किसी गाँव में एक कंजूस बुढ़िया रहती थी। उसके पास अपार धन सम्पदा थी।
किन्तु वह अतिथि हो या पड़ोसी किसी की भी कोई मदद नही करती थी।
एक बार एक नवयुवक परदेश से अपने घर लौट रहा था,
किन्तु शाम हो जाने के कारण उसने बुढ़िया के गाँव में रुकने को मजबूर होना पड़ा।
गाँव में उसने देखा कि एक आलीशान भवन बना हुआ है।
बस उसने इसी में रात गुजारने के लिए दस्तक दे दी।
दस्तक सुन कर बुढ़िया बाहर निकली और कड़क-कर पूछा- ‘‘कौन है तू? क्या चाहता है?’’
नवयुवक ने कहा-
‘‘माता! मुझे सफर करते हुए रात हो गयी है। इस लिए मैं रात्रि विश्राम करने के लिए आश्रय चाहता हूँ।’’
बुढ़िया को इस नवयुवक पर कुछ दया आ गयी और वह उससे बोली-
‘‘मैं तुझे रात में विश्राम की इजाजत तो दे रही हूँ, लेकिन खाना नही दूँगी।’’
नवयुवक ने कहा- ‘‘ठीक है माता!’’
नवयुवक ने आश्रय तो पा लिया लेकिन उसे बहुत भूख लगी थी। ऐसे में उसे एक युक्ति सूझी।
उसने एक सूखी लकड़ी अपनी जेब से निकाली और बुढ़िया से कहा-
‘‘माता मेरे पास यह जादू की लकड़ी है। मैं इससे खीर बना लूँ क्या?’’
अब बुढ़िया के मन में उत्सुकता और लालच दोनों ही जाग गये और उसने खीर बनाने की
इजाजत दे दी।
नवयुवक ने कहा- ‘‘माता! मुझे एक पतीला दे दो।’’
बुढ़िया ने सोचा कि बहुत दिनों से मैंने खीर खाई भी नही है।
आज खीर खाने को तो मिल ही जायेगी। अतः उसने पतीला लाकर दे दिया और बोली-
‘‘बेटा! खीर स्वादिष्ट बननी चाहिए।’’
नवयुवक ने चूल्हे पर पतीला चढ़ा दिया। जब पानी खौलने लगा तो
पतीले में उसने सूखी लकड़ी पानी में घुमा कर कहा-
‘‘आ हा... क्या बढ़िया खुश्बू आ रही हे खीर की।’’
अब नवयुवक बुढ़िया से बोला-
‘‘माता! खीर तो एक आदमी के खाने लायक ही बनेगी।
यदि एक कटोरी चावल और मिल जाते तो तुम्हारे लिए भी हो जाती।’’
लालाची बुढ़िया ने झट से एक कटोरी चावल उसे लाकर दे दिये।
नवयुवक ने पतीले में फिर लकड़ी घुमाई और कहा-
‘‘माता! खीर में चावल जयादा हो गये हैं। यदि थोड़ा दूघ भी मिल जाता तो खीर बढ़िया बन जाती।’’
बुढ़िया ने दूध भी लाकर दे दिया। अब खीर बन कर तैयार हो गयी। परन्तु वह तो फीकी थी।
उसने बुढ़िया से फिर कहा-
‘‘माता! दूध और चावल अधक होने के कारण खीर फीकी हो गयी है। यदि थोड़ी शक्कर
भी मिल जाती तो........।’’
बुढ़िया के मुँह में तो पानी आ रहा था। अतः उसने शक्कर भी दे दी।
अब बड़े मजे से नवयुवक और बुढ़िया ने खीर खाई।
सुबह को जब नवयुवक जाने लगा तो बुढ़िया ने उससे कहा-
‘‘बेटा! ये जादू की लकड़ी मुझे ही देता जा। देख मैंने तुझे अपने घर में पनाह दी है।’’
नवयुवक बोला- ‘‘माता! मैं यह जादू की लकड़ी तुम्हें एक शर्त पर दे सकता हूँ।’’
बुढ़िया बोली- ‘‘क्या शर्त हैं?’’
नवयुवक बोला- ‘‘माता! आप मुझे आप गोद ले लो और अपना पुत्र बना लो।’’
बुढ़िया राजी हो गयी।
अब नवयुवक ने बुढ़िया का पुत्र बन कर,
प्रतिदिन बुढ़िया को सुन्दर-सुन्दर दृष्टान्त सुना-सुना कर
उसका हृदय परिवर्तन कर दिया था।