समर्थक
Thursday, 31 December 2009
Saturday, 26 December 2009
"86 वर्षीय बूढ़े-बरगद पर ऐसा गन्दा आरोप ?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
पं. नारायण दत्त तिवारी विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं।
कुछ तो शर्म करो!
86 वर्षीय बूढ़े-बरगद पर ऐसा गन्दा आरोप ?
आज समाचार पत्रों मे और नेट पर पं. नारायण दत्त तिवारी के बारे में पढ़ा तो बहुत ही दुःख हुआ। 86 वर्षीय एक बूढ़ा व्यक्ति सेक्स सकैण्डल के घेरे में। कितना अप्रत्याशित लगता है यह। पं. नारायण दत्त तिवारी पर तो आरोप शुरू से ही लगते रहे हैं। कभी हवाला मे लिप्त होने के, कभी सेक्स मे फँसे रहने केऔर हद तो जब हो गयी कि एक युवक ने अपने को तिवारी जी का नाजायज पुत्र ही कह दिया। लेकिन हर बार माननीय तिवारी जी ससम्मान दोष-मुक्त हुए हैं।
अख़बार वालों को तो मसाला न्यूज मिलनी चाहिए चाहे उसमें सत्यता हो या न हो। ये शायद यह भूल जाते हैं कि जब तिवारी जी केन्द्र मे वित्त-मन्त्री थे तो स.मनमोहन सिंह उनके वित्त-सचिव और वर्तमान में योजना आयोग के उपाध्यक्ष स. मोन्टेक सिंह अहलूवालिया उनके डिप्टी सेक्रेटरी हुआ करते थे। मा. तिवारी जी ने केन्द्र मे योजनामन्त्री, उद्योग मऩ्त्री, विदेश मन्त्री आदि महत्वपूर्ण पदों को तो सुशोभित किया ही है साथ ही वे 4 बार उ.प्रदेश और एक बार उत्तराखण्ड के मुख्य मन्त्री भी रह चुके हैं।
तिवारी जी ने इस झूठ का सामना करने के लिए आन्ध्र-प्रदेश के राज्यपाल पद से त्यागपत्र भी दे दिया है। यह उनकी नैतिकता का ही परिचायक है। वे एक सत्ते गांधीवादी रहे हैं और रहेंगे।
मुझे मा. तिवारी जी का सानिध्य शुरू से ही मिला है, उत्तराखण्ड में सरकार में भी उनके साथ काम करने अवसर मिला है। 80 साल की उम्र में भी वे 17-18 घण्टे लगातार कार्य में संलग्न रहते थे।
ऊपर का चित्र 18 साल पुराना है। उनकी आयु उस समय 70 साल थी। उन दिनों में मैंने काफी दिन-रात उनके साथ गुजारे थे। मुझे सदैव उनमें एक विलक्षण पुरुष और विकास-पुरुष के दिग्दर्शन हुए।
मुझे आशा है कि मा. तिवारी जी इस स्कैण्डल में भी निष्कलंक साबित होंगे।
Friday, 25 December 2009
"चिट्ठा-जगत बन्द क्यों?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आज 25 दिसम्बर है, यानि बड़ा दिन।
चिट्ठा-जगत पिछले 3 दिनों से बन्द पड़ा है।
हिन्दी ब्लॉगरों के लिए यह चिन्ताजनक है।
और हो भी क्यों नही।
दुनिया रंग-रँगीली है।
एक धुरऩ्धर महाशय ने तो अपना नाम ही ऐसा रख छोड़ा है कि
"लिखते हुए भी लज्जा आती है।"
पोस्ट हिट करने के हतकंडे
देसी भाषा की खिचडी पकाकर एक घटिया पोस्ट लिखो.
अपने चापलूस दोस्तों को फोन करो कि पसंद को क्लिक करें.
अपने ब्लगार दोस्तों को फोन करो कि वे कमेंट करें.
आप स्वयं सौ दो सौ टिप्पणियां करो.
एग्रीनेटरों में पसंद को किलिक करवाकर के जरिए
उंची जगह पर अपना पोस्ट दो दिन तक टांगे रहो.
कहीं इन्हीं से घबड़ाकर तो "चिट्ठा-जगत" बन्द नही हो गया!
सभी को ईसा मसीह के जन्म-दिन की ढेरों शुभकामनाएँ!
