समर्थक

Wednesday, 23 February 2011

"उजला आसमाँ-संगीता स्वरूप" (समीक्षक-डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")

आज प्रस्तुत है हाल ही में प्रकाशित 
संगीता स्वरूप 'गीत' के काव्य संकलन 
"उजला आसमाँ" की समीक्षा।

      समीक्षा करना तो मैं जानता नहीं हूँ मगर संगीता स्वरूप जी ने बहुत ही स्नेह से इस पुस्तक को मुझ तक पहुँचाया है इसलिए प्रतिक्रियास्वरूप कुछ लिखना अपना धर्म समझता हूँ।
   पुस्तक के बारे में कुछ कहने से पहले मैं संगीता जी के बारे में कुछ कहना जरूरी समझता हूँ।
   श्री सुरेशचन्द्र गुप्ता और श्रीमती सरोज गुप्ता की पुत्री संगीता का जन्म सात मई 1953 को रुड़की में हुआ था। इन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ (उ.प्र.) से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इन्हें बाल्यकाल से ही खेलों में बहुत रुचि रही है। यह अपने विश्वविद्यालय की टेबिलटेनिस टीम की कैप्टेन भी रह चुकी हैं। संगीता जी का विवाह पेशे से इंजीनियर प्रशान्त स्वरूप के हुआ। इन्होंने केन्द्रीय विद्यालय में अध्यापन भी किया लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों को देखते हुए इन्होंने सेवा को स्वेच्छा से छोड़ दिया। वर्तमान समय में आप अपने पति एवं पुत्र के साथ दिल्ली में रह रहीं हैं।
   जहाँ आज कुछ लोग यह कह रहे हैं कि ब्लॉग पर साहित्य जैसा कुछ नहीं होता है, वहीं संगीता स्वरूप ने यह सिद्ध करके दिखाया है कि ब्लॉग पर साहित्य भी है और साहित्यकार भी। क्योंकि उजला आसमाँ ब्लॉगिंग की ही देन है।
      आकर्षक हार्डबाइंडिग में गुँथी हुई 104 पृष्ठों की इस काव्यपुस्तिका को शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है।
   इसमें संकलित अधिकांश रचनाओं को मैं इनके ब्लॉग गीत तथा राजभाषा हिन्दी पर पढ़ चुका हूँ।
   परिवेश में व्याप्त कुरीतियों और विसंगतियों को कवयित्री ने अपनी पैनी दृष्टि से देखा और निर्भय होकर उस पर अपनी लेखनी चलाई।
चिलचिलाती धूप में
चीथड़े पहने हुए
चौराहे पर खड़ा
चौदह बरस का बालक
चिल्ला रहा था
आज की ताजा खबर........
बाबू ले लो अखबार
आज की ताजा खबर
शिक्षा का सबको अधिकार
   पुत्र होने पर माँ का सम्मान और पुत्री होने पर माँ का तिरस्कार देखकर कवयित्री के मन में भाव कुछ इस तरह जन्म लेते हैं-
न जाने क्यों आज भी हमारे समाज में
हर घर परिवार में
पुत्र की चाहत का इज़हार किया जाता है
गर बेटी हो जाए तो
माँ का तिरस्कार किया जाता है........
रचना के अन्त में ये लिखती हैं-
बेटियाँ मन के आँगन में गूँजती
पायल की रुन-झुन होती हैं
उनके जीवन के गीतों में
प्यारी सी धुन होती हैं
      मार्मिक शब्दों में समाज की मानसिकता पर चोट करने से भी संगीता जी ने कभी अपना मुँह नहीं फेरा है-
        “रचयिता सृष्टि की रचना में अपनी बात को शुरू करते हुए रचनाकर्त्री ने लिखा है-
मां के गर्भ में साँस लेते हुए
मैं खुश हूँ बहुत......
.............
क्या होगा?
परीक्षण का परिणाम।
....................
माँ बेतहासा रो रही है......
मना कर रही है
...............
इस बार भी परीक्षण में
कन्या भ्रूण ही आ गया है
इसीलिए बाबा ने
मेरी मौत पर हस्ताक्षर कर दिया है........
उजला आसमाँ पुस्तक का मूल्य 125 रुपये है जो अधिक लगता है किन्तु इस मँहगाई के युग में यह इतना अधिक भी नहीं कि पाठक इसको खरीद ही न सके। इस संकलन में जोड़ी गयीं रचनाएँ तो अमूल्य है। जिसमें जीवन से जुड़े हुए सभी प्रमुख विषयों पर सारगर्भित रचनाएँ संकलित हैं।
   संकलन को आद्योपान्त पढ़ने के बाद मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि संगीता जी की कविताएँ न केवल नये युग की कविताएँ है बल्कि कालजयी रचनाओँ का यह एक ऐसा गुलदस्ता है जिसकी ताजगी युगों-युगों तक बनी रहेगी।
   पुस्तक के कलापक्ष  पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो इसमें पृष्ठों का दुरुपयोग कहीं पर भी नही किया गया है अर्थात् एक रचना एक या दो पृष्ठों पर और पृ्ष्ठ पूरे भरे हुए।
   कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि उजला आसमाँ एक उपयोगी काव्य संकलन है जिसमें रचनाकर्त्री की विद्वता और परिश्रम परिलक्षित होता है।

