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Saturday 23 May 2009

शाबाश पुलिस! शाबाश परिवहन विभाग! (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

कभी खटीमा बस-स्टैण्ड का शहर से दूर हुआ करता था। लेकिन आबादी बढ़ने के साथ आजकल यह बिल्कुल शहर के बीचों-बीच में आ गया है।
यहाँ अक्सर पहाड़ के लोग सन्तरा, माल्टा, गल-गल नीम्बू, खुमानी और नाशपाती के टोकरे लिए हुए सड़क के किनारे ही बैठे रहते हैं।
बस स्टैण्ड जीर्ण-शीर्ण अवस्था में होने के कारण सारी बसे सड़क के किनारे ही खड़ी होती हैं और उनमें यात्री चढ़ते-उतरते हैं।
इसी रोडवेज बस-अड्डे पर सुबह को लगभग 9 बजे टनकपुर से आने वाली बस आकर रुकी। ड्राईवर बस को स्टार्ट छोड़ कर ही चाय की दूकान पर बैठ कर नाश्ता करने लगा।
तभी पीछे से आने वाले वाहनों की कतार लग गयी। यह जाम की स्थिति प्रतिदिन सैकड़ों बार यहाँ होती है।
बस में बैठा एक यात्री यह सब देख रहा था। वह आराम से ड्राईवर की सीट पर बैठा और उसने बस का गियर डाल दिया। वह यात्री बस चलाना तो जानता ही नही था। उसने बस का ब्रेक लगाया होगा लेकिन उसका पैर ब्रेक पैडिल पर पड़ने की बजाय एक्सीलेटर पर पड़ गया।
अब तो बस कूद कर आगे बढ़ गयी।
उस साइड में जितने भी पहाड़ी फल बेचने वाले थे उनमें से 4 तो मौके पर ही कुचल कर मर गये। कई गम्भीररूप से घायल हो गये। तीन रिक्शा-ठेले वाले चोटिल हुए और एक बिजली का पोल मुड़ गया। इत्तफाक से उस समय बिजली भागी हुई थी अन्यथा यात्रियों को भी जान की हानि उठानी पड़ सकती थी।
जिस यात्री ने इस घटना को अंजाम दिया था। वह फरार था और उसका आज तक कोई पता नही है।
हाँ, बस के ड्राईवर को जरूर पुलिस ने पकड़ा था। उसकी भी दो दिन बाद जमानत हो गयी। वह आज भी बस चला रहा है।
इस संस्मरण को लिखने का उद्देश्य केवल इतना ही है कि इसमें दोषी कौन है?
बस ड्राईवर या अज्ञात यात्री।
यदि बस का ड्राईवर बस को स्टार्ट न छोड़ता तो यह हादसा टाला जा सकता था।
क्या हमारे देश की न्याय व्यवस्था ऐसी है जो ऐसे अपराधियों को दण्ड दे सके?
मजे की बात तो यह है कि न तो पुलिस विभाग तथा न ही राज्य परिवहन विभाग ने इस लापरवाह चालक का ड्राइविंग लाइसेन्स निरस्त नही करवाया। अपितु उसको पुनः बस चलाने का ईनाम दे दिया।
शाबाश पुलिस! शाबाश परिवहन विभाग!!

4 comments:

  1. शाबाश पुलिस!
    शाबाश परिवहन विभाग!!

    आपने बहुत सुंदर ढंग से
    दोनों विभागों की पीठ थपथपाई है!

    इस पहल के लिए
    आप बधाई के पात्र हैं!

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  2. हैरान होकर इधर आया और अब पता चल रहा है माज़रा क्या है।बहुत बढिया खिंचाई की आपने,बधाई आपको।

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  3. लगता है कि अब जनता को ही कानून हाथ में लेना पड़ेगा पुलिस तो केवल हफ़्तावसूली और ईमा्नदार को परेशान करने के लिये ही है..!!!

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