“गुरूद्वारा श्री नानकमत्ता साहिब” का “संक्षिप्त इतिहास”
गुरुद्वारा के साथ पवित्र सरोवर
सरोवर में मछलियाँ
गुरूद्वारा परिसर में दो वर्ष पूर्व मिला कुआँ
प्रतिदिन चलने वाला लंगर
गुरूद्वारा 6वीं पातशाही
आज जिस पवित्र स्थान का मैं वर्णन कर रहा हूँ, पहले यह स्थान “सिद्धमत्ता” के नाम स जाना जाता था।
यह वह स्थान है जहाँ सिक्खों के प्रथम गुरू नानकदेव जी और छठे गुरू हरगोविन्द साहिब के चरण पड़े।
तीसरी उदासी के समय गुरू नानकदेव जी रीठा साहिब से चलकर सन् 1508 के लगभग भाई मरदाना जी के साथ यहाँ पहुँचे। उस समय यहाँ गुरू गोरक्षनाथ के शिष्यों का निवास हुआ करता था। नैनीताल और पीलीभीत के इन भयानक जंगलों में योगियों ने भारी गढ़ स्थापित किया हुआ था जिसका नाम गोरखमत्ता हुआ करता था।
यहाँ एक पीपल का सूखा वृक्ष था। इसके नीचे गुरू नानक देव जी ने अपना आसन जमा लिया। कहा जाता है कि गुरू जी के पवित्र चरण पड़ते ही यह पीपल का वृक्ष हरा-भरा हो गया।
रात के समय योगियों ने अपनी योग शक्ति के द्वारा आंधी और बरसात शुरू कर दी और पीपल के वृक्ष हवा में ऊपर को उड़ने लगा।
यह देकर गुरू नानकदेव जी ने इस पपल के वृक्ष पर अपना पंजा लगा दिया जिसके कारण वृक्ष यहीं पर रुक गया। आज भी इस वृक्ष की जड़ें जमीन से 15 फीट ऊपर देखी जा सकती हैं।
इसे आज लोग पंजा साहिब के नाम से जानते हैं।
गुरूनानक जी के यहाँ से चले जाने के उपरान्त कालान्तर में इस पीपल के पेड़ में आग लगा दी और इस पीपल के पेड़ को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया। उस समय बाबा अलमस्त जी यहाँ के सेवादार थे। उन्हें भी सिद्धों ने मार-पीटकर भगा दिया।
बाबा अलमस्त साहिब सिक्खों के छठे गुरू हरगोविन्द साहिब को जब इस घटना की जानकारी मिली तो वे यहाँ पधारे और केसर के छींटे मार कर इस पीपल के वृक्ष को पुनः हरा-भरा कर दिया।
आज भी इस पीपल के हरेक पत्ते पर केशर के पीले निशान पाये जाते हैं।
आगे का विवरण आप चित्रों के द्वारा देखिए-
ऐतिहासिक धूना साहिब ऐतिहासिक भौंरा साहिब गुरूद्वारा भण्डारा साहिब इतिहास कहता है कि सिद्ध योगियों के द्वारा गुरूनानकदेव जी से 36 प्रकार के व्यञ्नों को खाने की माँग की गई। उस समय गुरू जी एक वट-वृक्ष के नीचे बैठ थे।
गुरू जी ने मरदाना से कहा कि भाई इन सिद्धों को भोजन कराओ। जरा इस वट-वृक्ष पर चढ़कर इसे हिला तो दो।
मरदाना ने जसे ही पेड़ हिलाया तो उस पर से 36 प्रकार के व्यञ्नों की बारिश हुई।
गुरूद्वारा दूधवाला कुआँ नानक प्रकाश में लिखा है-
“मम तूंबा पै सौ भर दीजे,
अब ही तूरण बिलम न कीजै।
श्री नानक तब लै निज हाथा,
भरियो कूप ते दूधहि साथा।”
भाई वीर सिंह जी कहते हैं कि गुरूजी ने कुएँ में से पानी का तूम्बा भर दिया जो सभी ने पिया। मगर यह पानी नही दूध था।
आज भी यह कुआँ मौजूद है और इसके जल में से आज भी कच्चे दूध की महक आती है।
फाउड़ी गंगा भौंरा साहब में बैठाया हुआ बच्चा जब मर गया तो सिद्धों ने गुरू जी से उसे जीवित करने की प्रार्थना की तो गुरू जी ने कृपा करके उसे जीवित कर दिया। इससे सिद्ध बहुत प्रसन्न हो गये और गंगा को यहाँ लाने की प्रार्थना करने लगे।
