अपनी बात पर बहिन वन्दना अवस्थी दुबे ने “सम्मान समारोह-एक नज़र इधर भी......” शीर्षक से बहुत उम्दा आलेख प्रकाशित किया है। विचारणीय बात यह है कि यदि उनका आलेख ब्लॉग पर न आता तो मुझे तो पता ही नहीं लगता कि मेरी बहुत पुरानी मित्र भी इस समारोह में उपस्थित थीं। उन्होंने बहुत सारी बाते इस आलेख में लिखीं हैं। मैं उसी के आधार पर कहना चाहता हूँ कि पहला सत्र लम्बा खिंच गया तो दूसरा सत्र तो होना ही चाहिए था, कार्यक्रम चाहे भले ही 2 घण्टा विलम्ब से समाप्त होता। मगर आयोजक ने तो पहला सत्र शुरू होने के बाद ही मुझसे यह व्यक्तिगत रूप से कहा था कि हमारा कार्यक्रम सफल हो गया। यानि अपने मुँह खुद ही अपनी प्रशंसा। यही बात कोई अन्य कहता तो मुझे बहुत अच्छा लगता। अब श्रीमती दुबे जी के आलेख को पढ़कर में ही सवाल उठाता हूँ कि ब्लॉगिस्तान की आदरणीया सम्मानिता बहन रशिमप्रभा जी इसमें क्यों सम्मिलित नहीं हो पाईं? गत वर्ष हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान आयोजित करने वाले मुख्य आयोजक आदरणीय गिरराज शरण अग्रवाल इस सम्मेलन में क्यों नहीं आ पाये? आदरणीय अविनाश वाचस्पति जो स्वयं ब्लॉगिंग के एक मजबूत पुरोधा हैं, उनके साथ दिल्ली की एक पूरी टीम है। लेकिन उस टीम में से 1-2 को छोड़कर अन्य लोग क्यों नहीं आ पाये? परिकल्पना द्वारा जो आयोजन किया गया उसकी तो मैं भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूँ। क्योंकि जब से इल सम्मान समारोह की घोषणा हुई थी तभी से में अपनी टिप्पणियों में यह बात कहता चला आया हूँ कि कुछ न करने से कुछ करना तो बहुत बेहतर है। बहुत से लोगों ने यह आवाज भी उठाई थी कि वोटिंग प्रक्रिया को सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? उनकी बात सही भी थी। क्योंकि वोटिंग के बाद यह कार्यक्रम व्यकितगत कहाँ रहा? वह तो सार्वजनिक ही माना जाना चाहिए था। बहुत से लोगों ने तो इस सम्मेलन पर होने वाले व्यय पर प्रश्नचिह्न उठाये हैं कि इस सम्मेलन में व्यय करने के लिए पैसा किन श्रोतों से आया? लेकिन मैं इस बिन्दु को खारिज करता हूँ। मेरे विचार से यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि कार्यक्रम करना महत्व रखता था। इसके अलावा बहुत से ऐसे भी ब्लॉगर इस सम्मेलन में पधारे थे जो कि ब्लॉगिस्तान में बिल्कुल नये थे। उनके प्रोत्साहन के लिए क्या नये कदम इस सम्मेलन में उठाये गये? इस पर मैं अपनी बेबाक राय रखना चाहूँगा कि आ.अविनाश वाचस्पति ब्लॉग की उन्नति के लिए इस समय सबसे क्रियाशील हैं। नौ जनवरी 2011 को वे अपनी टीम के साथ खटीमा ब्लॉगर सम्मेलन में पधारे थे। उस समय मुझे उनकी लगन व क्रियाशीलता का परिचय मिला था कि उन्होंने अपनी टीम के साथ बहुत से लोगों के ब्लॉग बनवाये और उन्हें बलॉगिंग के गुर सिखाये थे। उसके बाद 30 अप्रैल 2011 को मुझे आदर्शनगर दिल्ली की एक ब्लॉगर मीट में जाने का सौभाग्य मिला। उसमें तो इन्होंने बाकायदा ब्लॉगिंग की कार्यशाला का आयोजन किया था और बहुत से लोगों को ब्लॉगिंग की ओर उन्मुख किया था। मगर इस प्रकार का कोई उपक्रम लखनऊ के इस सम्मेलन में मुझे देखने को नहीं मिला। जबकि इसमें श्री बी.एस.पाबला, आ.रवि रतलामी और यमुना नगर के ई-पण्डित जैसे ब्लॉग तकनीकी विशेषज्ञ भी पधारे थे। जहाँ तक मेरी अपनी बात है तो मैंने अपनी तीन-चार साल की ब्लॉगिंग में 50 से अधिक लोगों के ब्लॉग बनाये हैं और मेरे साथ इस सम्मेलन में तीन नये ब्लॉगर भी पधारे थे। जिनको यहाँ आकर निराशा ही हाथ लगी थी।अब मैं कुछ बातें और लिखकर इस आलेख का समापन करना चाहूँगा।सम्मानिता वन्दना जी! |
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Monday 3 September 2012
“लखनऊ सम्मान समारोह के कुछ अनछुए पहलू” (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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