Wednesday, 23 December 2009
"राष्ट्रीय सेवा योजना-एक परिचय!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आज इण्टर-नेट पर
राष्ट्रीय सेवा योजना के बारे में बहुत खोजा,
परन्तु कुछ खास नही मिला।
इसलिए यह पोस्ट लगानी पड़ी।
राष्ट्रीय सेवा योजना के अन्तर्गत आने वाले
कार्यक्रमों की एक झलक-
1- शिक्षा एवं मनोरंजन-
क- काम-चलाऊ अक्षर ज्ञान।
ख- स्कूल छोड़ देने वालों की शिक्षा के प्रति रुचि जगाना।
ग- सांस्कृतिक गतिविधियाँ।
घ- सामाजिक बुराइयों का उन्मूलन।
2- पर्यावरण -
क- प्राचीन स्मारकों की सुरक्षा के उपाय।
ख- कूड़े-करकट को खाद में परिवर्तित करना।
ग- पॉलीथीन उन्मूलन।
ग- ग्राम की गलियों की मरम्मत।
घ- हैण्ड-पम्पों की सफाई।
ड.- वृक्षारोपण,उनकी सुरक्षा और देख-रेख।
च- भू-कटाव को रोकना और भूमि का परिरक्षण।
छ- गोबर गैस संयन्त्रों के प्रति रुचि जाग्रत करना।
ज- सौर ऊर्जा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना।
झ- मलिन बस्तियों की सफाई।
ञ- पानी का विश्लेषण।
ट- नदियों और कुओं की सफाई।
3- स्वास्थ्य-
क- रोगों से बतने के उपाय।
ख- सन्तुलित आहार की जानकारी।
ग- स्वच्छ पेय जल के बारे में जानकारी देना।
घ- नियोजित जनसंख्या और परिवार कल्याण।
ड.- रक्तदान शिविर।
च- स्वाइन फ्ल्यू के प्रति लोगों को जागरूक करना।
छ- एड्स से बचाव के उपाय।
ज- नशा उन्मूलन।
4- कृषि-
क- उन्नत खेती के तरीकों को समझाना।
ख- कीट-नाशकों के बारे में जानकारी देना।
ग- खर-पतवार नियन्त्रण।
घ- उर्वरकों के वारे में जानकारी देना।
ड.- स्कर बीजों के बारे में जानकारी देना।
5- समाज सेवा-
क- महिलाओं को बुनाई-सिलाई-कढ़ाई का प्रशिक्षण देना।
ख- महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जाग्रत करना।
ग- सामाजिक एवं आर्थिक सर्वेक्षण करना।
घ- ग्रामीण दिकास के लिए बैंकों की भूमिका के बारे में बताना।
Thursday, 17 December 2009
"भारत में पहली बार रुड़की में चली थी ट्रेन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
"21 दिसम्बर, 1851 को पहली बार रुड़की में चली थी ट्रेन"
रुड़की शहर की पहचान पिरान कलियर और आई.आई,टी. (रुढ़की यूनिवर्सिटी) के कारण ही है, किन्तु बहुत कम लोग यह जानते हैं कि भारत में पहली बार ट्रेन भी इसी शहर में चली थी। आज से 158 वर्ष पूर्व 21 दिसम्बर, 1851 को दो बोगियों वाली ट्रेन रुड़की से पिरान कलियर के लिए चली थी। इस ट्रेन का उपयोग माल ढुलाई के लिए किया गया था।आम आदमी को रुड़की की इस उपलब्धि से परिचित कराने के लिए इस ऐतिहासिक ट्रेन के इंजन को रुड़की रेलवे स्टेशन के प्रांगण में रखा गया है।
उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेजों के शासनकाल में हरिद्वार से गंगा नदी को उत्तर भारत से जोड़ने के लिए गंग-नहर का निर्माण किया जा रहा था। नहर निर्माण के दौरान लाखों टन मिट्टी को हटाने में दिक्कत आ रही थी। पहले तो श्रमिकों से मिट्टी से भरे हुए डिब्बों को खिचवाने की कोशिश की गई लेकिन सफलता नही मिली। अतः घोड़ों से इन डिब्बों को खिंचवाया गया, लेकिन इसमें बहुत देर लग रही थी। नहर निर्माण की योजना में बिलम्ब होते देख कार्यदायी संस्था द्वारा इंग्लैण्ड से विशेषरूप से माल ढोने वाले वैगन और इंजन को मँगवाया गया।
