समर्थक

Monday, 4 May 2009

‘‘शाबाश टाम’’ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’


मैं सन् 1980 में शारदा नदी की उपत्यिका में नेपाल की सीमा से सटे गाँव बनबसा में रहता था। उन्हीं दिनों मेरा परिचय मूसा नाम के एक वन-गूजर से हुआ। उसके पास लगभग 150 भैसे थी।

वनगूजर अपना मुकाम जंगल में ही बना लेते थे। वन-गूजरों के 4 या 5 परिवार एक साथ रहते थे हर एक परिवार के पास कम से कम 50-60 भैंसे होती थीं।

वन-गूजर लोग दिल के बड़े साफ होते हैं। इनका मुख्य कारोबार दूध का होता हैं। ये दिन में केवल एक बार सुबह 9 बजे ये भैंसों को दुहते हैं। फिर भैंसों की रखवाली का काम भोटिया नस्ल के कुत्ते करते हैं।

मूसा से मेरा परिचय इतना बढ़ा कि वो दोस्ती में बदल गया। जंगल में रहने के कारण अपना पैसा भी वह मेरे पास ही जमा कर जाता था।

एक बार वह मुझे जंगल में बने अपने झाले पर ले गया। मैंने इनके भालू जैसे कुत्ते देखे तो मेरा मन हुआ कि एक भोटिया नस्ल का कुत्ता पाला जाये।

मैंने मूसा से कहा तो उसने कहा- ‘‘डॉ. साहब! मेरी कुतिया ने 6 बच्चे दिये हैं। आप इसमें से छाँट लीजिए।’’

मुझे उन में से एक प्यारा सा गबरू सा पिल्ला पसन्द आ गया। मैंने उसे बड़े प्यार से पाला और उसका नाम टॉम रख दिया। टाम धीरे-धीरे जवान हो गया। उसका रंग तो काला था ही अब उसका आकार भी भालू जैसा हो गया था।

टॉम दिन भर सोता था और रात भर पूरे घर की चौकीदारी करता था। किसी बाहरी व्यक्ति की क्या मजाल थी कि वो रात में घर में घुस जाये।

तभी संयोग ऐसा बना कि मुझे 1985 में खटीमा शिफ्ट होना पड़ा।

अब टॉम काफी समझदार हो गया था।

गरमी के मौसम में मेरे पिता जी बाहर आँगन में चारपाई बिछा कर सोते थे। उन दिनों मेरे घर के आँगन में ईंटों का कच्चा फर्श था।

एक दिन सुबह को 4-5 बजे जब पिता जी सोकर उठे तो उन्होंने देखा कि चारपाई के नीचे लहू-लुहान हुआ एक साँप मरा पड़ा था।

यह समझते देर न लगी कि यह करिश्मा टॉम ने ही किया होगा।

उस दिन अगर टॉम न होता तो कोई न कोई अनहोनी हो सकती थी।

परिवार में सबने कहा- ‘‘शाबाश टॉम! तुम सच्चे स्वामी-भक्त निकले।’’

आज उस घटना को लगभग 25 वर्ष बीत गये हैं।

फिर भी टॉम हम सबको बहुत याद आता है।

5 comments:

  1. sachchi swamibhakti ka parichay diya hai aur shayad insaan se jyada ye janwar samajhte hain . insaan to din par din janwar banta ja raha hai ,isiliye shayad janwaron ko insaniyat ka dharam nibhana pad raha hai.

    ReplyDelete
  2. शास्त्री जी, उत्तराखंड के निचले इलाकों में वन-गुर्जर होते हैं तो हिमाचल में गद्दी होते हैं. ये लोग बड़े ही शांत और विश्वासी भी होते हैं.

    ReplyDelete
  3. संस्मरण सुनकर अच्छा लगा.. टॉम की याद आना स्वाभाविक है.. आभार

    ReplyDelete
  4. सचमुच बहादुर था टॉम,
    उसकी स्वामी-भक्ति को मेरा प्रणाम!

    ReplyDelete

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।