“बया”
“दुनिया का सबसे कुशल वास्तुविद”
बात बहुत पुरानी है। उन दिनों में कक्षा 9 में नजीबाबाद में पढ़ता था। वहाँ से 4-5 किमी दूर मेरे मौसा जी का गाँव अकबरपुर-चौगाँवा था। मेरे मौसा श्री जयराम सिंह अधिक पढ़े-लिखे तो नहीं थे मगर तार्किक बहुत थे। मुझे वो बहुत पसंद करते थे क्योंकि मैं उनके साथ खेती-बाड़ी के काम में उनका हाथ भी बँटा देता था।
जब भी मैं उनके गाँव में जाया करता था तो रास्ते में रेतीला बंजर और खजूर के पेड़ों का जंगल पार करना पड़ता था जिसके 500 मीटर बाद मौसा जी का गाँव बसा हुआ था। इन खजूर के पेड़ों पर बया के बहुत सारे घोंसले लटके होते थे। जिन पर बया चिड़ियाएँ कलरव करती हुई मुझे बहुत अच्छी लगती थीं।
आज उनके बारे में पाठकों को कुछ बताना चाहता हूँ।
बया गौरय्या जैसी ही एक चिड़िया होती है। जिसको जुलाहा पक्षी भी कहा जाता है। क्योंकि यह दुनिया का सबसे कुशल शिल्पी होता है।
बहुत से लोग शायद यह नहीं जानते होंगे कि बया हर मौसम में उसके अनुकूल अपना घोंसला बनाता है।
बात शुरू करते हैं गर्मियों से। तो यह गर्मियों में अपना घर बहुत हवादार बनाता है। जिसमें कि प्राकृतिक हवा आती-जाती रहे।
जैसे ही इसे बरसात के आगमन का आभास होता है यह बरसात के अनुकूल घोसला बनाने में जुट जाता है। बारिश से बचने के लिए यह विशेष प्रकार का घर बुनता है जो उलटी सुराहीनुमा होता है। अर्थात यह इस घोंसले में आने-जाने के लिए नीचे की ओर द्वार रखता है।
जैसे ही बारिश का मौसम समाप्त होता है तो उस समय यह जाड़ें की ऋतु के अनुकूल अपना घोंसला बुनने लगता है। इसकी बनानट ऐसी होती है कि इसमें शीत की हवाएँ घोंसले के भीतर नहीं जा सकती हैं।
एक बार मैं बरसात के मौसम में मौसा जी के गाँव गया तो शाम को चौपाल पर “बया” के बारे में चर्चा चल पड़ी। मौसा जी ने बताया कि बया के तुरही नुमा घर में रौशनी का भी इन्तजाम रहता है। इस पर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ।
मैंने मौसा जी से पूछा “मौसा जी बया के घोसलें में रौशनी कैसे होती है?”
मौसा जी ने बताया कि बया अपनी चोंच में गीली मिट्टी ले जाकर उसको अपने घोंसले की दीवारों में चिपका आता है और शाम होते ही जुगनुओं (खद्योतों) को अपनी चोंच में पकड़कर घोंसले के भीतर ले जाता है और उनको गीली मिट्टी में इस प्रकार लगा देता है कि उसका मुँह मिट्टी में धँस जाए और उसका पीछे का हिस्सा जो प्रकाशित होकर टिमटिमाता है वह बाहर की ओर रहे। इस प्रकार बया का अंधेरा घोंसला प्रकाशमान होता रहता है।
मुझे मौसा जी बात पर सहज ही विश्वास न हुआ तो उन्होंने एवरेडी की 3 सेल वाली टॉर्च साथ ली और मुझे खजूरियों के वृक्षों के जंगल की ओर ले गये। इस चमत्कारी बात की सत्यता को जानने के लिए गाँव के कुछ और लोग भी हमारे चल पड़े।
जंगल में पहुँच कर मौसा जी ने टॉर्च बन्द कर दी और कहा कि इन लटकते हुए घोंसलों में झाँक कर देखो।
यब मैंने 2-4 घोंसलों के नीचे जाकर झाँककर देखा तो उनमें से टिम-टिम करता हुआ प्रकाश आलोकित होता हुआ नज़र आया।
अब तो आप समझ ही गये होंगे कि “बया” दुनिया का सबसे बड़ा भवनइंजीनियर और वास्तुविद् होता है।
वास्तव में बया का कोई मुकाबला नहीं इस शिल्प में ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
सच में ....कमाल की है इस पक्षी की कारीगरी
ReplyDeleteमैंने इस शानदार पोस्ट को चर्चा मंच के लिया है .
