समर्थक

Friday, 22 May 2009

‘‘सबसे बड़ा सत्य’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

उत्तराखण्ड प्रदेश में खटीमा नेपाल की सीमा से सटा हुआ एक छोटा सा शहर है। यहाँ की मुख्य उपज धान की खेती है।
खटीमा में दो दर्जन से अधिक चावल की मिलें हैं। एक मिल तो मेरे घर के बिल्कुल सामने ही है। धान के सीजन में इस मिल में हजारों कुन्टल धान खरीदा जाता है। गीले धान को इसके विशाल पक्के प्रांगण में सुखाया जाता है। जिस पर सैकड़ों की संख्या में तोते धान खाने के लिए आ जाते हैं।
कई वर्ष पुरानी बात है। इस मिल के प्रांगण में तोते धान खा रहे थे। अचानक एक बिल्ली ने झपट्टा मार कर एक तोते को पकड़ लिया।
मैं जल्दी से भागा और मैंने उस तोते को बिल्ली की गिरफ्त से आजाद करा लिया। तोता लहू लुहान हो गया था। मैंने उसे दवा लगाई। पानी पिलाया और एक पिंजड़े में बन्द कर लिया।
मैं इन्तजार में था कि तोता ठीक हो जाये तो उसे आजाद कर दूँ। थोड़े दिन में तोता अच्छा हो गया।
मैंने अब उसके पिंजड़े का द्वार खोल दिया।
तोता पिंजड़े से बाहर निकला और फुर्र से उड़ कर पेड़ की डाल पर बैठ गया।
मैंने चैन की सांस ली और मन में बड़ा प्रसन्न हुआ।
कुछ ही देर हुई थी कि तोता पुनः पिंजड़े पर आकर बैठ गया था। कभी वह पिंजड़े के अन्दर आ जाता था और कभी दरवाजे से बाहर निकल जाता था।
मैं जैसे ही पिंजड़े के पास गया तो तोते ने आवाज लगाई- ‘‘पापा जी!’’मैं यह देख कर दंग रह गया। मुझको इस मिट्ठू मियाँ से प्यार हो गया था।
यह भी मुझे देख कर ‘‘पापा जी’’ कह कर आवाज लगा देता था। पिंजड़े का दरवाजा खुला होने पर भी भागता नही था। बस पेड़ की डाल की सैर कर आता था और फिर अपने पिंजड़े में आ जाता था।
तोते का यह पिंजड़ा काफी पुराना था। मैंने सोचा कि इसको पेन्ट कर दिया जाये। बड़े चाव से पिंजड़े की पट्टियों को हरे, पीले और लाल पेंट से रंगा गया।
अब पिंजड़ा बड़ा आकर्षक लग रहा था और उसमें बैठा तोता सुन्दर लग रहा था।
तराई होने के कारण नवम्बर के मास में यहाँ रातें ठण्डी हो जाती है। मैं पिंजड़े को एक बोरी से ढक देता था।
उस दिन भी ऐसा ही किया था। सुबह होने पर देखा कि तोता पिंजड़े में निर्जीव पड़ा था। मन खिन्न हो उठा।
तोते के चले जाने से घर के सभी लोग दुखी थे।
इस घटना ने मुझे यह सोचने के लिए विवश कर दिया कि देह रूपी पिंजड़ा चाहे कितना ही सुन्दर क्यों न हो। एक दिन अचानक इसको छोड़ कर जाना ही पड़ता है।
यही संसार का सबसे बड़ा सत्य है।
‘‘पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।
देखत ही छिप जायेंगे, जस तारा परभात।।’’

9 comments:

  1. bilkul sahi kaha apne magar insan is sab se bade satya ko samajh nahin pata ek jhoothhi mrig trishna ke peechhe bhaga rehata hai abhaar sunder rachna ke liye

    ReplyDelete
  2. ji han yahi sabse bada satya hai jeevan ka...........bas use hi bhoola firta hai insaan.........zindagi bhar bhatakta firta hai magar satya ke paas nhi jana chahta aur na hi manna chahta.

    ReplyDelete
  3. तोते की कहानी बड़ी मार्मिक है , पशु पक्षी भी मित्रता के भावः को कितना पहचानते हैं , एक इन्सान ही कभी कभी खुदगर्जी की सीमायें लाँघ जाता है |

    ReplyDelete
  4. आध्यात्म से साक्षात्कार करानेवाला प्रेरक प्रसंग!

    ReplyDelete
  5. सम्वेदना से परिपूर्ण...

    ReplyDelete
  6. इतने सरल शब्दों में जीवन का इतना बडा सत्य कह दिया आपने!!

    ReplyDelete
  7. yahi eevan ka satya hai,phir na jaane ye soch mann dukhi kahe hota hai.

    ReplyDelete
  8. yeh jivan ka sabse bada sach hai par phir bhi har koi iss se dor jana chahta hain . jo bhi koi janam leta hai use mritu to aati hi hai. is sach ko insaan ko swikarna chahiye

    ReplyDelete

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथासम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।