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Saturday, 29 August 2009
Monday, 24 August 2009
‘‘भाद्रपद मास में दूज’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक)
भाद्रपद मास में दूज के दिन उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर और मुरादाबाद में गाँवों और शहरों में एक मेले का आयोजन होता है। इसमें बुड्ढा बाबू की पूजा की जाती है। कढ़ी, साबुत उड़द, चावल, रोटी, पुआ, पकौड़ी और हलवा आदि सातों नेवज घर में बनते हैं। बुड्ढा बाबू को भोग लगा कर प्रसाद के रूप में घर के लोग भी इस भोजन को ग्रहण करते हैं। इसके बाद मेले में बुड्ढा बाबू के थले पर जाकर प्रसाद चढ़ाया जाता है। मान्यता है कि दाद, खाज, कोढ़ आदि के रोग भी यहाँ प्रसाद चढ़ाये जाने से ठीक हो जाते हैं। हल्दौर कस्बे में तो दोयज का बहुत बड़ा मेला लगता है जो 10 दिनों तक चलता है। दोयज के दिन मेले में जाने पर सबसे पहले आपको बाल्मीकि समाज के लोग सूअर के बच्चों को बाँधे हुए बैठे मिल जायेगें। वे टीन के कटे हुए छोटे-छोटे को दाद-फूल के रूप में देते हैं। जैसे ही आप उनसे ये दाद फूल खरीदेंगे, वे आपको इस दाद फूल के साथ सूअर के बच्चे के कान के बाल चाकू से नोच कर इन दाद-फूल के साथ दे देंगे। यही प्रसाद आप बुड्ढा बाबू के थले पर जाकर चढ़ा देंगे। ये नजारा खासकर छोटे बालकों को बहुत सुन्दर लगता है। सूअर का कान नोचा जायेगा तो वो चिल्लायेगा और बच्चे इसका आनन्द लेंगे। |
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Tuesday, 18 August 2009
‘‘आप भी इन बाढ़ के नजारों पर दृष्टिपात कर लें’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
"खटीमा में बाढ़" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
लो भाई! "खटीमा में बाढ़" आ ही गई। १३ अगस्त,२००९ का दृश्य १८ अगस्त,२००९ का नज़ारा कल तक तो सूखे की मार झेल रहे थे। १३ अगस्त से उमड़-घुमड़ कर बादल आ गये। बारिश बरसने लगी। मन को तसल्ली मिली। पाँच दिनों से लगातार पानी गिर रहा है। १८ अगस्त,२००९ का नज़ारा उत्तराखण्ड का खटीमा शहर जलमग्न हो गया है। बाढ़ का पानी ८० प्रतिशत् घरों में घुस चुका है। खाना पकाने तक के लाले पड़ गये हैं। अभी भी बादल छँटने के आसार नहीं लग रहे हैं। प्रकृति की इस मार के आगे सब लाचार हैं। इन्द्र-देवता अब तो बस करो! |
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Saturday, 15 August 2009
खटीमा मे स्वतन्त्रता-दिवस (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
आज हम भारतवासी स्वतन्त्रता-दिवस की 63वीं वर्ष-गाँठ मना रहे हैं। 60 वर्ष के पश्चात मनुष्य वरिष्ठता की श्रेणी में आ जाता है। हमारा आजादी का यह पर्व भी वरिष्ठता के दौर में प्रवेश कर चुका है। विगत 25 वर्षों से स्थानीय तहसील और परगना-न्यायालय के परिसर में मेंरे विद्यालय (राष्ट्रीय वैदिक पूर्व माध्यमिक विद्यालय, खटीमा) के बालक राष्ट्र-गान गाने के लिए अनवरत रूप से राष्ट्रीय पर्वों पर जाते हैं। लेकिन इस बार नजारा बदला-बदला था। झण्डारोहण स्थल काफी ऊबड़-खाबड़ था। जगह-जगह पानी भरा था। स्थानीय तहसीलदार से इस बाबत मैंने पूछा तो उन्होंने जवाब दिया- ‘‘ अब हमें यहाँ रहना ही नही है। कुछ महीने बाद तहसील नये भवन में चली जायेगी।’’ क्या अर्थ लगाया जाये इस बात का। यानि नये की आशा में हम अपने पुराने घर में झाड़ू लगाना और साफ-सफाई ही बन्द कर दें। इस बाबत एक व्यक्ति ने चुटकी ली कि साहब रिश्वत तो आजकल तहसील में चरम सीमा पर है। नये भवन में जाकर ही रिश्वत भी ले लेना। तब तक यह भी बन्द कर दो ना। इसके बाद स्थानीय पेपर मिल में इस विद्यालय के बालक मेरे साथ 15 अगस्त की परेड में गये। दर-असल मुझे इस कारखाने से विशेष लगाव है। वो इसलिए नही कि ये मेरे मित्र श्री राकेश चन्द्र रस्तोगी का संस्थान है, बल्कि इसलिए कि इन्होंने इसका नाम खटीमा के नाम से खटीमा फाइबर्स रखा है। देश-विदेश में मेरे नगर का नाम रोशन किया है। यहाँ स्वतन्त्रता दिवस की परेड देखने लायक थी। जिसमें ध्वजारोहण फैक्ट्री के प्रबन्ध निदेशक एवं अध्यक्ष आर0सी0 रस्तोगी ने किया। इसके बाद विद्यालय के छात्रों द्वारा देश-भक्ति से ओत-प्रोत एक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर आर0सी0 रस्तोगी ने अपने कर्मचारियों और अधिकारियों को विस्तार से बताते हुए अपना सन्देश दिया। 94 वर्षीय श्री आनन्द प्रकाश रस्तोगी ने अपने वक्तव्य में सभी को स्वतन्त्रता दिवस की बधाई दी। समारोह में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग, उत्तराखण्ड सरकार के पूर्व सदस्य डा0 रूपचन्द्र शास्त्री ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज यदि हम विकास के जिम्मेदार हैं तो जीवन में नैतिक मूल्यों के पतन के भी हम ही जिम्मेदार हैं। स्वतन्त्रता-दिवस तभी सार्थक होगा जब कि हर नागरिक अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन ईमानदारी से करे। इस अवसर पर उद्योगपति पी0एन0 सक्सेना, कारखाने के उपाध्यक्ष अचल शर्मा, मुकेशचन्द्र रस्तोगी आदि ने भी अपनी शुभकामनाएँ प्रेषित की। अन्त में विद्यालय के छात्र-छात्राओं को भी पुरस्कृत किया गया। |
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Friday, 14 August 2009
‘‘हिन्दू से ईसाई बनने बनने का राज क्या है?’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
आज से लगभग 32 वर्ष पुरानी बात है। मेरे गृह जनपद के एक व्यक्ति खटीमा आकर बस गये। यहीं पर उन्होंने एक रिश्तेदार डाक्टर के यहाँ कुछ दिन रह कर डाक्टरी सीख ली और निकट के गाँव में अपना चिकित्साभ्यास शुरू कर दिया। गुजर-बसर ठीक-ठाक होने लगी। उस गाँव में एक पादरी परिवार भी रहता था। उसने इस व्यक्ति के यहाँ आना जाना शुरू कर दिया। नित्य प्रति पादरी इसे बाइबिल की बातें बताने लगा। यह डाक्टर भी उसकी बातें रस लेकर सुनने लगा। अब पादरी ने उसे किसी ईसाई सम्मेलन में ले जाने के लिए राजी कर लिया। 4 दिनों के बाद जब यह डाक्टर लौट कर अपने घर आया तो सिर से चोटी और कन्धे से जनेऊ गायब था। यह पूरी तरह ईसाइयत के रंग में रंग चुका था। अब इसने डाक्टरी का रजिस्ट्रेशन प्रमाण-पत्र फाड़ कर फेंक दिया था। इसका एक ही काम था गाँव-गाँव जाकर ईसाईयत के पर्चे बाँटना। इसको इस काम के लिए उस समय तीन हजार रुपये प्रति माह मिलता था। आज इसने अपना मकान बना लिया है। दोनों पुत्रियों और पुत्र का विवाह भी ईसाई परिवारों में कर दिया है। वर्तमान समय में विदेशी ईसाई मिशन इसे दस हजार रुपये प्रति माह दे रहा है। अपने घर में यह हर रविवार (सन-डे) को दरबार लगाता है। आदिवासी लोगों के भूत-प्रेत को उतारने का ढोंग करता है। हजारों रुपये का चढ़ावा प्रति रविवार इसके घर पर आता है। अब तक यह सैकड़ों भोले-भाले आदिवासियों को ईसाई धर्म में दीक्षित कर चुका है। अब समझ में आ गया है कि ईसाई मिश्नरी हमारे देश के भोले-भाले लोगों को लोभ देकर ईसाई बनाते हैं। |