छह पहियों और 200 टन भार की क्षमता वाली इस ट्रेन को चलाने के लिए रुड़की से पिरान-कलियर के मध्य रेल पटरियाँ बिछाई गयीं।
21 दिसम्बर, 1851 को पहली बार रेल इंजन दो मालवाहक डिब्बों को लेकर रुड़की से पिरान-कलियर के लिए रवाना हुआ। भारत में पहली बार रेल-गाड़ी के चलने को लेकर पूरा देश उत्साहित था। चार मील प्रति घण्टे की गति से चलने वाले इस इंजन को देखने के लिए दूर-दराज के क्षेत्रों से भी हजारों लोग पहुँचे थे।
बाद में रुड़की रेलवे स्टेशन की स्थापना होने पर इस ऐतिहासिक इंजन को स्टेशन के प्रांगण में लोगों के दर्शनार्थ स्थापित कर दिया गया है।
रुड़की रेलवे स्टेशन प्रांगण में एक शिलापट्ट पर भी सुनहरे अक्षरों मे इस ऐतिहासिक घटना का उल्लेख दिखाई देता है।
(खटीमा मॉर्निंग अंक-51 से साभार)
Sunday, 13 December 2009
Thursday, 10 December 2009
"यही है हमारा स्तर??" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
हिन्दी ब्लॉगरों में आखिर साहित्यकारों के प्रति
इतनी अरुचि क्यों है?
इतनी अरुचि क्यों है?
बात तो समझ मे खूब आ रही है जी!
गधे की पूँछ में कनस्तर बाँधकर दौड़ाने से
बेतहाशा भीड़ इकट्ठी हो जाती है,
ऐसी पोस्ट पर कमेण्ट भी थोक में आते हैं।
उदाहरण देखें-लखनऊ में ब्लॉगर दंगा:
सलीम खान और उम्दा सोच वाले सौरभ के बीच घमासान युद्ध.. comments:84
"कवि त्रिलोचन को भाव-भीनी श्रद्धाञ्जलि" comments:4 only
जी हाँ यही तो है हमारा स्तर!
Tuesday, 8 December 2009
"ध्यान दें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
!! अनमोल बातें !!
(1)
बच्चों को दण्ड नही दिशाएँ दें!
(अज्ञात)
(2)
अच्छी बात बच्चे की भी मान लो
लेकिन बुरी बात फरिश्ते की भी मत मानो!
(अज्ञात)
(3)
प्रणाम लेने का अधिकार उसी का है,
जो प्रणाम करने वाले से अधिक योग्य हो!
(अज्ञात)
(4)
वही श्रेष्ठ है जो पढ़ता है!
ज्ञान बाँटने से बढ़ता है!!
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
(5)
धन पा जाना बहुत सुलभ है!
सज्जन बन पाना दुर्लभ है!!
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
Saturday, 28 November 2009
"बाबा नागार्जुन का स्नेह उन्हें भी मिला था" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बात 1989 की है।
उन दिनों बाबा नागार्जुन खटीमा प्रवास पर थे। उस समय खटीमा में डिग्री कॉलेज में श्री वाचस्पति जी हिन्दी के विभागाध्यक्ष थे। बाबा उन्हीं के यहाँ ठहरे हुए थे।
वाचस्पति जी से मेरी मित्रता होने के कारण बाबा का भरपूर सानिध्य मुझे मिला था। अपने एक महीने के खटीमा प्रवास में बाबा प्रति सप्ताह 3 दिन मेरे घर में रहते थे। वो इतने जिन्दा दिल थे कि उनसे हर विषय पर मेरी बातें हुआ करतीं थी।
उन दिनों बाबा नागार्जुन खटीमा प्रवास पर थे। उस समय खटीमा में डिग्री कॉलेज में श्री वाचस्पति जी हिन्दी के विभागाध्यक्ष थे। बाबा उन्हीं के यहाँ ठहरे हुए थे।
वाचस्पति जी से मेरी मित्रता होने के कारण बाबा का भरपूर सानिध्य मुझे मिला था। अपने एक महीने के खटीमा प्रवास में बाबा प्रति सप्ताह 3 दिन मेरे घर में रहते थे। वो इतने जिन्दा दिल थे कि उनसे हर विषय पर मेरी बातें हुआ करतीं थी।
