(मेरे परम पूज्य पिता श्री घासीराम आर्य एवं परम पूज्या माता श्रीमती श्यामवती देवी)
यह घटना सन् 1979 की है।
लेकिन मुझसे मिलने के लिए बनबसा आये हुए थे।
शाम को वो अक्सर बाहर चारपाई बिछा कर बैठे रहते थे।
वो जैसे ही मेरे पास आया, पिता जी एक दम तपाक से उठे और उसका हाथ
तब मुझे पता लगा कि यह व्यक्ति तो मुझे चाकू मारने के लिए आया था।
फड़फड़ा रहा था परन्तु पकड़ ऐसी थी कि ढीली होने का नाम ही नही ले रही थी।
इस गुण्डे टाइप आदमी की भीड़ ने भी अच्छी-खासी पिटाई लगा दी थी।
डाक्टर साहब के पड़ोसी ने मुझे चाकू मारने के लिए 1000 रुपये तय किये थे
आज वह गुण्डा और मेरा उस समय का सुपारी देने वाला पड़ोसी इस दुनिया में नही है।
आज मुझे समझ में आता है कि पिता यदि रक्षक हो तो
पुत्र पर कोई आँच नही आ सकती है।
क्योंकि मेरे माँ-बाप अभी जीवित हैं।
(मैं और मेरी जीवनसंगिनी श्रीमती अमर भारती)
पिता तो सबके रक्षक होते ही हैं .. पर शायद ही अब के पिताओं की पकड इतनी मजबूत हों।
ReplyDeleteआपके इस संस्मरण ने मुझे अभिभूत कर दिया!
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शुभकामना है कि आपके माता-पिता दीर्घायु हों
और
उनकी पकड़ कभी ढीली न हो!
हेडर में आपने बहुत प्यारी फोटो लगायी है।
ReplyDeleteसंस्मरण दिल को छू गया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
pakad ho to aisi hi.........har pita apne bachchon ka rakshak hota hai.............bagwan unhein dirghayu karein.
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी ,
ReplyDeleteअIपने बिलकुल सही लिखा है ..माँ-पिता का साया हमें हमेशा एक रक्षा कवच की अनुभूति कराता है .यह आपका सौभाग्य है की एपी आज भी इस रक्षा कवच रूपी वृक्ष के साये में हैं...
पूनम
शास्त्री जी ....माँ बाप के होते हुए हम हमेशा बच्चे जैसा ही महसूस करते है ....इश्वर करे आप के माता पिता दीर्घायु हों ..
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