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Wednesday 9 September 2009

‘‘निर्धनता की भूख’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


लघु-कथा

बात 25 -30 साल पुरानी है। उन दिनों नेपाल में मेरा हम-वतन प्रीतम लाल पहाड़ में खच्चर लादने का काम करता था। इनका परिवार भी इनके साथ ही पहाड़ में किराये के झाले में रहता था।
उनका अपने घर नजीबाबाद के पास गाँव में जाने का कार्यक्रम था। अतः ये रास्ते में मेरा घर होने के कारण मिलने के लिए आये।
औपचारिकतावश् चाय नाश्ता बनाया गया।
प्रीतम की लड़की चाय बना कर लाई। परन्तु उसने चाय को बना कर छाना ही नही।
पहले सभी को निथार कर चाय परोसी गई। नीचे बची चाय को उसने अपने छोटे भाई बहनों के कपों में उडेल दिया।
सभी लोग चाय पीने लगे।
बच्चों ने चाय पीने के बाद चाय पत्ती को भी मजा लेकर खाया।
ये लोग अब बस से जाने की तैयारी में थे कि प्रीतम ने मुझसे कहा कि डॉ. साहब कल से भूखे हैं। हमें 2-2 रोटी तो खिला ही दो।
मैंने कहा- ‘‘जरूर।’’
श्रीमती ने पराँठे बनाने शुरू किये तो मैंने कहा कि इनके लिए रास्ते के लिए भी पराँठे रख देना।
अब प्रीतम और उसके परिवार ने पराँठे खाने शुरू किये। वो सब इतने भूखे थे कि पेट जल्दी भरने के चक्कर में दो पराँठे एक साथ हाथ में लेकर डबल-टुकड़े तोड़-तोड़ कर खाने लगे।
उस दिन मैंने देखा कि भूख और निर्धनता क्या होती है।

19 comments:

  1. शास्त्री जी,
    जनता के टैक्स के पैसे से १ लाख रूपये प्रतिदिन के होटल के कमरे में रहने वाले लोग कैसे जानेगे कि भूख और निर्धनता क्या होती है !

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  2. Shastri ji,
    is duniya main sab kuch pet hi hai..us par nirdhan hona aaj ke time bahut bada apradh hai..

    sundar sansamaran!!

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  3. nirdhanta se bada abhishap koi nhi..........aur us par bhookh.............isse dayniya sthti aur ho hi nhi sakti.

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  4. निर्धनता और भूख इंसान को इंसान नही रहने देती.
    बहुत अच्छा संसमरण --

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  5. Respected Shastriji,

    I like this post very much, bhuk aur gareebi kai essay bhi bhayanak manjar hamesha dikaheye detey hai
    bhuk mai ensaan kya kuch nahi kar jata......

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  6. भूख और निर्धनता सचमुच बड़ी तकलीफ देती है. दुःख तो इस बात का है की आज़ादी के ६२ साल बाद भी देश में ३८% लोग गरीबी के शिकार हैं. आखिर हम कब तक विकासशील देश बने रहेंगे?
    चिंतन के लिए अच्छा विषय है शास्त्री जी.

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  7. भूख और गरीबी..जो गुजरता है वो समझता है.

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  8. सही कहा शास्त्री जी.
    जाके कभी न परी बिवाई, सो का जाने पीर पराई!

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  9. जनता के पैसों से ही जहां एक ओर नेता अपने आनेवाली कई पीढियों के लिए ऐशो आराम की व्‍यवस्‍था कर रहे हैं .. वहीं दूसरी ओर जनता ही भूखे रह रही है .. हमारे लिए इससे बडा दुर्भाग्‍य क्‍या हो सकता है ?

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  10. shastri ji....paisa hai na bahut....in leaders ke paas jo hamara he khoon choos choos ke apni jebein bharte hain aur gareebo ko marne ke liye chhod dete hain....
    is rachna ki saanjha karne ke liye dhanyawaad...

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  11. वाह
    वाह
    बहुत ख़ूब...........प्यारी अभिव्यक्ति
    बधाई !

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  12. सही कहा शास्त्री जी भूख क्या होती है ये तो वही जान पाता जिसे लगती है।एक बार हम लोग जंगल मे रास्ता भटक गये थे।भूख से बुरा हाल हो गया था।एक कदम भी उठाने की हिम्मत बाकी नही रही थी। काफ़ी देर बाद जब एक झोपडी पर पहुंचे तो जो वंहा उपल्ब्ध था उसी को मांग कर खाना पड़ा।स्वाद का तो पता नही लेकिन वो अमृत से कम नही लगा था।इस देश मे जब बचपन को कचरे के ढेर मे जानवरो के साथ भूख मिटाने के साधन ढूंढ्ते देखो तो पता चलता है कि भूख क्या होती है?आप और हम जैसे लोग तो इसे महसूस कर सकते है लेकिन जिनके हाथो इस समस्या से निपटने की ज़िम्मेदारी है शायद उन लोगो को ये मह्सूस नही होती।

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  13. आह नि्र्धनता पर जितनी लोग चिन्ता जता रहे हैं उतनी और बढती जा रही है जिसका कोई हल नहीं दिखता बहुत अच्छी कथा है आभार्

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  14. shastri ji,
    Aapki laghu-katha bahut marmik hai.
    yadi ye sansmaran hai to usse bhi adhik marmik hai.
    badhai.

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  15. भूख की क्या परिभाषा है यह वे लोग नही जान सकते जिन्होने यह सब करीब से नहीं देखा । मार्मिक रचना है ।

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  16. बहुत ही मार्मिक संस्मरण.
    गरीबी हटाने का वादा करने वाले आज तक तो सिर्फ अपनी ही गरीबी हटा सके हैं, यूँ ही लूट कर अपनी अमीरी बढ़ते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब गरीबी की रेखा के निचे के लोगों की संक्या बढ़ने लग जायेगी.............

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  17. स्वानों का मिलते दूध-भात, भूखे बच्चे अकुलाते हैं,
    मां की छाती से चिपक, ठिठुर जाड़े की रात बिताते हैं।
    आपके संस्मरण ने दिनकर की ये पंक्तियां याद दिला दीं।
    समाज के समृद्ध लोगों को इतना तो संवेदनशील होना ही चाहिए कि अपनी विलासिता से कुछ बचाकर भूखों में रोटी बांटें।
    भूख और निर्धनता का एक साथ होना बेहद दुखदायी है। समाज को गरीबी दूर करने के लिए कदम बढ़ाना चाहिए।

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  18. आपने अच्छा लिखा है, बधाई।

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  19. क्या क्या बयां करूं तकलीफें बहुत हैं
    सुनने वालों की तादाद नहीं हैं

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