“हमारी जूती और हमारी ही चाँद”
सीमा सचदेव जी को उलाहना देते हुए मैंने उनके ब्लॉग नन्हा मन की एक पोस्ट पर निम्नांकित टिप्पणी की थी- |
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा… नन्हें सुमन को तो आपने कभी खोल कर भी नही देखा है। सिरफिरे तो हम ही हैं जो यदा-कदा नन्हा मन पर आ जाते हैं! ३० मार्च २०१० ८:०५ PM |
इसके प्रत्युत्तर में सीमा जी ने यह कहा- |
नमस्कार शास्त्री जी , कैसे हैं आप ? बहुमूल्य टिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । आपसे जानकारी मिल रही है कि हमारे ब्लाग की चर्चा चर्चा मंच पर होती है , मुझे इसकी जानकारी नहीं है , अब जाकर देखुंगी । आपकी नाराज़गी जायज़ है , मैं कहीं जा ही नहीं पाती हूं और कहां क्या हो रहा है मुझे पता ही नहीं चलता , इस बात का मुझे स्वयं को खेद है ( कोई सफ़ाई नहीं दूंगी ) नन्हा सुमन मैनें एक दो बार देखा है और बहुत प्यार से सजाया है आपने उसे , उसके लिए हार्दिक शुभ-कामनाएं , आपकी लेखनी का सफ़र यूंही जारी रहे , यही दुआ है । मैनें नन्हामन से आपको जोडा और आपने अपनी सहर्ष सहमति दी तो यह ब्लाग केवल मेरा नहीं आपका भी है ,अब हम तो किसी के ब्लाग पर नहीं जा पाते मजबूरीवश लेकिन आप अपनी ही ब्लाग पर यदा-कदा आते हैं वो कवि ही क्या , जो सिरफ़िरा न हो वो लेखन ही क्या , जो भावों से घिरा न हो सिरफ़िरे होने पर तो नाज़ है एक कलम में समाया पूरा समाज़ है अगर सिरफ़िरे न होते तो क्या कवि होते अगर कवि न होते तो कोटि-२ मील दूर रवि होते रवि को भी जिसने शब्दों मे वश मे कर डाला उस सिरफ़िरे को सलाम हे सिरफ़िरे कवि तेरी कलम को प्रणाम तेरी कलम को प्रणाम seema sachdev |
सभी पढ़ने वालों को इस सिरफिरे की ओर से फर्स्ट अप्रैल की अग्रिम बधाई! |