बहुधा देखा गया है कि लोग 60 साल की आयु में आते-आते बहुत चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं। जिसके कारण उनका तन और मन भी सूखने लगता है। बहुत सी बीमारियाँ भी घेर लेती हैं और दुनिया से मोह भंग होने लगता है। इसके बहुत से परिस्थितिजन्य कारण हो सकते हैं।
कहा जाता है कि स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन वास करता है और इसके लिए कोई अधिक प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। बस जरूरत है आहार और विहार की। मैं इसको स्पष्ट करने के लिए अपने जीवन से जुड़ी हुई कुछ बातें आपके साथ साझा करना चाहता हूँ।
मेरा जन्म उत्तर-प्रदेश नजीबाबाद के रम्पुरा मुहल्ले में हुआ था। उस समय पिता जी पटवारी के पद पर कार्यरत थे। अतः गुज़ारा आराम से हो जाता था। बाद में चौधरी चरण सिंह मुख्यमऩ्त्री बने। उस समय पटवारियों की हड़ताल चल रही थी। हड़ताल ख़त्म करने के लिए 48 घण्टे का समय दिया गया। लेकिन पिता जी इस अवधि में काम पर नहीं लौटे तो नौकरी से टर्मिनेट कर दिया गया। अब हमारे गर्दिश के दिन शुरू हो गये थे।
माता जी पानी के हाथ की रोटी बनाती थी। कभी-कभी एक सब्जी और अचार तथा कभी अचार के साथ रोटी। यही हमारा खाना और नाश्ता था। फिर शाम को दाल-भात और रोटी। दिन में सब लोग अपने काम में लग जाते थे।
समय बीतता रहा और मैं डॉक्टर बन गया। ईश्वर की कृपा ऐसी रही कि मैं जिस रोगी को दवा देता उसको आराम हो जाता। हमारे अच्छे दिन फिर लौट आये थे। मगर खाना वही गरीबी वाला ही मन में बसा हुआ था। जबकि मेरे पुत्र जिन्होंने कि खाते-पीते परिवेश में आँखें खोली थी। वो आज भी रईसों की तरह ही सुबह 9 बजे नाश्ता लेते हैं, अपराह्न 3 बजे दोपहर का खाना और रात का खाना 9-10 बजे तक खाते हैं।
अरे! अपनी धुन में मग्न हो गया मैं तो और आलेख लम्बा हो गया। किन्तु जिस बात को बताने केलिए यह लेख लिखा वो तो भूल ही गया। अब उसी पर आता हूँ।
लोग पूछते हैं कि शास्त्री आपकी कितनी आयु है। मै सहज भाव से बता देता हूँ कि साठ साल। लोग आश्चर्य करते हैं कि इस उम्र में भी मेरी आँखे-दाँत. कान और शरीर स्वस्थ क्यों है?
चलिए आपको इसका राज़ बता देता हूँ!
मैं सुबह 5 बजे उठता हूँ। शौच आदि से निवृत्त होकर 15-20 मिनट हलका-फुलका सहज योग करता हूँ। स्नान के बाद इण्टरनेट का व्यसन भी कर पूरा लेता हूँ। तब तक श्रीमती जी पानी के हाथ की दो रोटी और चावल ले आती हैं। इसे आप चाहे मेरा नाश्ता कहें या खाना कहें, मैं खा लेता हूँ। वैसे मुझे काले चने मिले हुए पीले चावल बहुत अच्छे लगते हैं। दिन में एक-दो चाय मित्रों के साथ हो जाती हैं। डेढ़-दो बजे दोपहर तक रोगियों को भी देखता रहता हूँ और आभासी दुनिया में इंटरनेट के माध्यम से जुड़ा रहता हूँ। शाम को सात बजे से पहले ही भोजन कर लेता हूँ। किसी बात को मन में गाँठ बाँधकर नहीं बैठता हूँ। सोचता भी बहुत कम ही हूँ। अतः बड़ा से बड़ा नुकसान होने पर भी गर्दन झटक कर चिन्ता को हटा देता हूँ।
मित्रों यही मेरे अच्छे स्वास्थ्य का राज़ है।
क्या बात हें शास्त्री जी ? आपकी तंदरुस्ती का राज आज मालुम हुआ ...यह पानी की रोटी क्या होती हें ? समझ नहीं आया ....आपके नक्शे कदम पर ही चलना चाहीए..अगर स्वस्थ्य रहना हो तो ...धन्यवाद ---
ReplyDeleteसंयत जीवन जीना ही उम्र बढाता है और ईश्वर आपको लम्बी उम्र दे।
ReplyDeletesab aap ki tarah nahi hai
ReplyDeletesab ka aapna aapna jivan kese gujar rhe aap keya janathe hai
bahut aacha laga aap ka keyal
sundar
दर्शन कौर जी!