मैं उन सौभाग्यशाली लोगों में से हूँ जिसे बाबा नागार्जुन ने अपनी कई कविताएँ स्वयं अपने मुखारविन्द से सुनाईं हैं। "अमल-धवल गिरि के शिखरों पर बादल को घिरते देखा है" नामक अपनी सुप्रसिद्ध कविता सुनाते हुए बाबा कहते थे- "बड़े-बड़े हिन्दी के प्राध्यापक मेरी इस कविता का अर्थ नही निकाल पाते हैं। मैंने इस कविता को कैलाश-मानसरोवर में लिखा था। झील मेरी आँखों के सामने थी। और वहाँ जो दृश्य मैंने देखा उसका आँखों देखा चित्रण इस कविता में किया है।"
जब बाबा की धुमक्कड़ी की बात चलती थी तो बाबा जयहरिखाल (लैंसडाउन-दुगड्डा का नाम लेना कभी नही भूलते थे। उन्होंने वहाँ 1984 में जहरीखाल को इंगित करके अपनी यह कविता लिखी थी-
"मानसून उतरा है
जहरीखाल की पहाड़ियों पर
बादल भिगो गये रातों-रात
सलेटी छतों के
कच्चे-पक्के घरों को
प्रमुदित हैं गिरिजन
सोंधी भाप छोड़ रहे हैं
सीढ़ियों की
ज्यामितिक आकृतियों में
फैले हुए खेत
दूर-दूर
दूर-दूर
दीख रहे इधर-उधर
डाँड़े की दोनों ओर
दावानल दग्ध वनांचल
कहीं-कहीं डाल रही व्यवधान
चीड़ों की झुलसी पत्तियाँ
मौसम का पहला वरदान
इन तक भी पहुँचा है
जहरीखाल पर
उतरा है मानसून
भिगो गया है
रातों-रात
इनको
उनको
हमको
आपको
मौसम का पहला वरदान
पहुँचा है सभी तक"
जब भी जहरीखाल का जिक्र चलता तो बाबा एक नाम बार-बार लेते थे। वो कहते थे-"शास्त्री जी! जहरी खाल में एक लड़का मुझसे मिलने अक्सर आता था। उसका नाम कुछ रमेश निशंक करके था वगैरा-वगैरा....। वो मुझे अपनी कविताएं सुनाने आया करता था।"
उस समय तो बाबा ने जो कुछ कहा मैंने सुन लिया। मन मे विचार किया कि होगा कोई नवोदित!
मगर आज जब बाबा के संस्मरण को याद करता हूँ तो बात खूब समझ में आती है।
जी हाँ!
यह और कोई नही था जनाब!
यह तो रमेश पोथरियाल "निशंक" थे।
कौन जानता था कि बाबा को जहरीखाल में अपनी कविता सुनाने वाला व्यक्ति एक दिन उत्तराखण्ड का माननीय मुख्यमऩ्त्री डॉ.रमेश पोखरियाल "निशंक" के नाम से जाना जायेगा।
Wednesday, 18 November 2009
"वरिष्ठ साहित्यकार वाचस्पति के सम्मान में व्लॉगर मीट" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
हिन्दी साहित्य के इंसाइक्लोपीडिया
श्री वाचस्पति जी के सम्मान में
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" के खटीमा स्थित निवास पर
एक ब्लॉगर-मीट का आयोजन किया गया।
जिसमें डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक",श्री रावेंद्रकुमार रवि-सम्पादकःसरस पायस ,
श्री वाचस्पति-सम्पादकः आधारशिला (त्रिलोचन विशेषांक)
एवं डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने भाग लिया।
इस अवसर पर श्री वाचस्पति ने एक संस्मरण सुनाते हुए कहा- "एक बार कुछ लेखकों ने मुझसे प्रश्न किया कि वाचस्पति जी आप लेखकों की अपेक्षा कवियों को अधिक प्यार करते है। इस पर मैंने उत्तर दिया कि ऐसी बात नही है। मैं तो सभी साहित्यकारों से प्रेम करता हूँ, लेकिन कवियों को कुछ ज्यादा ही करता हूँ क्योंकि वो व्यवसायिक नही होते हैं। उनकी कविताओं पर न तो कोई फिल्म बनती है तथा न ही कोई अन्य आय का साधन होता है।"
