आज मुझे विख्यात चित्रकार श्री हरिपाल त्यागी का एक संस्मरण याद आ रहा है! यह सन् 1989 की घटना है मगर ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो।
उन दिनों त्यागी जी दाढ़ी नहीं रखते थे। बाबा नागार्जुन उन्हीं के मुहल्ले सादतपुर में रहते थे और खटीमा प्रवास पर आए हुए थे। वे राजकीय महाविद्यालय, खटीमा में कार्यरत प्रो. वाचस्पति के यहाँ ठहरे थे। प्रो. वाचस्पति मेरे अभिन्न मित्रों में थे। प्रतिदिन की भाँति मैं जब प्रो. साहब से मिलने उनके निवास पर गया तो बाबा नागार्जुन की चारपाई पर बैठे हुए एक सज्जन बाबा से अन्तरंग बाते कर रहे थे।
मैंने वाचस्पति जी से इनके बारे में पूछा तो पता लगा कि ये मशहूर चित्रकार और पत्र-पत्रिकाओं कवर डिजाइनर हरिपाल त्यागी हैं! अब मैं त्यागी जी से मुखातिब हुआ तो पता लगा कि यह मेरे मूलनिवास नजीबाबाद के पास के ही महुआ ग्राम के निवासी हैं। मैंने त्यागी जी से कहा कि महुआ के तो मेरे नामराशि रूपचन्द त्यागी मूर्ति देवी सरस्वती इण्टर कालेज में अंग्रेजी के प्रवक्ता थे। जिन्होंने मुझे इण्टर में अंग्रेजी पढ़ाई है और उनका भतीजा अशोक कुमार त्यागी मेरा क्लास-फैलो था। इस पर त्यागी जी ने बताया कि वो उनके भतीजे हैं और अशोक मेरा पोता है।
हरिपाल त्यागी खटीमा में लगभग एक सप्ताह रहे। मेरे साथ बाबा, त्यागी जी और प्रो.वाचस्पति का परिवार नेपाल के शहर महेन्दनगर भी घूमने गये। एक बार मेरे निवास/विद्यालय में कविगोष्ठी हुई। जिसमें बाबा के साथ त्यागी जी, बल्लीसिंह चीमा, गम्भीर सिंह पालनी, जवाहर लाल, दिवाकर भट्ट, जसराम सिंह रजनीश, ठा.गिरिराज सिंह और स्थानीय कवियों ने काव्य पाठ किया।
वह बात तो रह ही गई जिसके लिए यह संस्मरण लिखा है। मैं एक दिन प्रो. वाचस्पति के यहाँ बातें कर रहा था तभी त्यागी जी ने मुझे घूर कर देखा। मैंने सोचा कि त्यागी जी को मेरी को बात बुरी लग गई होगी इसलिए आज वो मेरी बातों में रुचि नहीं ले रहे है।
लगभग दो मिनट बाद त्यागी जी ने मुझे एक स्कैच देते हुए कहा कि यह आप ही हैं। (संयोग से वह चित्र मुझे इस समय मिल नहीं रहा है) काले स्कैच पैन से बना यह चित्र तो कमाल का था। मैंने घर आकर जब इसे दिखाया तो मेरे छोटे पुत्र विनीत की भी कला में रुचि जाग्रत हुई।
अगले दिन जब त्यागी जी मेरे कार्यालय में आये तो विनीत ने (जो कि उस समय कक्षा 5 का छात्र था) त्यागी जी का एक कार्टूननुमा चित्र बना कर उन्हें भेंट किया। इस पर त्यागी जी बहुत जोर से हँसे। विनीत को बहुत प्यार किया और कहा कि पहले सोते हुए कुत्ते बिल्ली का चित्र बनाया करो!
Sansmaran bahut achha laga! Jaise saamne baith ke koyi apne panse baat kar raha ho!
ReplyDeleteअच्छा लगा आपका संस्मरण.
ReplyDeletesansmaran badhiya ...
ReplyDeleteअच्छी यादें ..!
ReplyDeletebahut sundar sansmaran ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संस्मरण! बढ़िया लगा!
ReplyDeletekhoobsurat lekh hai guru ji, acha laga mujhe!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर संस्मरण .
ReplyDeleteअच्छी मुलाकात । अच्छा संस्मरण ।
ReplyDeleteसुंदर संस्मरण.
ReplyDeleteऐसे ही संसमरणों में वो पल होते है जिनमें जीवन की खुशियाँ छुपी होती हैं !
ReplyDeleteआभार !
आपका संस्मरण बहुत अच्छा लगा....
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभ कामनाएँ .....
भजन करो भोजन करो गाओ ताल तरंग।
ReplyDeleteमन मेरो लागे रहे सब ब्लोगर के संग॥
होलिका (अपने अंतर के कलुष) के दहन और वसन्तोसव पर्व की शुभकामनाएँ!
आपको होली की शुभकामनाएँ
ReplyDeleteप्रहलाद की भावना अपनाएँ
एक मालिक के गुण गाएँ
उसी को अपना शीश नवाएँ
मौसम बदलने पर होली की ख़शियों की मुबारकबाद
सभी को .
wish you a very happy and colorful holi.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं
rochak sansmaran.
ReplyDeleteHahaha.....Accha sansmaran hai
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeleteaapki har prastuti hamesa hi naye naye khajano se bhari rahti hai jaise aapki yah shandar prastuti .sansmaran to aap bahut hi achha likhte hain lagta hi aap samne hi baith kar apni beeti baate bate rahen hain.
sadar abhinandan
poonam
बेहतरीन संस्मरण -आनंद आ गया ।
ReplyDeletekuch khatti kuch meethi yaadein, acchi lagi
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