बनाया है।
जब काजी जी ने देखा कि यह कुम्हार तो अहमक है इसलिए उन्होंने उसे टालने के ख्याल से कह दिया कि भाई इस गधे मेरे पास को छोड़ जाओ और इसके आदमी बनाने का खर्चा 100 अशर्फी मुझे दे जाओ।
कुम्हार ने खुशी-खुशी काजी जी को 100 अशर्फी दे दीं और पूछा कि काजी जी कितने दिन बाद में आप इसे आदमी बना देंगे।
काजी जी ने एक वर्ष का समय माँग लिया। कुम्हार ने गिन-गिन कर यह एक वर्ष का समय काट लिया और वह काजी जी के पास गया।
उसने कहा- ‘‘काजी जी! जल्दी से मेरे लाल को मेरे हवाले करो।’’
परन्तु काजी जी तो कब के उस गधे के बच्चे को बेच चुके थे और 100 अशर्फिया भी डकार चुके थे।
जब काजी जी को कोई बनाना नही सूझा तो उन्होंने कुम्हार से कहा- ‘‘भैया! वह गधे का बच्चा तो बड़ा चालाक निकला। पड़-लिख कर वह तो ताऊ के जिले का डी0एम0 बन गया है। जाकर उसे पहचान लो।’’
इस तरह से काजी ने कुम्हार से अपनी जान छुड़ा ली।
अब आगे कुम्हार का हाल सुनो-
जैसे ही कुम्हार ने यह खबर सुनी वह खुशी से पागल जैसा हो गया। उसने पूरे मुहल्ले में मिठाई बाँटी और अगले दिन ताऊ के जिले के लिए जाने को तैयार हो गया।
जाते वक्त उसकी पत्नी ने कहा कि वह गधे का बच्चा बड़ा शैतान था। अगर उसने तुम्हें नही पहचाना तो उसे कैसे याद दिलाओगे कि उसे हमने बचपन में बड़े लाड़-प्यार से पाला था। इसलिए उसे ओढ़ाने का यह टाट साथ लेकर जाओ। अगर पहचानने से इन्कार कर दे तो उसे यह टाट का टुकड़ा दिखा देना।
कुम्हार ने पत्नी की बात मान कर टाट का टुकड़ा भी साथ ले लिया।
तीन दिनों के बाद वह ताऊ के जिले में पहुँचा तो पता पूछते-पूछते सीधे ही डी0एम0 की अदालत में पहुँच गया।
डी0एम0 साहब कोर्ट में बैठे थे। उसने वहाँ खड़े सन्तरी से पूछा तो उसने इशारे से बताया कि वो डी0एम0 साहब बैठे हैं।
कुम्हार आगे बढ़कर डी0एम0 साहब को झाँकने लगा।
डी0एम0 साहब ने मन मे सोचा कि यह कोई मूर्ख आदमी होगा और उन्होंने इसकी हरकतों को नजर अन्दाज कर दिया।
अब तो कुम्हार से न रहा गया। उसने अपनी पोटली खोली और टाट निकाल कर जोर जोर से हिलाने लगा।
डी0एम0 साहब से यह बर्दाश्त न हुआ। वे अपनी कुर्सी उठे और कुम्हार के पास आकर उसे दो लात रसीद कर दी।
इस पर कुम्हार को बड़ा गुस्सा आया और वह बोला। अरे गधे के बच्चे- तुझे इतने लाड़-प्यार से मैंने पाला। काजी जी को 100 अशर्फिया देकर तुझे आदमी बनवाया। लेकिन तेरी लात मारने की आदत अब तक नही गयी।
तू पहले भी बहुत लात चलाता था। आज तूने अपनी जात दिखा ही दी।
कहने का तात्पर्य यह है कि "बचपन की आदते जाती नही हैं।"

12 comments:

  1. सही है.. पर काजी बडा़ पाजी निकला..:)

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  2. हा हा हा हा...बहुत बढिया!!!

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  3. भाई वो काज़ी जी कहाँ रहते है? हमारे देश से अरबों रूपये लेकर वो कहाँ गये ?

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  4. हा हा!! बचपन की आदते जाती नही हैं- वाकई!! :)

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  5. डाँट-डाँट...........डाँट-डाँट
    यह हुई न मजेदार बात
    आभार
    मुम्बई टाईगर
    हे प्रभु यह तेरापन्थ

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  6. मजेदार गप्प....!

    इस तराह की गप्पें बचपन में पापा बहुत सुनाया करते थे .....!!

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. बिलकुल सही कहा हमारे पंजाबी मे एक कहावत है वादडियाँ सुजादडियाँ निभण सिराँ दे नाल
    बडिया पोस्त के लिये बधाई

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  9. वाह वाह क्या बात है! बहुत बढ़िया! बड़ा मज़ेदार लगा!

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  10. This comment has been removed by a blog administrator.

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