ReplyDeleteसचमुच बया एक शानदार वस्तुविद है और आपने इसे शानदार तरीके और सुंदर तस्वीरों के साथ प्रस्तुत किया है
Ek saans me padh gayee sab...bahut hee badhiya jaankaaree milee hai!Tasveeren bhee behad achhee hain!
ReplyDeleteबड़ा ही रोचक आलेख है। सबसे सुखद लगा इसके चित्र। लाजवाब हैं!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और ज्ञानवर्द्धक संस्मरण...वास्तव में बया को कोई ज़वाब नहीं इस कार्य के लिए
ReplyDeleteरोचक जानकारी...
ReplyDeleteइतनी सफाई से अपना काम करतीं हैं...जैसे कोई मास्टरपीस बना रक्खा हो...ख़ुदा की नेमत है...ये हुनर...
ReplyDeleteप्यारे फोटो ...अच्छी जानकारी...
ReplyDeleteवाह आजतक सिर्फ सुना था. आज इतने सुन्दर चित्र भी देखे और अद्भुत रोचक जानकारी भी मिली.वाकई बया का मुकाबला कौन कर सकता है .
ReplyDeleteआभार इस सुन्दर पोस्ट का.
beautiful pics
ReplyDeletefull of information
kamaal ka panchhi.........
ReplyDeletevaakai shilpa ka jaadugar hai ye
nice post !
बया की शिल्पकारी...अच्छा आलेख.
ReplyDeleteमादा बया, नर के वास्तु कौशल के आधार पर ही अपने साथी का चयन करती है और नर एक एक कर अपनी मादा साथी बदलता रहता है.
ReplyDeleteबया के घोंसले बस देखे थे ..आज विस्तृत जानकारी मिली ..आभार
ReplyDeleteहवा में लटकता घर, सर्वोत्तम।
ReplyDeletechitro ke saath bahut hee rochak jaankaari di hai aapne!
ReplyDeleteबया की शिल्पकारी बड़ा ही रोचक आलेख है। चित्र भी बहुत सुन्दर हैं.....आभार...
ReplyDeletesach me achchhi jaankari...
ReplyDeletehamko bhi iski jankari thi kyoki hum bhi aapke parosi hi hai metro cities wale to iske bare mein jaante hi nahi
ReplyDeleteबाया पक्षी वाकई कुशल वास्तुविद अथवा गृह निर्माण इंजीनीअर है ...
ReplyDeleteरोचक जानकारी !
bahut sunder daa
ReplyDeletesapne bhi baya ke jaise bunane chahiye
शानदार शिल्पकारी. वया का कोई जवाब नहीं। हम सब की नजर से ये गुजरता है, लेकिन आपने इसे जिस तरह से संवारा है, बहुत सुंदर।
ReplyDeleteआभार
बहुत सुंदर प्रस्तुति, चित्र तो लाजवाब हैं,
ReplyDeleteबधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वाकई में कमाल की पंछी है! कारीगरी देखकर आश्चर्य लगता है!सुन्दर चित्रों के साथ बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
उफ़ आज फिर मेरा कमेन्ट जाने कहाँ गायब हो गया.
ReplyDeleteयह तो आपने अच्छी बात बताई...आभार.
ReplyDeletekya sach me aisa hai shashtri ji..tab to bya ham insano se bhi jyada samjhdar hai..sachitr bahut sundar....achhi jankari mili shukriya
ReplyDeleteit was really pleasure to read your article.....got to know many things...and over that nicely presented:)
ReplyDeleteभाई साहब आप ब्लॉग पर आये अच्छा लगा .कुछ लोगों की रचनाओं और उनके पधार ने का इंतज़ार रहता है उनमे से एक शीर्ष पर आप हैं .शुक्रिया .प्रकाशित पुस्तक से ग़ज़लें कभी कभार एक दो दो करके छापिए.
ReplyDeleteबया पक्षी का घोंसला हमने भी देखा है लेकिन वह वातानुकूलित रखता है घर को मौसम के अनुकूल और प्रकाश व्यवस्था भी किए रहता है यह एक नै जानकारी आपसे हासिल हुई .आपकी सूक्ष्म दृष्टि सच मुच सही कहा गया है -जहां न पहुंचे राजा औ रंक वहां पहुंचे "मयंक ".
शास्त्री जी बहुत सुन्दर छवियों के साथ सार्थक जानकारी -मजा तो तब आया जब जुगनुओं को लगाकर इसने घोंसला रोशन किया अब हम भी खोजेंगे -बधाई
ReplyDeleteशुक्ल भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
bahut sundar post...
ReplyDeleteउम्दा जानकारी से भरपूर पोस्ट ! निसंदेह बया किसी इंजिनियर से कम नहीं
ReplyDeleteवाह! बयां क्या शानदार रचना है पृकृति की
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