मुझे किसी कार्य से दिल्ली जाना था। रात में एक पोस्ट लगा दी कि कल दिल्ली की यात्रा है।
अगले दिन सुबह मेल चैक करके दिल्ली के लिए निकलना था। इसलिए मैं रात मे 3 बजे ही उठ गया।
पोस्ट पर टिप्पणी देखकर मन गद-गद हो गया।
M VERMA ने कहा…
पलकें बिछाए हम दिल्ली वाले बैठे हैं.
shastri ji delhi mein aapka swagat hai..........jis uddeshya se yatra ki hai wo poorna ho.
शिवम् मिश्रा ने कहा…
28 अक्टूबर को प्रातः 5 बजे दिल्ली के लिए प्रस्थान किया 11 बजे तक दिल्ली के दर्शन हो गये। अविनाश वाचस्पति जी को फोन लगाया। उनके आग्रह में इतना बल था कि मैं अविनाश वाचस्पति जी की बात टाल नही पाया। 2 घण्टे में नेहरू-प्लेस का काम निपटा कर सीधा "सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम" उनके कार्यालय में पहुँच गया। यानि रिश्ते नेट से आगे बढ़कर घर-परिवार तक के हो गये। शाम के श्री M VERMA जी का फोन आ गया। वो कहने लगे- "शास्त्री जी! कल आप मेरे घर पर आमन्त्रित है।" रात मे वापिस घर के लिए लौटना था। अतः उनसे क्षमा माँग कर अगली बार अवश्य उनके घर आने का वायदा किया। कुछ लोग शायद यह भी प्रश्न करें कि यह बेकार का यात्रा संस्मरण लगाने की क्या आवश्यकता थी? प्रश्न उठना वाजिब भी है। मगर इस पोस्ट को लगाने मेरा उद्देश्य ब्लॉगिंग के लाभ बताने का है। मैं तो आज बहुत विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि "ब्लॉगिंग सिर्फ नेट तक ही सीमित नही है!" यह अब घर परिवारों तक भी पहुँच गयी है। खटीमा से दिल्ली 350 किमी दूर है, मगर यह लगता है कि दिल्ली में रिश्तेदारों को छोड़कर ब्र्लॉग-जगत से जुड़े हुए भी मेरे कुछ अपने परिवार हैं। नगर, जिला, प्रदेश, देश और विदेश में भी आपको अपनापन देने के लिए आपके ब्लॉगर मित्र आपके स्वागत में कोई कोर-कसर नही छोड़ेंगे। जी हाँ ! यही तो मजा है ब्लॉगिंग का। |
यही तो है भारतीय संस्कृति- अतिथि देवो भवः:)
ReplyDeleteएकदम सटीक!
ReplyDeleteगदगद होकर आए आप और गदगद कर दिया हमें भी............
ReplyDeleteआप को दिल्ली वालों ने मोहब्बत से नवाजा....
हम आपको बधाई से अलंकृत करना चाहते हैं.........
सच अब ब्लोगिंग घर तक बल्कि घर घर तक पहुँच गई है
यही तो मज़ा है ब्लोगिंग का ..आपने सही फरमाया....
बढ़िया पोस्ट लिखी है.....ब्लोगरों का यह जान कर खुशी ही हुई है.......धन्यवाद।
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ReplyDeleteमैं वंचित रह गया शास्त्री जी आपके सानिध्य से. प्रतीक्षा से कह दिया अभी और प्रतीक्षा करो ---
ReplyDelete.बहुत सही कहा इस प्रकार एक स्नेह तो बन ही जाता है..बहुत बढ़िया विचार व्यक्त किया आपने..धन्यवाद
ReplyDeleteaksar shabd kam pad jate hain...
ReplyDeleteअरे!...मुझे तो मालुम ही नहीं चला कि आप दिल्ली आए हुए थे...पता होता तो मैँ आपसे मिलने ज़रूर आता या फिर आपको अपने यहाँ बुलाता...
ReplyDeleteखैर!...इस बार नहीं तो अगली बार सही
जी उस्की धमक बाहर तक भी है!
ReplyDeleteशास्त्री जी,
ReplyDeleteइस बात को शिद्दत के साथ मैं ने अनुभव किया है। पिछले वर्ष मैं भोपाल, रायपुर, भिलाई, दुर्ग, फरीदाबाद और दिल्ली यात्रा के दौरान ब्लागर मित्रों से मिला हूँ। मुझे सभी स्थानों पर भ्रातृवत् स्नेह प्राप्त हुआ। जहाँ गया ब्लागर साथियों के साथ ही रुका। इस तरह जो रिश्ते कायम हुए वे अमिट हो गए हैं।
ब्लाग जगत एक परिवार ही,इसमे रिश्तों की प्रागाढता और मीठास के साथ-साथ खटास भी कभी-कभी नज़र आती है।कुल मिलाकर देखें तो हम रोज़ नये आभासी रिश्ते बना रहें जो असली रिश्तों से किसी भी सूरत मे कम नही हैं,ऐसा मैं समझता हूं।बधाई आपको नये रिश्तेदारों से मिले प्यार की और ये सिलसिला चलता रहना चाहिये अनवरत्।
ReplyDeleteबहुत सही बात कही शास्त्री जी, एक और बात कहूँ, मै यूँ तो ये आलतू-फालतू आठवी-नौवी क्लास से ही लिखता आ रहा हूँ, यहाँ वहा ! मगर ब्लॉग पर नियमित लिखने की प्रेरणा आपसे ही मिली,क्योंकि जब मै देखता था कि रोज शःस्त्री जी की दो-तीन पोस्ट ब्लॉगजगत पर चाप जाती है तो मैंने भी सोचा कि हम क्यों नहीं लिख सकते, हम क्यों आलस्य करते है ? और सच, तभी से अपने ब्लॉग पर नियमित हुआ हूँ !