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Sunday, 9 August 2009
बग्वाल मेला (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक)
Tuesday, 4 August 2009
‘‘हुक्म की बेगम, चिड़ी का गुलाम’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Monday, 3 August 2009
‘‘शठे शाठ्यं समाचरेत’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
वो पीलीभीत में अपना घर बना रहे थे। बरेली के एक ईंट भट्टा मालिक से उनकी 3500/- रु0 प्रति हजार की दर से 30 हजार ईंटों की बात तय हो गई। बयाने के रूप में वो मुनीम के पास पचास हजार रुपये जमा कर आये। शेष पचपन हजार रुपये देने के लिए उन्होने मुनीम से कह दिया कि जब चाहे ये रुपये मँगा लेना। अगले दिन ईंटों का रेट 300 रुपये प्रति हजार की दर से बढ़ गया। मुनीम ने 5 दिन में पचास हजार रुपये की ईटे भेज कर शेष ईंटें भेजने को मना कर दिया। जब उसके पास शर्मा जी 2-4 लोगों को लेकर गये तो मुनीम बद-तमीजी पर उतारू हो गया। सभी लोगों को यह बात बहुत बुरी लगी। शर्मा जी के एक साथी ने कहा कि छोटे आदमी के क्या मुँह लगना चलो दूसरे भट्टे वाले से बात करते हैं। परन्तु शर्मा जी स्वाभिमानी व्यक्ति थे। कहने लगे कि बढ़ा हुआ रेट ले लेता पर इसने बद-तमीजी क्यों की है। अन्ततः निकट के पुलिस स्टेशन पर एफ आई आर दर्ज कराने चले गये। थानेदार ने रिपोर्ट दर्ज करने में आना-कानी की तो मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने बाहर जाकर अपने किसी सचिव मित्र से लखनऊ में सम्पर्क साधा। पूरी बात बताई तो उन्होने बरेली के एस0एस0पी0 को फोन कर दिया। जब तक मैं दोबारा थानेदार के पास आया, तब तक एस0एस0पी0 साहब का फोन थानेदार के पास आ गया था। अब तो नजारा ही बदल गया था। थानेदार मय-फोर्स के भट्टे पर हमारे साथ गया। मुनीम की भी पूरी बात सुनी। फिर कुछ गुणा भाग करने लगा। उसने मुनीम से जो बात कही बस वो ही बताने के लिए ये पोस्ट लगाई है। थानेदार ने कहा- ‘‘अच्छा मुनीम जी यह बताइए कि शादी में टेण्ट लगाने के लिए जब एडवांस दिया जाता है तो पूरा पेमेण्ट तो कार्य हो जाने के बाद ही किया जाता है। आपने पूरी ईंट भेजे बिना ही अपना एग्रीमेंट क्यों तोड़ दिया।’’ अब तो मुनीम की हालत देखने लायक थी। वह बोला- ‘‘साहब ईंटें पहुँच जायेंगी। बल्कि मैं एक हजार ईंटे अधिक दे दूँगा।’’ थाने दार ने उसकी एक न सुनी और बिल बुक माँग ली। बिल बुक में तो सारे फर्जी बिल कटे थे और 15 सौ रुपये प्रति हजार की दर से बिल कटे हुए थे। अब थानेदार ने शर्मा जी से कहा कि मैं आपकी एफ आई आर दर्ज करूँगा, मगर शर्त यह है कि आप यह एफ आई आर वापिस नही लेंगे। आज भट्टा-मालिक व मुनीम दोनों जेल में हैं और उन पर टैक्स चोरी, वैट चोरी आदि के न जाने कितनी धाराएँ लगाई गयीं हैं। बाद में पता चला कि थानेदार एक आई0पी0एस0 आफीसर था जो ट्रेनिंग पर थाना इंचार्ज के पद पर तैनात था। |
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