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Tuesday 26 January 2010
Saturday 23 January 2010
“संस्मरण” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
दादी चम्मच का प्रयोग किया करो! |
(चित्र गूगल सर्च से साभार) आज से 45-50 साल पुरानी बात है। उन दिनों एक कबीले की संयुक्त हबेली हुआ करती थी। किसी घर में अच्छी साग-सब्जी बनती थी तो माँग कर खाने में बहुत आनन्द आता था। दादी के हाथ में कढ़ी लगी थी। उसने जीभ से चाट कर अपना हाथ साफ किया और जा पहुँची कड़ाही के पास। जल्दी में चमचा नही मिला तो जूठे हाथ से ही कढ़ी मेरी कटोरी में ड़ाल दी। मैंने कहा- “दादी हाथ तो धोकर साफ कर लिया होता।” इस पर दादी ने उत्तर दिया- “भैया! हाथ चाटकर तो साफ कर लिया था। देख मेरे हाथ में कुछ लगा है क्या?” मैंने कहा- “दादी! हाथ तो साफ है लेकिन जूठन तो लगा ही है।” घर आकर जब मैंने अपनी माता जी को दादी की बात सुनाई तो उन्होंने मेरे हाथ से कटोरी लेकर भैंस की सानी में यह झूठी कढ़ी डाल दी और मेरे लिए तुरन्त कढ़ी बना कर दी! इस संस्मरण को लगाने का मेरा उद्देश्य यह है कि - “किसी का भी झूठा न तो हमें खुद खाना चाहिए और न किसी दूसरे को खिलाना चाहिए!” |
Friday 15 January 2010
“ओह…आज तो भयंकर कुहरा है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
Tuesday 12 January 2010
"कितना कुहरा है?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
खटीमा की सड़कों में दिल्ली जैसी भीड़-भाड़ रहती है। मोटर साइकिलों ने साधारण साइकिलों को तो मात दे दी है लेकिन आज तो मोटर साइकिलों के चक्के जाम हो गये हैं। आज दोपहर को 1 बजे भी मेरे घर के सामने पिथौरागढ़ राष्ट्रीय-राजमार्ग पर केवल इक्का-दुक्का साइकिल ही नजर आ रहीं हैं। |