‘‘पानी से पानी मिले, मिले कीच से कीच।
सज्जन से सज्जन मिले, मिले नीच से नीच।।’’

लोमड़ी बड़ी चालाक थी और सारस बहुत सीधा था, लेकिन फिर भी उनमें मित्रता थी।
सारस भी बड़ी प्रसन्नता से लोमड़ी के यहाँ दावत खाने के लिए गया।
लोमड़ी ने खीर बना रखी थी और अपने स्वभाव के कारण उसके मन में लालच था कि सारस खीर कम ही खाये। अतः लोमड़ी एक छिछले बर्तन में खीर परोस लाई।
अब दोनो खीर खाने लगे।
छिछला बर्तन होने के कारण लोमड़ी तो लपा-लप खीर खाने लगी परन्तु सारस की चोंच में खीर आती ही नही थी।
देखते-देखते लोमड़ी सारी खीर खा गयी और सारस भूखा रह गया।
घर आकर उसने यह बात अपनी पत्नी को बताई तो उसने कहा कि अब तुम लोमड़ी को दावत करना।
पत्नी की बात मान कर सारस ने लोमड़ी को अपने घर दावत के लिए निमन्त्रित कर दिया। लोमड़ी खुशी-खुशी सारस के यहाँ दावत खाने पँहुची।
सारस की पत्नी ने दावत में टमाटर का सूप बनाया था अतः वह एक सुराही में सूप ले कर आ गयी।
सुराही का मुँह बहुत छोटा था और ऊँचा भी था। उसमें लोमड़ी का मुँह पँहुच ही नही रहा था। किन्तु सारस अपनी लम्बी चोंच से सारा सूप पी गया।
लोमड़ी भूखी रह गयी ओर सारस से कहने लगी-
‘‘भाई सारस! दावत में मजा नही आया
’’सारस बोला- ‘‘ मित्र! जैसे को तैसा। शठे शाठ्यम् समाचरेत्।’’
’’सारस बोला- ‘‘ मित्र! जैसे को तैसा। शठे शाठ्यम् समाचरेत्।’’
इतना सुन कर लोमड़ी खींसे निपोरती हुई अपने घर आ गयी।
(चित्र गूगल से साभार)
bahut prerak kahani hai badhai
ReplyDeleteपुरानी लोककथा का
ReplyDeleteनया प्रस्तुतीकरण अच्छा है!
jaise ko taisa .....ye to duniya ka dastoor hai.
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