33 comments:

  1. Sameeksha behad achhee huee hai.Kitab khareedne ka man avashy hai.

    ReplyDelete
  2. sangeeta ji ki rachnayen aur shastri ji ki samiksha behad prabhawshali... badhaai awam shubhkamnayen

    ReplyDelete
  3. संगीता जी की कविताओ का मै घोर प्रशंसक हूँ . उनकी कल्पना शीलता , भाव प्रवणता , और जीवन को देखने की दृष्टि मुझे हमेशा आकर्षित करती आयी है . ब्लॉग पर उच्च कोटि का साहित्य, ये पूर्णतः सत्य है संगीता जी की कविताओ के सन्दर्भ में . आभार आपका .

    ReplyDelete
  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (24-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    ReplyDelete
  5. संगीता जी की रचनायें साहित्यिक एवं सारगर्भित तो होती ही हैं उनकी रचनायें जीवन के प्रति उनके विशिष्ट दृष्टिकोण को भी दर्शाती हैं !'उजाला आसमाँ' अपने विस्तार में उनकी रचनाओं के कितने अनमोल सितारे समेटे हुए है उन्हें देखने और पढ़ने की तीव्र लालसा है ! मुझे पूर्ण विश्वास है कि संकलन की हर रचना ध्रुव तारे की तरह उज्ज्वल और दैदीप्यमान ही होगी ! संगीताजी को इस उपलब्धि के लिये हार्दिक बधाइयाँ तथा पुस्तक की सुन्दर समीक्षा के लिये शास्त्री जी का बहुत-बहुत आभार एवं धन्यवाद !

    ReplyDelete
  6. संगीता जी की कवितायेँ इस ब्लॉग जगत की अमूल्य निधि हैं इसमें कोई शंका नहीं.साहित्य,शिल्प और भावों का अनूठा संगम हैं उनकी रचनाये.
    इतनी सुन्दर समीक्षा के के लिए शास्त्री जी का बहुत बहुत आभार.
    और संगीता जी को तहे दिल से बधाई..

    ReplyDelete
  7. संगीता जी ने बहुत ही संवेदनशील रचनाकार के रूप में अपने आप को स्थापित किया है ... उनकी रचनाएं सामाजिक सरोकार लिए ... बहुत ही लाजवाब होती हैं ... इस सुन्दर भाव भरी समीखा के लिया आपको बधाई ...

    ReplyDelete
  8. समीक्षा बहुत ही सुन्दर लगी...आभार.

    ReplyDelete
  9. शास्त्री जी ,

    आपने मेरी पुस्तक पढ़ी और अपनी विशेष कृपा दृष्टि रखी ...इसके लिए आभारी हूँ ....
    मेरी रचनाओं को साहित्य की श्रेणी में रख मुझे जो मान दिया है उसके लिए तहेदिल से शुक्रिया ...

    @@ अपने सभी पाठकों का धन्यवाद करती हूँ जिनकी प्रेरणा से मैं यह सब कर पायी ...आपकी प्रतिक्रिया ही मेरे लेखन की ताकत है ..आभार

    ReplyDelete
  10. samiksha bahut achhi lagi...sangeeta ji ko badhai..