इसके वाद डॉ.सिद्धेश्वर सिंह ने ब्लॉगिंग का प्रारम्भ करने की कहानी सुनाते हुए कहा-"सबसे पहले मैंने "कबाड़खाना" में लिखना शुरू किया। एक दिन मेरे किसी मित्र ने पूछा कि सिद्धेश्वर तुम्हारा ब्लॉग कौन सा है? बस इसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैंने "कर्मनाशा" नाम से अपना ब्लॉग बनाया।"
सरस पायस के सम्पादक श्री रावेंद्रकुमार रवि ने अपनी ब्लॉगिंग के बारे में बताते हुए कहा- "मैंने बाल-साहित्य में रुचि रखने के कारण एक स्वप्न संजोया हुआ था कि बाल-साहित्य पर अपनी लेखनी चलाने वाले उदीयमान और स्थापित साहित्यकारों को प्रोत्साहित करूँगा। इसके लिए सबसे सुलभ और सरल माध्यम मुझे ब्लॉगिंग का लगा और मैंने सरस पायस के नाम से एक ब्लॉग बनाया। बाल-दिवस के दिन इसे मैंने बच्चों को पूर्णतः समर्पित कर दिया है।"
"उच्चारण" के नाम से अपना ब्लॉग चला रहे डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" ने इस अवसर पर अपना विचार व्यक्त करते हुए बताया कि ब्लॉगिंग एक यज्ञ है। जिसमें शब्दों के माध्यम से ज्ञान का दान और टिप्पणियों के रूप में प्रतिदान साथ-साथ चलता रहता है। इसमें पुस्तकें छपवाने जैसा कोई मोटा खर्चा नही होता है। लेकिन पहचान की सुरभि देश-विदेशों तक फैलती है।
Saturday, 14 November 2009
"बाल-दिवस ऐसे मना!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बाल-दिवस पर पं.जवाहरलाल नेहरू को
शत्-शत् नमन!
बाल-दिवस के अवसर पर सीनियर सिटीजन एशोसियेसन, खटीमा के
तत्वावधान में श्री बी.के.जौहरी के सौजन्य से
ग्राम-चारुबेटा में दलित एवं जनजाति के निर्धन बालकों को पाठ्य-सामग्री वितरित की गई।
मंचासीन अतिथिगण
नेहरू जी के चित्र पर माल्यार्पण करते हुए
बालकों को सम्बोधित करते हुए डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री
(पूर्व सदस्य-अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, उत्तराखण्ड-सरकार)
मा.गोपालसिंह राना (विधायक-खटीमा)
कार्यक्रम के मुख्य-अतिथि मा.गोपालसिंह राना (विधायक)
संयोजक-वी.के.टण्डन
विशिष्ट-अतिथि डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री
(पूर्व सदस्य-अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, उत्तराखण्ड-सरकार)
शिशुओं को लेखन-सामग्री वितरित की।
Sunday, 8 November 2009
""ब्लॉगवाणी और चिट्ठा जगत कितने उदार हैं"" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
निष्काम-भाव, सरलता, शीघ्रता और निष्पक्षता
इस पोस्ट का प्रारम्भ मैं "ब्लॉगवाणी" और "चिट्टाजगत" के साथ हुए संक्षिप्त वार्तालाप से कर रहा हूँ-
!! शीघ्र उत्तर !!
28 सितंबरको इसे अचानक बंद करने का ऐलान कर दिया गया था। ब्लॉगवाणी बंद होने की खबर ने ब्लॉगजगत को सदमे में डाल दिया था।
इसके बाद मेंने भी "ब्लॉगवाणी" टीम को मेल किया-
जिसका उत्तर था-
maithilysg
मुझेडॉ. रूप चन्द्र शास्त्री जी
हमें ब्लागवाणी बन्द करने का कैसा भी हक नहीं था. यह एक गलती थी. आभार तो आपका कि आपने हमें गलती सुधारने पर विवश किया. हमें विश्वास ही नहीं था कि आपका इतना प्यार हमें मिलता है
आपका
मैथिली
हमें ब्लागवाणी बन्द करने का कैसा भी हक नहीं था. यह एक गलती थी. आभार तो आपका कि आपने हमें गलती सुधारने पर विवश किया. हमें विश्वास ही नहीं था कि आपका इतना प्यार हमें मिलता है
आपका
मैथिली
|
सम्मानित मैथिली जी!
