समर्थक

Friday, 18 May 2012

समीक्षा-“मिटने वाली रात नहीं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

     लगभग दो माह पूर्व मुझे आनन्द विश्वास जी ने अपना काव्य संग्रह भेजा। लेकिन अपनी दिनचर्चा में बहुत ज्यादा व्यस्त होने के कारण मैं इस कृति के बारे में अपने विचार प्रकट न कर सका।
    अब मैंने इस काव्य संकलन को आद्योपान्त पढ़ लिया है और इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि कवि आनन्द विश्वास द्वारा रचित काव्य संकलन मिटने वाली रात नहीं उनकी रचनाओं का एक नायाब गुलदस्ता है। जिसे डायमण्ड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसमें 112 पृष्ठों में इक्यावन कविताएँ है और इस पेपरबैक संस्करण का मूल्य मात्र 100 रु. है।
    कवि ने इस कृति के शीर्षक को अपने शब्दों में बाँधते हुए लिखा है-
दीपक की है क्या बिसात,
सूरज के वश की बात नहीं।
चलते-चलते थके सूर्य,
पर मिटने वाली रात नहीं।
      यों तो संग्रह में बहुत सी रचनाएं हैं और सब एक से बढ़कर एक हैं लेकिन एक स्थान पर अपने लक्ष्य की इच्छाओं के बारे में कवि लिखता है-
तमन्ना-ए-मंजिल कहाँ तक चलूँ,
उम्र भर तो चला और कितना चलूँ।
डगमगाते कदम कब्र तक तो चलो,
एक पल को जहाँ मैं ठहर तो चलूँ।
    कवि की कल्पना की उड़ान कहाँ तक जा सकती है इसकी बानगी आप उन्हीं के अन्दाज़ में देखिए-
गोबर,
तुम केवल गोबर हो,
या सारे जग की, सकल धरोहर हो।
तुमसे हो निर्मित, जन-जन का जीवन,
तुमसे ही निर्मित, अन्न फसल का हर कन।
      बहुधा पाया जाता है कि जो यायावर प्रकृति का न हो वो कवि ही कहाँ है, आनन्द विश्वास जी की यह झलक उनकी इस रचना में देखने को मिलती है-
चलो कहीं घूमा जाए
थोड़ा मन हल्का हो जाए
     जीवन में यदि प्रेम न हो तो जीवन का अस्तित्व ही क्या है। कवि ने भी इस पर अपनी कलम चलाते हुए लिखा है-
दीप लौ उबार लो, शीत की बयार से।
जीवन सँवार लो प्रीत की फुहार से।।
    इसी भाव को दृष्टिगत रखते हुए कवि आगे लिखता है-
सूरज उगे या शाम ढले,
मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।
    ग्रामीण जीवन में सर्दी के मौसम का चित्रांकन करते हुए कवि कहता है-
चलो बैठ जाएँ अपनी रजइया में,
आग थोड़ी धर लो कढ़इया में।
     प्रस्तुत काव्य संग्रह में कवि ने विविध विषयों की रचनाएँ समाहित की हैं। उनकी जन-जागरण करती हुई इस रचना को ही लीजिए-
जागो भइया अभी समय है
वर्ना तुम भी जी न सकोगे।
गंगा का पानी दूषित है
गंगाजल तुम पी न सकोगे।
     त्यौहार जीवन में नया उत्साह और नया विश्वास जगाते हैं-
जलाओ दीप जी भरकर,
दिवाली आज आई है।
नया उत्साह लाई है,
नया विश्वास लाई है।
    हर एक व्यक्ति का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो! जिसकी छत के नीचे वह चैन और सुकून महसूस कर सके। कवि ने इसी पर प्रकाश डालते हुए कहा है-
अपना घर अपना होता है,
ये जीवन का सपना होता है।
    कवि का दृष्टिकोण सन्देश और सीख के बिना अधूरा सा प्रतीत होता है लेकिन मुझे इस काव्य संग्रह में इसका अभाव किसी भी रचना में नहीं खला है-
अगर सीखना चाहो तो,
हर चीज तुम्हें शिक्षा देगी।
शर्त यही है कुछ पाने की,
जब तुममें इच्छा होगी।
     कुल मिला कर मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि इस काव्य संग्रह के रचयिता ने मिटने वाली रात नहींमें अपने कविधर्म को बाखूबी निभाया है। नयनाभिराम मुखपृष्ठ, स्तरीय सामग्री तथा निर्दोष मुद्रण सभी दृष्टियों से यह स्वागत योग्य है। मुझे विश्वास है कि आनन्द विश्वास जी इसी प्रकार अधिकाधिक एवं उत्तमोत्तम ग्रंथों की रचना कर हिंदी की सेवा में अग्रणी बनेंगे।
सुंदर सजीव चित्रात्मक भाषा वाली ये रचनाएँ संवेदनशीलता के मर्म में डुबोकर लिखी गई हैं। आशा है कहीं न कहीं ये हर पाठक को गहराई से छुएँगी।

    इस सुंदर संग्रह के लिये आनन्द विश्वास जी को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ।

17 comments:

  1. कवि को बधाई!
    सादर!

    ReplyDelete
  2. आनद विश्वास जी को बधाई । और आपको भी सुन्दर समीक्षा के लिए बधाई ।

    ReplyDelete
  3. sameeksha bahut sateek shabdon me prastut ki hai aapne .aanand ji ko badhai .

    ReplyDelete
  4. आदरणीय अग्रज, शास्त्री जी,
    शत्-शत् वंदन।
    मिटने वाली रात नहीं पुस्तक की सार-गर्भित
    समीक्षा के लिये बहुत-बहुत आभार।
    आपका सहयोग एवं स्नेह सदैव मिलता रहेगा,
    इस आशा और विश्वास के साथ।
    आनन्द विश्वास

    ReplyDelete
  5. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  6. सारगर्भित और सटीक समीक्षा के लए हार्दिक बधाई आपको |और आनंद जी को पुस्तक के लिए

    ReplyDelete
  7. आनंद जी को बहुत-बहुत बधाई आपका आभार इस बेहतरीन समीक्षा के लिए ..

    ReplyDelete
  8. आनद विश्वास जी को बधाई । सारगर्भित और सटीक समीक्षा ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. वंदना जी को बहुत-बहुत धन्यवाद।

      आनन्द विश्वास

      Delete
  9. सभी स्नेही मित्रों को बहुत-बहुत धन्यवाद.

    आनन्द विश्वास

    ReplyDelete
  10. Is behtareen vivechanko padhke sangrah lene ka vichar hai.

    ReplyDelete
    Replies
    1. पुस्तक डायमंड पॉकेट बुक्स दिल्ली से प्राप्त हो सकेगी।
      यदि कोई असुविधा हो तो अपना (Postal Address)

      anandvishvas@gmail.com

      पर भेज दें। मैं यहाँ से आप तक पहुँचा दूँगा।

      आनन्द विश्वास।

      Delete
  11. आपकी समीक्षा से पुस्तक के प्रति आकर्षण बढ़ा है।

    ReplyDelete
  12. बहुत ही बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग

    विचार बोध
    पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    ReplyDelete
  13. इस पुस्तक के कुछ अंश देखने से ही पता चलता है कि ये एक श्रेष्ठ कृ्ति है। बधाई कवि को भी और आप को भी

    ReplyDelete
  14. बहुत सटीक समीक्षा...बहुत बहुत बधाई...

    ReplyDelete
  15. बहुत सुंदर समीक्षा । मेरे नए पोस्ट "कबीर" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद।

    ReplyDelete

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।