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Wednesday, 13 May 2009

‘‘माँ की पसन्द के गहने’’


काफी समय पहले की बात है। एक पुत्र अपनी माता के पैर दबा रहा था।
उसने माता से बड़े प्यार से कहा- ‘‘माँ! तुमने सारी उम्र गरीबी में गुजर-बसर करके भी मुझे पढ़ा-लिखा कर काबिल बना दिया। अब मैं सबसे पहले तुम्हारे लिए अच्छे-अच्छे सोने-चाँदी के गहने बनवाऊँगा।’’
माँ यह सब चुपचाप सुनती रही।
जब बेटे ने अपनी बात पूरी कर ली तो माँ ने पुत्र से कहा- ‘‘बेटा! मुझे भी गहनों का बहुत शौक है। परन्तु गहने मेरी पसन्द के बनवाना।’’
बेटे ने कहा- ‘‘माँ! तुम अपनी पसन्द बताओ तो सही। मैं गहने तुम्हारी पसन्द के ही बनावाऊँगा।’’
माँ ने कहा- ‘‘बेटा! मुझे तीन प्रकार के गहने पसन्द हैं-
हमारे देश में अशिक्षा चारों ओर व्याप्त है। मेरा सबसे प्रिय गहना यही होगा कि तुम देश में जगह-जगह पर पाठशाला खुलवाओ।
मेरा दूसरा गहना यह है कि देश में चिकित्सालयों के अभाव में बीमारी से लोग काल के ग्रास में समा जाते हैं। तुम जगह-जगह पर अस्पताल बनवाओ।
मेरी पसन्द का तीसरा सबसे बड़ा गहना है कि अनाथ बच्चों के लालन-पालन के लिए तुम देश में अनाथालय बनवाओ।
बेटा! क्या तुम मेरे लिए ये गहने बनवा सकोगे?’’
बेटे ने माँ को वचन दिया और कहा- ‘‘माँ! मैं तुम्हारी ये इच्छाएँ अवश्य पुर्ण करूँगा।’’
जानते हो यह युवक कौन था?
जी हाँ, यह युवक ईश्वरचन्द्र विद्यासागर था।
जिसने अपना सारा जीवन माँ की इच्छाओं को पूर्ण करने में लगा दिया।

6 comments:

  1. dhyan wo mata aur dhanya wo beta o apni maa ki icchaon ke liye jeevan samarpit kare,bahut prerak kahani lagi.shukran

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  2. बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है ....वास्तव में आज समाज को ऐसे ही गहनों की ज़रुरत है ...

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  3. ishwar chand vidyasagar ji ke baare mein aur to sab pata tha magar is shiksha ke bare mein aapse jankari prapt huyi.shukriya.
    sach agar har maa apne bachchon ko aisi hi shiksha de to har ghar mein aise hi putra hon aur is desh se garibi,ashiksha jaise kodh door ho jayein.

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  4. हाँ जी, वाकई माँ माँ होती है.

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  5. बहुत ही प्रेरणापद प्रसंग है आभार्

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  6. बहुत अच्छे प्रेरक-प्रसंग का चयन किया है!

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