मेरी गर्मियों की छुटियाँ!
आज से 34 साल पुरानी बात है। मेरे विवाह को यही कोई दो साल हुए थे। मैं उन दिनों जिला-बिजनौर के हल्दौर कस्बे मे अपनी डॉक्टरी की प्रैक्टिस करता था।
एक वर्ष पहले मेरा अपनी पत्नी से किसी बात को लेकर मतभेद हो गया था और वो मायके मे चली गयी थी। मैं भी काफी ऐंठ में था। वहीं पर मेरे बड़े पुत्र का जन्म हुआ था। एक साल गुजर जाने पर जब नया साल आया तो श्रीमती जी का नववर्ष का बधाईपत्र मिला। उसपर नाम तो किसी का नहीं था मगर लेख से आभास हुआ कि यह तो अपनी सजनी का ही भेजा हुआ है।
थोड़े दिन तो मन को मजबूत बनाया मगर कुछ दिन वाद वो पिघल गया। तभी श्रीमती जी का सन्देश किसी के द्वारा आ गया कि मुझे आकर ले जाओ।
उन दिनों मैंने नई राजदूत मोटरसाईकिल ले ली थी। जैसे ही अप्रैल का महीना आया मैं बाइक से हल्दौर से अपनी ससुराल (रुड़की) के लिए रवाना हो गया।
उन दिनों पत्नी से खुलेआम बात करना असभ्यता माना जाता था। अतः उससे बात न हो सकी। मगर शाम को मेरी पत्नी की सहेली मुझे अपने घर बुला कर ले गई। वहाँ पर मेरी श्रीमती जी भी थीं। खूब बाते हुईं और सारे गिले-शिकवे दूर हो गये। तभी पत्नी ने कहा कि मेरे माता-पिता मुझे आपके साथ भेजने में सहमत नहीं हैं। मैं आपके साथ (नीटू) बेटे को बाजार भेजूँगी और आप उसे लेकर सीधे हल्दौर चले जाना। बाकी मैं सम्भाल लूँगी।
अगले दिन ऐसा ही हुआ। मैं अपने डेढ़ साल के पुत्र को लेकर हल्दौर के लिए उड़न-छू हो गया। तीन घंटे का मोटरसाईकिल का सफर था। थोड़ी देर में इस बालक को नींद आने लगी। तब मैंने अपनी बुशर्ट निकालकर उसे अपने से बाँध लिया और घर आ गया।
हमारे घर में तो मानों दीवाली की खुशियाँ ही आ गई थीं। मगर उधर मातम पसर गया था। अब तो ससुरालवालों को आना ही था। वो मिन्नते करने लगे कि भारती को ले आओ। कुछ नखरे करने के बाद मैं भी मान गया। मानना तो था ही क्योंकि यह तो हम पति-पत्नि की योजना का हिस्सा था।
अब मैं उनके साथ ससुराल गया। वहाँ पर तो आव-भगत का ढंग बिल्कुल ही बदल गया था। साली-साले जीजाजी-जीजाजी कहते न अघाते थे।
गर्मी का मौसम था। सबने कहा कि आप और भारती मसूरी घूम आओ। साथ में साले जी और उनकी श्रीमती जी भी गए। लेकिन वो घूमने के लिए कम आये थे और हमारा खर्च वहन करने के लिए अधिक।
इस तरह से हमारी गर्मी की छुट्टियों की पिकनिक हुई!
bahut majedar sansmaran hai..man fresh ho gya
ReplyDeleteशास्त्री जी, आपने भी अपने समय में बडे कमाल किये हैं। यह लेख क्या मैने पहले भी पढा है?
ReplyDeletebahut pyaara sansmaran hai,shastri ji.
ReplyDeletevo zamaanaa hi kuchh aur tha.
आशीर्वाद
ReplyDeleteफेसबुक समीक्षा में पढ़ा
जीवन के संस्मरण नहीं भूलते
जीने का सहारा हैं
हमेशा पुराने दिन ही अच्छे लगते है ---वेसे यह वाकिया मजेदार था ..
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ReplyDeleteपरिणाम सुखद रहा ये सबसे अच्छी बात है।
ReplyDeleteयानी उन गर्मियों में आप दोनों अपने क्रोध की गर्मी से निपट लिए, बधाई !
ReplyDeleteडॉ साहब तब मसूरी घूमने गए किन्तु अब क्या योजना है ?
ReplyDeleteवाह जी वाह ! ज़वानी की नादानी ! पुरानी बातें सोचकर ही आनंद आ जाता है ।
ReplyDeleteमजेदार यादे, गनहिल का फ़ोटो सबसे अच्छा लगा,
ReplyDeleteऐसी यादें ही जीवन को मुस्कराहट से भर देती हैं.....सुंदर
ReplyDeleteजीवन यात्रा की सुखद और अमिट स्मृतियों पर वाकई यह आलेख काफी दिलचस्प रहा. हार्दिक शुभकामनाएं .
ReplyDeleterochak sansmaran.
ReplyDeleteबहुत अच्छा संस्मरण |पहले तो ऐसा ही होता था |
ReplyDeleteआशा
Shastri ji charcha manch ke madhyam se aapke is blog ka pata chala.yanha aakar aapka ek yaadgar sansmaran padhne ko mila,photos dekhe bahut achcha laga.aapne sasuraal me kya badhiya planning ki thi manna padega.
ReplyDeleteshastri ji aapne bahut achhi kahaani sunaai, maine 2 baar padhi, maan-mannuvar us samay bhi chaltaa tha, plan acha laga mujhe...
ReplyDeleteअंत भला सो सब भला.....
ReplyDeleteमजा आ गया पढ़कर
पहले...तुम रूठी रहो, मै मनाता रहूँ...इश्टाइल में...बात बन जाती थी...आजकल १००० : ९०० का अनुपात है...जरा देर की तो टापते रह जाओगे...
ReplyDeleteहम तो इतने खुशनसीब जीजा न बन सके!
ReplyDeleteकुछ और लाइयेगा यादों की ऐसी ही टोकरी से -ठीक कहा है किसी ने मियाँबीवी राजी तो क्या करेगा क़ाज़ी .पहले फैसला होजाता था -एक का एहम विसर्जित हो जाता था अब तो व्यक्ति ही विसर्जित हो जाता है एहम का कद नापे नहीं नपता
ReplyDeleteक्या बात है डाक्टर सर, मैं देख रहा हूं कि पति पत्नी में छोटी छोटी बात पर मनमुटाव हो जाना काफी पुराना प्रचलन है। लेकिन तब एक चिट्ठी सब मामले को दुरुस्त कर देती थी.. और आज.. सर गर्मी की छुट्टी 34 साल पहले से शानदार होनी चाहिए। इंतजार रहेगा कि क्या किया आपने
ReplyDeleteइस संस्मरण को पढ़कर मन सरस हो गया
ReplyDeleteऔर फ़ोटो ने तो मन को जीत ही लिया!
मजेदार वाकये की बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वह पिकनिक इस मायने में महत्वपूर्ण थी कि एक नए जीवन की शुरुआत हो रही थी |
ReplyDeleterochak sansmaran !
ReplyDeleteखूबसूरत घटना जो पूरे जीवन याद रहेगी.....है न...
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण ...अपने दिन याद आ गए ! शुभकामनायें आपको !
ReplyDeleteअच्छा हुआ,आपने हमसे शेयर किया।
ReplyDeleteबढ़िया है - अंत भला तो सब भला ...... :))
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