    ReplyDelete
  11. धन्यवाद शास्त्री जी इस काव्य संग्रह से रू-ब-रू कराने के लिए।
    संगीता जी की कविताएं समय और समाज की कुछ तल्ख़ सचाइयों को बड़ी बारीकी से बयां करती हैं। उनकी कविताएं काफी अर्थपूर्ण होती हैं, और ज्‍यादा समकालीन भी।

    ReplyDelete
  12. सर्वप्रथम संगीता जी आपके इस काव्य संग्रह के लिए आपको ढ़ेरो सारी बधाई..आपका बहुत सारा शुक्रिया जो आपने अपने काव्य सुधा से जनमानस को अवगत कराया.....शास्त्री जी ने बहुत ही सुंदरता और सादगी संग इस पुस्तक की समीक्षा की है........आप दोनों को धन्यवाद और आभार।

    ReplyDelete
  13. संगीता जी का साहित्य उनके ब्लॉग पर पढ़ने का सुअवसर मिलता रहता है !
    इसमें कोई संदेह नहीं कि संगीता जी बहुत अच्छा लिखती हैं !
    आज उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में विस्तृत जानकारी पाकर और भी अच्छा लगा !
    उनकी काव्य कृति " उजाला आसमाँ" के प्रकाशन पर मेरी ढेरों शुभकामनाएँ !

    ReplyDelete
  14. आदरणीय संगीता जी की रचनाएँ निःसंदेह पूरी तरह से साहित्यिक होती हैं | शास्त्री जी द्वारा की गयी समीक्षा बहुत अच्छी लगी |

    ReplyDelete
  15. संगीताजी की रचनाएँ ब्लॉग पर अच्छे साहित्य के रूप में मील का पत्थर है ,
    अच्छी समीक्षा की आपने !

    ReplyDelete
  16. प्रभावशाली समीक्षा. वैसे संगीता जी लिखती भी बहुत अच्छा हैं.पुस्तक हेतु उन्हें बधाई.

    ReplyDelete
  17. namaste,
    aap jese guroojano ke kadamo par chalte huye blog parivaar main kadam rakha hai , sayoug aur utsahvardhan ki asha karoongi.
    krati-fourthpillar.blogspot.com

    ReplyDelete
  18. namaste,
    aap jese guroojano ke kadamo par chalte huye blog parivaar main kadam rakha hai , sayoug aur utsahvardhan ki asha karoongi.
    krati-fourthpillar.blogspot.com

    ReplyDelete
  19. .

    शास्त्री जी ,

    संगीता जी का परिचय एवं पुस्तक की बेहतरीन समीक्षा के लिए आपका आभार । संगीता जी की रचनाओं की प्रशंसक हूँ मैं ।

    .

    ReplyDelete
  20. संगीता जी की कविताएं बहुत ही लाजवाब होती हैं.
    उनकी कविताओ के शब्द शब्द भावपूर्ण होते हैं .
    पुस्तक की समीक्षा के लिये शास्त्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद !

    ReplyDelete
  21. समीक्षा बहुत ही सुन्दर लगी..
    संगीता जी को बधाई..

    ReplyDelete
  22. सुंदर प्रस्तुति
    आप समीक्षक है . निस्संदेह आपसे काफी कुछ सीखने को मिलेगा .
    आपने AIBA पर मेरे कुंडलिया छंद की आलोचना की है , कृपया विस्तार से बताएं
    मेरी तुच्छ जानकारी के मुताबिक एक दोहा ( १३,११ मात्राएँ ) और एक रौला (११,१३ ) एक कुंडलिया का निर्माण करता है . दोहे की अंतिम पंक्ति रौले की प्रथम पंक्ति होती है . जिस शब्द से कुंडलिया शुरू होता है उसी से समाप्त होता है . क्या इन नियमों का निर्वाह मैंने नहीं किया है ? आखिर किस वजह से आपको इतनी कठोर बात कहनी पड़ी कि मैंने शब्दों का अपमान किया है . कहीं आप विषय से तो असहमत नहीं ? समय मिले तो AIBA आकर कृपया पूरे विस्तारपूर्वक बताएं
    आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी .

    ReplyDelete
  23. महोदय
    कक्षा में बच्चों को तुलसीदास का लक्ष्मण मूर्छा प्रसंग पढवाता हूँ
    तुलसीदास जैसा विद्वान् कवि तो कोई नहीं लेकिन इसे क्या कहूं समझ नहीं आता , वैसे है ये दोहा --

    तब प्रताप उर राखि , प्रभु जैहउं नाथ तुरंत
    अस कहि आयसु पाई ,पद बंदी चलेउ हनुमंत

    इसमें 12 , 14 , 11 , 14 , मात्राएँ हैं , दोहा चौपाई में लिखे ग्रन्थ में ये कौन सा छंद है

    ReplyDelete
  24. अंतिम दो टिप्पणियाँ देखी...आपकी प्रतिक्रिया का इन्तजार है.

    ReplyDelete
  25. इस ब्लॉग पर आई टिप्पणियाँ देखकर आप अन्दाजा लगा लें!
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) ने कहा…
    यह कुण्डलिया छन्द नहीं है!
    कम से कम छन्दों को तोड़-मरोड़कर उनका अपमान तो मत कीजिए!

    मंगलवार, १ मार्च २०११ १०:२०:०० अपराह्न IST


    Minakshi Pant ने कहा…
    बिलकुल सही कहा आपने |

    मंगलवार, १ मार्च २०११ १०:३१:०० अपराह्न IST

    Dilbag Virk ने कहा…
    r.mayank ji
    kripy yeh to btaen ki yh kundliya chhand kyon nhin hai

    meri jankari ke mutabik to ek doha aur ek raula kundliya hota hai . dohe men 13,11 matraen aur raule men 11,13 mataraen hoti hain . dohe ki antim pankti role ki prathm pankti hoti hai . jis shabd se kundliya shuru hota hai usi se kundliya smapt hota hai .
    kya in niymon ka nirvah is chhand men nhin hua .

    ydi aap dovara yhan aaen to kripa spsht kre ki maine shbdo ka apman kaise kiya hai

    बुधवार, २ मार्च २०११ ९:५८:०० पूर्वाह्न IST

    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) ने कहा…
    हम हिन्दू ,तुम मुस्लमान, क्यों सोच है ऐसी
    भाई - भाई क्यों नहीं , बने भारतवासी .
    बने भारतवासी , एक - दूसरे के दुश्मन
    धर्म मिलाता सदा , यहाँ बाँट रहा है मन .
    छोडो संकीर्णता , सबसे बड़ा मानव धर्म
    कहता ' विर्क ' सबसे , पहले इन्सान हैं हम .
    --
    कुण्डलिया छन्द में
    आपने ही सही परिभाषा दी है
    "मेरी तुच्छ जानकारी के मुताबिक एक दोहा ( १३,११ मात्राएँ ) और एक रौला (११,१३ ) एक कुंडलिया का निर्माण करता है . दोहे की अंतिम पंक्ति रौले की प्रथम पंक्ति होती है . जिस शब्द से कुंडलिया शुरू होता है उसी से समाप्त होता है . क्या इन नियमों का निर्वाह मैंने नहीं किया है ? "
    --
    कुण्डलिया छन्द की पहचान होती है कि जिस शब्द या समूह से यह छन्द शुरू होता है अन्त में भी वही शब्द आना अनिवार्य है!
    कुण्डलिया इसीलिए इसका नाम रखा गया है!
    --
    कुण्डलिया मात्रिक छंद है। दो दोहों के बीच एक रोला मिला कर कुण्डलिया बनती है। पहले दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है तथा जिस शब्द से कुण्डलिया का आरम्भ होता है, उसी शब्द से कुण्डलिया समाप्त भी होता है।
    --
    आप देखिए और हो सके तो सुधार भी कर लीजिए!
    क्या आपकी कुण्डलियानुमा छक्के में अन्त में शुरू का शब्द है!

    बुधवार, २ मार्च २०११ १०:५६:०० पूर्वाह्न IST


    Dilbag Virk ने कहा…
    जी हाँ , यह छंद '' हम '' शब्द से शरू हुआ है और '' हम '' से समाप्त

    बुधवार, २ मार्च २०११ ११:०२:०० पूर्वाह्न IST

    Dilbag Virk ने कहा…
    महोदय
    कक्षा में बच्चों को तुलसीदास का लक्ष्मण मूर्छा प्रसंग पढवाता हूँ
    तुलसीदास जैसा विद्वान् कवि तो कोई नहीं लेकिन इसे क्या कहूं समझ नहीं आता , वैसे है ये दोहा --