ReplyDelete@ एम वर्मा
ReplyDeleteमीठा होता है सब्र का फल
पर हमें मीठे से परहेज है
इसलिए शास्त्री जी ने कृपा
की है विशेष, संबंध अशेष।
मिले और धन्य कर दिया
आपका फल और मीठा हो
प्रतीक्षा के लिए यदि कहा
तो अच्छा भला ही रहा।
ब्लॉगिंग दूरी को दिल तक
पहुंचा रही है खूब तेजी से
पहले की नजदीकियों को
और नजदीक ला रही है।
जो इंसान हैं महा जहां तहां
सबको आपस में रही है मिला
शास्त्री जी के प्रेम प्यार की तो
मिसाल नहीं इस जहां में अहा।
दिल्ली वाले एम वर्मा जी
वंदना जी आप मिलेंगे कहां
यह भी तो दें जल्दी बतला
शिवम मिश्रा जी से मिलने
रविवार का है प्लॉन बना।
शास्त्री जी नमस्ते- यह एक नयी बिरादरी और प्रजाति का विकास हो रहा है,अच्छे आसार नजर आ रहे हैं, जब कहीं ह्ड़प्पा या सिंधु घाटी जैसा हाल होगा तो हमे भी खोद कर निकाला जायेगा और बताया जायेगा कि एक ब्लागर बिरादरी होती थी, इस पर शोधकार्य चलेगा और अगर एकाध ब्लागर की ममी मिल गई लैपटाप के साथ तो सोने मे सुहागा हो जायेगा-उसके लिए ब्लागर म्युजियम बनेगा,उसमे रखा जायेगा- ब्लाग जगत अपना इतिहास स्वय बना रहा है-हां आवश्यक है इसे ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण करके कहीं गाड़ना पडेगा।
ReplyDeleteतभी उस आने वाली पीढी को सही जानकारी मिलेगी अन्यथा अन्धों के हाथी के किस्से की तरह उस जमाने के इतिहासकार ब्लाग जगत का स्वरुप ही बदल कर रख देंगे।
बहुत बढ़िया रहा दिल्ली आना.
ReplyDeleteहम भी इस का लुत्फ़ उठा चुके हैं.
लेकिन दिल्ली में नहीं, अजेक्स , कनाडा में , समीर लाल जी के साथ.
शास्त्री जी कभी रायपुर आने का भी कार्यक्रम बनाएं, आप सादर आमंत्रित हैं। हम आपको विश्वास दिलाते हैं कि यहां जैसा सम्मान और प्यार आपको मिलेगा, उसे कभी भूल नहीं पाएंगे। वैसे दिल्ली भी कम नहीं है, क्योंकि दिल्ली में भी दिल वाले रहते हैं औ दिलों में ही प्यार की गंगा बहती है।
ReplyDeleteइसीलिए तो दुनिया इसकी दीवानी है।
ReplyDelete--------------
स्त्री के चरित्र पर लांछन लगाती तकनीक
आइए आज आपको चार्वाक के बारे में बताएं
ब्लागिंग में भी रिश्ते बन जाते हैं । शादियां तक हुई हैं ब्लागिंग के चलते। आपकी यात्रा और प्रवास शुभ हो।
ReplyDelete@ अनूप शुक्ल
ReplyDeleteब्लॉगिंग और शादियां
सब प्यार का सौदा है
ऐसा सौदा जिसमें
प्यार दिया और सिर्फ
दिया ही जाता है
वापसी तो स्वयंमेव ही
गारंटिड वारंटिड है।
शास्त्री जी,
ReplyDeleteअगर मुझे भी पता चल जाता कि आप दिल्ली आ रहे हैं तो आपकी मेट्रो में यात्रा का फ्री इंतजाम कर देता. मेरे पास तो आपका फोन नंबर भी है.
sach kaha aapne...........ye bhi to ek parivaar van gaya hai.....ab dekhiye na ek doosre ke blog par jaye bina jab chain nhi milta to sochiye hum sab ek parivaar se kam kahan huye.
ReplyDeleteyahi to in rishton ki mithas hai ..........aur shayad yahi hum sabko prerit karti hai.
डॉक्टर साहब कभी छत्तीसगढ भी आइये ..वैसे मुझसे पहले यहाँ के मेरे 5 वरिष्ठ मित्र ऊपर आपसे निवेदन कर ही चुके है..।सो मै तो यही कहूंगा ब्लॉगर परिवार ज़िन्दाबाद ।
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