लघु-कथा बात 25 -30 साल पुरानी है। उन दिनों नेपाल में मेरा हम-वतन प्रीतम लाल पहाड़ में खच्चर लादने का काम करता था। इनका परिवार भी इनके साथ ही पहाड़ में किराये के झाले में रहता था। उनका अपने घर नजीबाबाद के पास गाँव में जाने का कार्यक्रम था। अतः ये रास्ते में मेरा घर होने के कारण मिलने के लिए आये। औपचारिकतावश् चाय नाश्ता बनाया गया। प्रीतम की लड़की चाय बना कर लाई। परन्तु उसने चाय को बना कर छाना ही नही। पहले सभी को निथार कर चाय परोसी गई। नीचे बची चाय को उसने अपने छोटे भाई बहनों के कपों में उडेल दिया। सभी लोग चाय पीने लगे। बच्चों ने चाय पीने के बाद चाय पत्ती को भी मजा लेकर खाया। ये लोग अब बस से जाने की तैयारी में थे कि प्रीतम ने मुझसे कहा कि डॉ. साहब कल से भूखे हैं। हमें 2-2 रोटी तो खिला ही दो। मैंने कहा- ‘‘जरूर।’’ श्रीमती ने पराँठे बनाने शुरू किये तो मैंने कहा कि इनके लिए रास्ते के लिए भी पराँठे रख देना। अब प्रीतम और उसके परिवार ने पराँठे खाने शुरू किये। वो सब इतने भूखे थे कि पेट जल्दी भरने के चक्कर में दो पराँठे एक साथ हाथ में लेकर डबल-टुकड़े तोड़-तोड़ कर खाने लगे। उस दिन मैंने देखा कि भूख और निर्धनता क्या होती है। |
---|
समर्थक
Wednesday, 9 September 2009
‘‘निर्धनता की भूख’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
शास्त्री जी,
ReplyDeleteजनता के टैक्स के पैसे से १ लाख रूपये प्रतिदिन के होटल के कमरे में रहने वाले लोग कैसे जानेगे कि भूख और निर्धनता क्या होती है !
Shastri ji,
ReplyDeleteis duniya main sab kuch pet hi hai..us par nirdhan hona aaj ke time bahut bada apradh hai..
sundar sansamaran!!
nirdhanta se bada abhishap koi nhi..........aur us par bhookh.............isse dayniya sthti aur ho hi nhi sakti.
ReplyDeleteनिर्धनता और भूख इंसान को इंसान नही रहने देती.
ReplyDeleteबहुत अच्छा संसमरण --
Respected Shastriji,
ReplyDeleteI like this post very much, bhuk aur gareebi kai essay bhi bhayanak manjar hamesha dikaheye detey hai
bhuk mai ensaan kya kuch nahi kar jata......
भूख और निर्धनता सचमुच बड़ी तकलीफ देती है. दुःख तो इस बात का है की आज़ादी के ६२ साल बाद भी देश में ३८% लोग गरीबी के शिकार हैं. आखिर हम कब तक विकासशील देश बने रहेंगे?
ReplyDeleteचिंतन के लिए अच्छा विषय है शास्त्री जी.
भूख और गरीबी..जो गुजरता है वो समझता है.
ReplyDeleteसही कहा शास्त्री जी.
ReplyDeleteजाके कभी न परी बिवाई, सो का जाने पीर पराई!
जनता के पैसों से ही जहां एक ओर नेता अपने आनेवाली कई पीढियों के लिए ऐशो आराम की व्यवस्था कर रहे हैं .. वहीं दूसरी ओर जनता ही भूखे रह रही है .. हमारे लिए इससे बडा दुर्भाग्य क्या हो सकता है ?
ReplyDeleteshastri ji....paisa hai na bahut....in leaders ke paas jo hamara he khoon choos choos ke apni jebein bharte hain aur gareebo ko marne ke liye chhod dete hain....
ReplyDeleteis rachna ki saanjha karne ke liye dhanyawaad...
वाह
ReplyDeleteवाह
बहुत ख़ूब...........प्यारी अभिव्यक्ति
बधाई !
सही कहा शास्त्री जी भूख क्या होती है ये तो वही जान पाता जिसे लगती है।एक बार हम लोग जंगल मे रास्ता भटक गये थे।भूख से बुरा हाल हो गया था।एक कदम भी उठाने की हिम्मत बाकी नही रही थी। काफ़ी देर बाद जब एक झोपडी पर पहुंचे तो जो वंहा उपल्ब्ध था उसी को मांग कर खाना पड़ा।स्वाद का तो पता नही लेकिन वो अमृत से कम नही लगा था।इस देश मे जब बचपन को कचरे के ढेर मे जानवरो के साथ भूख मिटाने के साधन ढूंढ्ते देखो तो पता चलता है कि भूख क्या होती है?आप और हम जैसे लोग तो इसे महसूस कर सकते है लेकिन जिनके हाथो इस समस्या से निपटने की ज़िम्मेदारी है शायद उन लोगो को ये मह्सूस नही होती।
ReplyDeleteआह नि्र्धनता पर जितनी लोग चिन्ता जता रहे हैं उतनी और बढती जा रही है जिसका कोई हल नहीं दिखता बहुत अच्छी कथा है आभार्
ReplyDeleteshastri ji,
ReplyDeleteAapki laghu-katha bahut marmik hai.
yadi ye sansmaran hai to usse bhi adhik marmik hai.
badhai.
भूख की क्या परिभाषा है यह वे लोग नही जान सकते जिन्होने यह सब करीब से नहीं देखा । मार्मिक रचना है ।
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक संस्मरण.
ReplyDeleteगरीबी हटाने का वादा करने वाले आज तक तो सिर्फ अपनी ही गरीबी हटा सके हैं, यूँ ही लूट कर अपनी अमीरी बढ़ते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब गरीबी की रेखा के निचे के लोगों की संक्या बढ़ने लग जायेगी.............
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
स्वानों का मिलते दूध-भात, भूखे बच्चे अकुलाते हैं,
ReplyDeleteमां की छाती से चिपक, ठिठुर जाड़े की रात बिताते हैं।
आपके संस्मरण ने दिनकर की ये पंक्तियां याद दिला दीं।
समाज के समृद्ध लोगों को इतना तो संवेदनशील होना ही चाहिए कि अपनी विलासिता से कुछ बचाकर भूखों में रोटी बांटें।
भूख और निर्धनता का एक साथ होना बेहद दुखदायी है। समाज को गरीबी दूर करने के लिए कदम बढ़ाना चाहिए।
आपने अच्छा लिखा है, बधाई।
ReplyDeleteक्या क्या बयां करूं तकलीफें बहुत हैं
ReplyDeleteसुनने वालों की तादाद नहीं हैं