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Saturday, 30 May 2009

‘‘जिन्दगी और मौत’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

पिछले सप्ताह मैंने दो घटनाएँ अपनी खुली आँखों से देखी।

पहली घटना -

मैंने 10 साल पहले एक पिल्ला पाला था उसका नाम रखा था पिल्लू। दोपहर का समय था। कोई सज्जन मुझसे मिलने के लिए आये। कार उन्होंने आँगन में खड़ी कर दी। कार के नीचे पिल्लू बैठ गया। जब वो जाने लगे तो उन्होंने कार के नीचे नही देखा और कार बैक कर दी।

पिल्लू के ऊपर कार का पिछला पहिया पूरा उतर गया। परन्तु पिल्लू चिल्लाता हुआ भाग गया। उसे कुछ भी नही हुआ था और वो सही सलामत था। आज भी है।

‘‘जाको राखे साइँया मार सो ना कोय।’’

दूसरी घटना-

मेरे यहाँ छुट-पुट मरम्मत का निर्माण कार्य चल रहा था। मजदूर पुरानी ईंटें हटाने लगा तो उसे 18 इंच लम्बे काले रंग के साँप का जोड़ा दिखाई पड़ा। वह साँप-साँप कह कर चिल्लाया तो दूसरे मजदूर ने लपक कर एक साँप को फावड़े से मार दिया। परन्तु दूसरा उछल कर भाग गया। वह मेरे घर के सामने हाई-वे पर आ गया।

लेकिन यह क्या, सही सलामत बचे मन दूसरे साँप के ऊपर से रोडवेज की एक बस उतर गयी और वह भी कुचल कर मर गया।

अर्थात् जब मृत्यु आ जाती है तो कोई नही बचा सकता।

4 comments:

  1. dono hi atal satya hain..........zindagi bhi aur maut bhi.

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  2. मैं वन्दना जी की टिप्पणी से इत्तेफ़ाक रखता हूं.. सच में होनी को कोई नहीं टाल सकता

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  3. बिल्कुल सत्यवचन हैं आभार्

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