सस्नेह अभिवादन।
क्या मुझे आपका पूरा शुभ-नाम जानने का अधिकार है?
असमंजस में हूँ कि आपको बहिन जी कहूँ या भाई साहब से सम्बोधित करूँ।
कृपया अन्यथा न लें।
| विवरण दिखाएँ २९ सितम्बर |
आदरणीय शास्त्री जी
मेरा पूरा नाम मैथिली शरण गुप्त है.
मैं सिरिल का पिता हूं
मैथिली
| विवरण दिखाएँ २१ अगस्त |
श्रीमन्!
ये मेरी पत्नी जी का ब्लॉग है। इन्होंने मेरी कविताओं को अपना स्वर देकर इस ब्लॉग पर लगाने की इच्छा जाहिर की है।
कृपया,
!! त्वरित संज्ञान !!
| विवरण दिखाएँ २१ अगस्त |
विपुल जी
कृप्या इसे चिट्ठाजगत में ले लें.
कृप्या इसे चिट्ठाजगत में ले लें.
सादर
समीर लाल
समीर लाल
भ्राताश्री प्रणाम!
मान्यवर,
आप नीचे का लिंक देखें और इस पोस्ट पर की गई टिप्पणियाँ भी देख लें। मैं यह मानता हूँ कि अज्ञात और अश्लील टिप्पणीकारों पर रोक नही लगाई जा सकती है। परन्तु प्रत्येक ब्लॉग-स्वामी के पास इन अशिष्ट और अश्लील टिप्पणियों को डिलीट करने का सर्वाधिकार तो सुरिक्षत है ही। फिर इस ब्लाग पर ये गन्दी टिप्पणियों क्यों नज़र आ रही हैं?
सभी हिन्दी चिट्ठाकार ज्ञानार्जन और ज्ञान बाँटने के लिए ही ब्लॉगिंग करते हैं, ऐसा मेरा मानना है। परन्तु यदि साहित्यकारों के यहाँ ऐसी टिप्पणियों दिखाई देती हैं तो इन ब्लॉगर्स को किसी भी स्थिति में क्षमा नही किया जा सकता है।
ये चिट्ठाकार यदि अश्लीलता में लिप्त रहना चाहते हैं तो जाल-जगत पर तो इनके लिए ऐसी बहुत सी सामग्री उपलब्ध है।
अन्त में,
मैं ब्लॉगवाणी, चिट्ठा-जगत के साथ-साथ सभी हिन्दी ऐग्रीग्रेटर्स के सम्मानित संचालकों से यह अनुरोध,निवेदन या प्रार्थना करता हूँ कि ऐसे चिट्ठों को अविलम्ब अपनी सूचि से हटाने की कृपा करें।
सादर-
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
आपका
| विवरण दिखाएँ ४ | परम सम्मानित मैथिली जी! |
अभिवादन के साथ निवेदन है कि मेरे इस ब्लॉग को ब्लॉगवाणी में सम्मिलित कर
सादर-
डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक"
आपका
| विवरण दिखाएँ ४ नवम्बर (3 दिनों पहले) |
आदरणीय डॉ. रूपचंद्र शास्त्री जी
ब्लागवाणी पर आपका स्वागत है
टीम ब्लागवाणी
अपने एक मित्र के ब्लॉग को ब्लागवाणी में सम्मिलित कराने के लिए मेल किया तो किनी शीघ्रता से ब्लागवाणी टीम का उत्तर मेरे नाम से आया।
| विवरण दिखाएँ ४ नवम्बर (3 दिनों पहले) |
ब्लाग सुझाने के लिये धन्यवाद
लेकिन ब्लागवाणी में फिलहाल द्विभाषीय ब्लाग शामिल नहीं किये जाते
नवम्बर माह के अन्त तक ब्लागवाणी का नया बहुभाषीय संस्करण आने की संभावना है जिसमें सभी भारतीय भाषाओं के ब्लाग शामिल किये जा सकेंगे
टीम ब्लागवाणी
निष्काम भाव से सरलता,शीघ्रता और निष्पक्षता से
हिन्दी चिट्ठों के इन एग्रीग्रेटरों को
हृदय-तल की अन्तरतम गहराइयों से
धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ।
Subscribe to:
Posts (Atom)