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Wednesday 6 May 2009

‘‘इस लोक-तन्त्र को क्या नाम दें?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


आज सारी दुनिया भारत को सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश के रूप मे जानती है। परन्तु इस लोकतन्त्र का घिनौना चेहरा अब लोगों के सामने आ चुका है।

क्या आपने किसी निर्धन और ईमानदार व्यक्ति तो चुनाव लड़ते हुए देखा है?

वह तो केवल मत देने के लिए ही पैदा हुआ है। यदि कोई ईमानदार और गरीब आदमी भूले भटके ही सही चुनाव में खड़ा हो जाता है, तो क्या वह चुनाव जीत कर संसद के गलियारों तक पहुँचा है।

इसका उत्तर बस एक ही है ‘नही’ ।

आज केवल धनाढ्य व्यक्ति ही चुनाव लड़ सकता है। बस यही सत्य है ।

नेताओं के पुत्र-पुत्रियाँ, फिल्मी अभिनेता, या बे-ईमान और काला-धन कमाने वाले ही चुनावी समर में दिखाई देते हैं। इसीलिए संसद का चेहरा नित्य प्रति बिगड़ता जा रहा है।

लोकतन्त्र, लोकतन्त्र कम और राजतन्त्र या भ्रष्टतन्त्र अधिक दिखाई देता है।

क्या यह कानून बदला नही जा सकता?

सम्भव तो हैं पर इसे बदलेगा कौन? राजतन्त्र की तरह नेताओं कुर्सी नशीन के पुत्र या भ्रष्ट नेतागण। सारी आशायें दम तोड़ती नजर आती हैं। दूध की रखवाली बिल्लों के हाथ में हो तो ये झूठी आशायें पालना ही बेकार है।

आज चारों ओर से आवाज उठ रही हैं कि 100 प्रतिशत मतदान करो। लेकिन ये मत तो राजनेताओं, उनके वंशजों तथा भ्रष्टाचारियों को ही तो जायेंगे।

कहने को तो चुनाव आयोग बड़े-बड़े अंकुश लगाने के बड़े-बड़े दावे करता है। परन्तु धनाढ्यों को मनमाना धन खर्च करने की छूट मिली हुई है।

चुनाव आयोग को चाहिए कि वह हर एक प्रत्याशी से एक निश्चित धन-राशि जमा करा कर, चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथ में ले। व्यक्तिगत रूप से न कोई झण्डा न बैनर न पोस्टर न अपील का नियम चुनाव आयोग लागू करे।

आखिर चुनाव कराना सरकार का काम है। अतः इस गूँगे-बहरे, लुंज-पुंज लोकतन्त्र को पुनः सच्चे लोकतन्त्र के रूप में स्थापित के लिए प्रयास सरकार को ही करने चाहियें। सबका समान प्रचार कराने की जिम्मेदारी सरकार को निभानी चाहिए। प्रत्याशी का काम बस नामांकन तक ही सीमित होना चाहिए।

तभी सच्चा लोकतन्त्र इस देश में प्रतिस्थापित हो सकता है।

10 comments:

  1. दूसरे प्रश्न के उत्तर में भी ’नहीं’ लिख देना सरल पड़ेगा.

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  2. पहले कहते थे वोट तंत्र
    अब हो गया है जूता मंत्र

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  3. अब मैं क्या कहूँ छोटा मुँह और बड़ी बात।

    ---
    चाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलें

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  4. सच है, निर्धन और ईमानदार व्यक्ति राजनीति के लायक ही नही. यदि ऐसा व्यक्ति लोकसभा में पहुंच भी जाये(कल्पना करें) तो हमारे धुरंधर नेतागण उसका क्या हाल करेंगे?

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  5. yahi aaj ke bharat ka roop bana diya hai is desh ke karndharon ne.........ek sachcha , imandar aur karmath neta agar desh ko mil jaye to wakai MERA BHARAT MAHAAN ban jaye.

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  6. apne bilkul shi kha hai.mehnti aur imandar log kab tak sirf vot hi dete rhege?
    akhir kab shi shuruat ?kaoun krega?

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  7. आप की बात और सुझाव सही है पर ऐसा होने कौन देगा.......क्या नेता मानेंगे?

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  8. बहुत गम्‍भीर बातें कही हैं आपने। इनपर सारे देश को विचार करने की आवश्‍यकता है।

    -----------
    SBAI TSALIIM

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  9. शास्त्री जी सादर नमस्कार आप की बातो से बहत प्रभावित हुआ कभी हमारे ब्लॉग पर आ कर हमारा मार्ग दर्शन करे

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  10. "इन गंभीर बातों पर
    सारे देश को विचार करने की
    आवश्‍यकता है!" - मैं महामंत्री-तस्लीम का
    समर्थन करते हुए
    यह भी कहूँगा - "अगर इस पोस्ट को
    पढ़नेवाले ही इन बातों पर
    कुछ विचार कर लें,
    तो बहुत कुछ हो सकता है!"

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