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Friday, 15 May 2009

"पकड़ ऐसी थी कि ढीली होने का नाम ही नही ले रही थी।" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)






(मेरे परम पूज्य पिता श्री घासीराम आर्य एवं परम पूज्या माता श्रीमती श्यामवती देवी)



यह घटना सन् 1979 की है।

उस समय मेरा निवास जिला-नैनीताल की नेपाल सीमा पर बसे कस्बे बनबसा में था।
पिता जी और माता जी उन दिनों नजीबाबाद में रहते थे।

लेकिन मुझसे मिलने के लिए बनबसा आये हुए थे।

पिता जी की आयु उस समय 55-60 के बीच की रही होगी।

शाम को वो अक्सर बाहर चारपाई बिछा कर बैठे रहते थे।

उस दिन भी वो बाहर ही चारपाई पर बैठे थे। तभी एक व्यक्ति मुझसे मिलने के लिए आया।

वो जैसे ही मेरे पास आया, पिता जी एक दम तपाक से उठे और उसका हाथ

इतना कस कर पकड़ा कि उसके हाथ से चाकू छूट कर नीचे गिर पड़ा।

तब मुझे पता लगा कि यह व्यक्ति तो मुझे चाकू मारने के लिए आया था।

पिता जी ने अब उस गुण्डे को अपनी गिरफ्त में ले लिया था और वो उनसे छूटने के लिए

फड़फड़ा रहा था परन्तु पकड़ ऐसी थी कि ढीली होने का नाम ही नही ले रही थी।

अब तो यह नजारा देखने के लिए भीड़ जमा हो गई थी।

इस गुण्डे टाइप आदमी की भीड़ ने भी अच्छी-खासी पिटाई लगा दी थी।

छूटने का कोई चारा न देख इसने यह स्वीकार कर ही लिया कि

डाक्टर साहब के पड़ोसी ने मुझे चाकू मारने के लिए 1000 रुपये तय किये थे

और इस काम के लिए 100 रुपये पेशगी भी दिये थे।

आज वह गुण्डा और मेरा उस समय का सुपारी देने वाला पड़ोसी इस दुनिया में नही है।

परन्तु मेरे पिता जी 87-88 वर्ष की आयु में आज भी स्वस्थ हैं। मेरे साथ ही रहते हैं।

आज मुझे समझ में आता है कि पिता यदि रक्षक हो तो

पुत्र पर कोई आँच नही आ सकती है।

58 वर्ष की आयु में भी मैं अपने आपको बच्चा ही समझता हूँ।

क्योंकि मेरे माँ-बाप अभी जीवित हैं।

मैं खुशनसीब हूँ कि माता-पिता जी का साया आज भी मेरे सिर पर है।

(मैं और मेरी जीवनसंगिनी श्रीमती अमर भारती)


6 comments:

  1. पिता तो सबके रक्षक होते ही हैं .. पर शायद ही अब के पिताओं की पकड इतनी मजबूत हों।

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  2. आपके इस संस्मरण ने मुझे अभिभूत कर दिया!
    -----------------------------------
    शुभकामना है कि आपके माता-पिता दीर्घायु हों
    और
    उनकी पकड़ कभी ढीली न हो!

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  3. हेडर में आपने बहुत प्यारी फोटो लगायी है।
    संस्मरण दिल को छू गया।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  4. pakad ho to aisi hi.........har pita apne bachchon ka rakshak hota hai.............bagwan unhein dirghayu karein.

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  5. आदरणीय शास्त्री जी ,
    अIपने बिलकुल सही लिखा है ..माँ-पिता का साया हमें हमेशा एक रक्षा कवच की अनुभूति कराता है .यह आपका सौभाग्य है की एपी आज भी इस रक्षा कवच रूपी वृक्ष के साये में हैं...
    पूनम

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  6. शास्त्री जी ....माँ बाप के होते हुए हम हमेशा बच्चे जैसा ही महसूस करते है ....इश्वर करे आप के माता पिता दीर्घायु हों ..

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