गुरू जी ने मरदाना को एक फाउड़ी देकर कहा कि तुम इस फाउड़ी से जमीन पर निशान बनाकर सीधे यहाँ चले आना और पीछे मुड़कर मत देखना। गंगा तुम्हारे पीछे-पीछे आ जायेगी।
मरदाना ने ऐसा ही किया लेकिन क्छ दूर आकर पीछे मुड़कर देख लिया कि गंगा मेरे पीछे आ भी रही है या नही।
इससे गंगा वहीं रुक गई।
तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने यहाँ नानक सागर डाम का निर्माण कराया तो यह स्थान उसमें आ गया आज भी यह स्थान कुछ इस प्रकार सुरक्षित है।
नानक सागर के किनारे बना पार्क |
itnaa to mujhe bhi nahi pata tha shastri ji...jabki main yahaan 3 baar aa chuka hoon pichhle saalon mein...
ReplyDeleteis jaankaari ko saanjha karne ke liye shukriyaa!!
बहुत बढ़िया सचित्र जानकारी।
ReplyDeleteकुछ बातें तो अद्भुत लगती हैं , शास्त्री जी।
अच्छी जानकारी,आभार.
ReplyDeleteशास्त्री जी, द्वारा इस पवित्र स्थान के बारे में दी गयी जानकारी ,अन्य कारणों से भी काफी महत्त्व रखती है ..बधाई
ReplyDeleteशास्त्री जी,बहुत बढ़िया जानकारी दी है आपने। आभार
ReplyDeletesatnam
ReplyDeletesatnam
satnam ji
waheguru
waheguru
waheguru ji !
________shastri ji aap dhnya hain
आदरणीय, इतनी बढ़िया सचित्र जानकारी के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी आज की आप की यह पोस्ट,
ReplyDeleteशास्त्री जी,
ReplyDeleteये तो आपने एकदम अलग बात बताई.
मैने यह जगह देखी तो है, लेकिन इतनी जानकारी नही थी मेरे पास.
bahut hi rochak jankari di hai..........dhanyavaad.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और विस्तरित जानकारी है देखने की इच्छा हो गयी है। तस्वीरें भी बहुत सुन्दर हैं। धन्यवाद इस पोस्ट के लिये
ReplyDeleteसचित्र प्रस्तुति देखकर यूं लगा कि सच में वहां से होकर लौटे हैं, बहुत-बहुत आभार ।
ReplyDeleteज्ञानवर्धक रचना
ReplyDeleteआभार
Holee kee anek shubhkamnayen!
ReplyDeleteHolee kee anek shubhkamnayen!
ReplyDeleteआप सभी को ईद-मिलादुन-नबी और होली की ढेरों शुभ-कामनाएं!!
ReplyDeleteइस मौके पर होरी खेलूं कहकर बिस्मिल्लाह ज़रूर पढ़ें.
बहुत बढ़िया सचित्र जानकारी।होली की शुभकामनाएं
ReplyDeletebahut acchee lagee aapkee ye post aur dee gayee jankaree jisse hum anbhigy hee the .
ReplyDeletedhanyvad........
happy holi.......
अति विस्तृत जानकारी ,
ReplyDeleteचित्रमय वर्णन तो चार चाँद लगा रहे हैं
हार्दिक आभार आपका इस बेहतरीन तथ्यों कथाओं से अवगत कराने का.
होली पर आपको हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
namaskaar shastri ji
ReplyDeleteitni vistrit jaankari di aapne ki hum ahsaanmand ho gaye aapke ,holi ke is pavan parv par aapko dhero badhai .
Hart tuching
ReplyDeleteSend contack no. Please
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