मेरे एक अभिन्न मित्र थे। बाल्यकाल में वह मेरे साथ बचपन में गुरूकुल में विद्याध्ययन करते थे। संयोग ऐसा हुआ कि मैं तो गुरूकुल से भाग आया था और उनका स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उनके पिता जी उन्हे गुरूकुल से वापिस घर ले आये थे।
इसके बाद उन्होंने भी पास के नगर में प्राईवेट स्कूल खोला और मैंने भी खटीमा नगर में एक विद्यालय खोल लिया। उनका स्कूल आज इण्टर कालेज का रूप ले चुका है और मेरा विद्यालय मात्र कक्षा-8 तक ही सिमट कर रह गया।
यह घटना 1984 की है। उन दिनों संस्थाओं का पंजीकरण कार्यालय बरेली में था। वह अपने विद्यालय के पंजीकरण के लिए नवीनीकरण के लिए और मैं नवीन पंजीकरण के लिए उस कार्यालय में गया था।
वहीं पर हम दोनों ने सौगन्ध खाई थी कि हम लोग कभी भी रिश्वत नही देंगे।
अक्सर देखा गया है कि भारत में चाहे किसी भी तरह के पंजीकरण कार्यालय हो वहाँ बिना रिश्वत के कोई काम नही होते हैं।
उस कार्यालय में भी हमसे रिश्वत की माँग की गयी। मुझे अच्छी तरह से याद है कि वहाँ रिश्वत माँगने पर मैंने सब-रजिस्ट्रार का कालर पकड़ लिया था। इसका खमियाजा मुझे भुगतना पड़ा और 6-7 माह तक मेरे विद्यालय का पंजीकरण नही किया गया। अन्ततः लखनऊ में महा-निबन्धक से शिकायत करने पर पंजीकरण प्रमाणपत्र दिया गया।
दूसरी ओर मेरे बाल-सखा तीसरे दिन चढ़ावा चढ़ा कर अपनी संस्था के पंजीकरण का नवीनीकरण ले आये थे।
मैं आज भी अपने किसी काम को कराने के लिए रिश्वत का सहारा नही लेता हूँ। लेकिन मेरे मित्र ने रिश्वत को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लिया है।
रिश्वत न देने से जहाँ एक ओर मेरा कुछ नुकसान हुआ है तो उसके बदले में मुझे बहुत कुछ मिला भी है।
किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी कार्यक्रम में मुझे ऊँचे आसन पर बैठाया जाता है तो मेरे इस मित्र को दर्शक दीर्घा में बैठ कर ही सन्तोष करना पड़ता है।
इसे यदि श्लाघा न कहें तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यदि व्यक्ति में चरित्र (मौरल) हो तो उसे ऊँचा स्थान निश्चित रूप से मिल जाता है।
ji han charitra hi to jeevan ki kunji hai.........rishwat safalta ki nhi charitra safalta ki kunji hota hai.aaj bhi wo hi log yaad kiye jate hain jinka charitra uncha raha.
ReplyDeleteबहुत सही बात समझायी है आपने
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चाँद, बादल और शाम
ये सच है ....रिश्वत न लेने वाले के पास जो ताकत होती है उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता ..
ReplyDeleteहे रिश्वत हे देवी तुझे मैं शीश नवाऊं
ReplyDeleteनूतन जग की सृष्टा मैं तेरे गुण गाऊं
rishwat liye bagair ab kaam nahi chalta(sarkaari kaaryaalo me) to rishwat diye bagair kaise hoga...par main tahe dil se aapke is ravaiye ki izzat karta hoon..agar is jeevan ke saath aap khud ko apne aadarsho me vijayi paate hai to bas wohi sach hai...baaki saamajik drishti se kaun kitna safal hai wo itna maayne nahi rakhtaa
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आदर्शों की राह पर चलना कठिन जरुर है मगर फल मीठे आते हैं.
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