खटीमा (उत्तराखण्ड) में शाम के 5 बजे के बाढ़ के दृश्य
आज प्रातःकाल 8 बजे खटीमा (उत्तराखण्ड) की बाढ़ की कुछ तस्बीरे आपको इससे पूर्व की पोस्ट में दिखाईं थी।
आज 18 अगस्त 2009 मंगलवार का दिन है। करीब 3 घण्टे से वर्षा रुकी हुई हैं। अब शाम के 5 बजे हैं। इस लिए मैंने सोचा कि खटीमा के समीपवर्ती क्षेत्र का भी भ्रमण किया जाये निकला। आप भी इन बाढ़ के नजारों पर दृष्टिपात कर लें। बारिश रुकने के बाद भी बस्तियों और खेतों में पानी ही पानी था।
यह कुमाऊँ मण्डल विकास निगम की गैस एजेंसी है। यहाँ बिल्डिंग में तो पानी भरा ही हुआ है साथ ही कार्यालय जाने का मार्ग ही अवरुद्ध हो गया है। गैस गोदाम ने तालाब ले लिया है। एक और मकान का दृश्य देखिए-
अरे! इस मकान की तो खिडकियाँ भी पानी में डूबी हैं। अब खेतों में बने मकानों का जायजा लेते हैं- ओह! यहाँ तो जल-थल एक हो रहा है। कुल मिलाकर बाढ़ की विभषिका बड़ी भयंकर है। |
सच कहीं बाढ़ कहीं सूखा...
ReplyDeleteऐसे नज़ारे आजकल आम हो चले हैं। सब हमारी ही गल्तियाँ हैं
ReplyDeleteये तो बड़ा भयंकर स्थिति है! बहुत नुक्सान हो गया है और लोगों को कितनी तकलीफों का सामना करना पर रहा है समझ सकती हूँ! भगवान् से यही प्रार्थना करती हूँ जल्द से जल्द बाढ ख़तम हो जाए ताकि सभी को इस स्थिति से चैन मिले!
ReplyDeleteAAPNE TO BADI DIL DAHALANE WALI TASBIRON KE SATH BADI JEEVANT POST LAGAI HAI.
ReplyDeleteBHAGWAN SABKI RAKSHA KAREN.
भगवान् की माया , कही धुप कही छाया
ReplyDeleteyahan khabar tak nahi aaayee...
ReplyDeletebahut hi bhyanak tasveer hain baadh ki tabahi ki.......bagwan sabko sahne ki himmat de.
ReplyDeleteApne jo tasvir khichi hai, marmik hai. sarkar ko thos kadam uthana chahiye.
ReplyDeleteकुव्यवस्था की माया, कहीं बाढ़ कहीं सूखा!
ReplyDeleteइन तस्वीरों को हमें सिर्फ देखना ही नहीं है ,पर मनन भी करना है कि यह क्यों हुआ ,कैसे हुआ और इसको कैसे रोक सकते हैं तभी इनकी सार्थकता है |
ReplyDeleteआदरणीय मयंक जी,
ReplyDeleteसादर नमन
बाढ़ की विभीषिका के लिए इन्द्रदेव को भी नमन
खटीमावासियों के लिए मेरी मंगलकामनाएं
दुःख के बाद सुख जरूर आता है
आपने इसाइयत धर्मपरिवर्तन का मुद्दा उठाकर अच्छा किया किन्तु इसमें सारा दोष हमारा है ---आदिवासियों को क्या चाहिए- भरपेट रोटी ,हमारा प्यार और शिक्षा .हम इसमें से कुछ भी उन्हें नहीं देते सिर्फ तिरस्कार देते हैं ,तो जहां उन्हें इसमें से कुछ भी मिल जाता है वे वहाँ चले जाते हैं.
खैर....
मेरे यहाँ फिर आईयेगा
हम मिलके आवाज़/क़दम उठायें तो बाढ़ का पानी , सूखा ग्रस्त जगहों के लिए बचाया जा सकता है ...लेकिन बाढ़ ग्रस्त इलाकेभी आवाज़ नही उठाते ,ये बड़े दुर्भाग्य की बात है ..
ReplyDeleteवैसे शास्त्री जी,आपसे एक शिकायत है...लिख एक स्त्री रही है( बिखरे सितारे),और आप ,भाईजी' कहके आ गए...!अब आपको दोबारा कमेन्ट करनाही पड़ेगा! एक नम्र इल्तिजा है..इसरार है,गर समय हो तो!