    तब प्रताप उर राखि , प्रभु जैहउं नाथ तुरंत
    अस कहि आयसु पाई ,पद बंदी चलेउ हनुमंत

    इसमें 12 , 14 , 11 , 14 , मात्राएँ हैं , दोहा चौपाई में लिखे ग्रन्थ में ये कौन सा छंद है

    ReplyDelete
  26. @ dilbag virk ji

    मेरे अल्प ज्ञान से आपकी कुण्डली में दोहा का अन्त दीर्ध से हो रहा है, जो निम्न परिभाषा की कसौटी पर गलत हुआ...साथ ही रोला की अंतिम दो मात्रा...दीर्घ??

    किताब से पढ़ी परिभाषा बता रहा हूँ, व्याकरणशास्त्री नहीं हूँ..हो सकता है गलत हूँ तो आपसे वार्तालाप में ज्ञान बढ़े, यही उद्देश्य है:




    कुण्डलियाँ

    इसके आरंभ मे एक दोहा और उसके बाद इसमें छः चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में चौबीस मात्रायें होती हैं. दोहे का अंतिम चरण ही रोला का पहला चरण होता है तथा इस छ्न्द का पहला और अंतिम शब्द भी एक ही होता है.

    उदाहरण-

    दौलत पाय न कीजिये, सपने में अभिमान.
    चंचल जल दिन चारिको, ठाऊँ न रहत निदान.
    ठाऊँ न रहत निदान, जयत जग में रस लीजै.
    मीठे वचन सुनाय, विनय सब ही की कीजै.
    कह 'गिरधर कविराय' अरे यह सब घट तौलत.
    पाहुन निशि दिन चारि, रहत सबही के दौलत.


    दोहा

    इस छ्न्द के पहले-तीसरे चरण में १३ मात्रायें और दूसरे-चौथे चरण में ११ मात्रायें होती हैं. विषय(पहले तीसरे)चरणों का आरम्भ जगण नहीं होना चाहिये और सम (दूसरे-चौथे) चरणों का अन्त लघु होना चाहिये.

    उदाहरण-

    मेरी भव बाधा हरो, राधा नागरि सोय.
    जा तन की झाँइ परे, स्याम हरित दुति होय. (२४ मात्राएं)


    रोला

    रोला छंद में २४ मात्रायें होती हैं. ग्यारहवीं और तेरहवीं मात्राओं पर विराम होता है. अन्त में दो गुरु होने चाहिये.

    उदाहरण-

    'उठो उठो हे वीर, आज तुम निद्रा त्यागो.
    १२ १२ २ २१, २१ २१ १२ २२ (२४ मात्रायें)
    करो महा संग्राम, नहीं कायर हो भागो.
    तुम्हें वरेगी विजय, अरे यह निश्चय जानो.
    भारत के दिन लौट, आयेंगे मेरी मानो.



    आशा है आप मेरा हस्तक्षेप अन्यथा न लेंगे, मात्र ज्ञानवृद्धि हेतु बात आगे बढ़ाई है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

    ReplyDelete
  27. आप द्वारा उद्धरित पंक्तियाँ तो वाकई लाज़वाब हैं। पुस्तक पढ़ने का प्रयास करूंगा।

    ReplyDelete
  28. aadarniy sir
    aapne bhaut hi achhe avam prabhav purn tareeke se vilxhntao ki dhani sangeeta di ke baareme bahut hi achhi samixha ki hai.
    aur unki is kriti ki jo kuchh panktiyan aapne dali hain vah bhi kahin dil me gahre utar gai hai .
    aapko v sangeeta di ko bahut bahut badhai v hardhik dhanyvaad-------
    poonam

    ReplyDelete
  29. समीक्षा बहुत ही सुन्दर लगी
    संगीता जी की कविताएं समय और समाज की कुछ तल्ख़ सचाइयों को बड़ी बारीकी से बयां करती हैं।

    संगीता जी को बधाई..

    ReplyDelete
  30. इस सुन्दर समीक्षा एवं काव्यकृति के प्रकाशन हेतु मेरी बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान

    ReplyDelete
  31. " उजाला आसमाँ"पुस्तक की समीक्षा के लिये शास्त्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद !
    संगीता जी को ढेरों शुभकामनाएँ !

    ReplyDelete

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।