ReplyDeleteहाथ पर पानी लगा कर आटे की जिस लोई की रोटी हाथ से ही बनाई जाती हो, उसी को पानी की रोटी कहते हैं।
बहुत सच कहा है। आपने हाथ की रोटी की याद दिलादी जो अब केवल स्वप्न बन कर रह गई है।
ReplyDeleteबहुत सार्थक आलेख। आभार
मक्की दी रोटी ते सरयों दा साग ट्राई कित्ता कदी
ReplyDeleteबहुत सच कहा है। सादा भोजन ही तंदुरुस्ती के लिए सही आहार है| धन्यवाद|
ReplyDeletesahi kaha hai shastri ji sehat ka yahi raj hai
ReplyDeleteस्वास्थ्य का ये राज तो हमें भी पता था। पर ये पहली बार पता लगा कि आप चिकित्सक भी हैं।
ReplyDeleteशास्त्री जी मगर आपने यह तो बताया नहीं की आपकी उम्र क्या है ?चलिए जितनी भी है उसमें १०० और जोड़ लीजिये हमारी ओर से !
ReplyDeleteश्री मान जी नमस्कार
ReplyDeleteआपने जो सेहत का राज बताया वो सबके लिए मूल्यवान है जरुर हम इसका फायदा उठायेगें और जो आपने पानी वाली रोटी बताई वो मैंने बचपन में बहुत खाई है ...
शास्त्री जी , सही कहा आपने , सादा जीवन ही स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है ।
ReplyDeleteईश्वर आपको लम्बी आयु दे और आप यूँ ही जन सेवा करते रहें ।
बहुत खूब शास्त्री जी "सादा जीवन उच्च विचार" ही जीवन का सही मूल्य है। धन्यवाद....
ReplyDeleteईश्वर आपको लंबी उम्र दे.आप चिकित्सक भी हैं ये पहली बार पाता चला.
ReplyDeleteतभी तो कहूं कि इतनी संखया और गुणवत्ता में गीत कविताओं कि रचना किस आटे की रोटी खा कर होती है।
ReplyDeleteमैं भी यही दिन चर्या अपनाने जा रहा हूं। ..
‘च्यवन ऋषि‘ के सच्चे वारिस हैं श्री रूपचंद शास्त्री ‘मयंक‘ जी Chyvan Rishi
ReplyDeleteBahut badhiya raaz ujagar kiya aapne! Aahar aur vihar donon kee ahmiyat bade achhe se batayee hai! Eeshwar aapko hamesha swasth rakhe!
ReplyDeleteRaaz jaan lene ke baad uspe amal karna bhee bahut zarooree hota hai....uske liye aapke jaisee ichha shakti chahiye!
ReplyDeleteRoopchandra ji,
ReplyDeleteaapki jivan shaili padhkar mujhe apne bachpan ke din yaad aa gay. mere pita jab tak rahe hum log bhi subah ek baar hin chaahe naashta kahen ya khana khaa lete they aur fir shaam ko 7 baje se pahle raat ka khana. khane ka ye niyam jyada prakritik hai, aur isi liye aap swasth hain. aaj ki jivan shaili aur khaan paan bahut badal chuka hai, isi liye bimaari bhi badh rahi hai. lekin ek faayeda to hai ki doctor ke paas mareez jyada aate hain. sabhi swasth hon to fir doctor...
bahut achchha laga aapke swasth jivan ka raaz jaankar. yun hin aap sadaiv swasth aur aanadmay rahein bahut shubhkaamnaayen.
कहावत भी है...साठा सो पाठा...स्वस्थ जीवन की शैली शेयर करने के लिए...धन्यवाद...
ReplyDeletebadhiyaa hai....
ReplyDeletesaada jeevan uchch vichaar
bahut sunder jaankari mili sayimit jeevan ki......
ReplyDeleteक्यों न युवा इस फार्मूले को आज से ही अपनाएं!
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