वो पीलीभीत में अपना घर बना रहे थे। बरेली के एक ईंट भट्टा मालिक से उनकी 3500/- रु0 प्रति हजार की दर से 30 हजार ईंटों की बात तय हो गई। बयाने के रूप में वो मुनीम के पास पचास हजार रुपये जमा कर आये। शेष पचपन हजार रुपये देने के लिए उन्होने मुनीम से कह दिया कि जब चाहे ये रुपये मँगा लेना। अगले दिन ईंटों का रेट 300 रुपये प्रति हजार की दर से बढ़ गया। मुनीम ने 5 दिन में पचास हजार रुपये की ईटे भेज कर शेष ईंटें भेजने को मना कर दिया। जब उसके पास शर्मा जी 2-4 लोगों को लेकर गये तो मुनीम बद-तमीजी पर उतारू हो गया। सभी लोगों को यह बात बहुत बुरी लगी। शर्मा जी के एक साथी ने कहा कि छोटे आदमी के क्या मुँह लगना चलो दूसरे भट्टे वाले से बात करते हैं। परन्तु शर्मा जी स्वाभिमानी व्यक्ति थे। कहने लगे कि बढ़ा हुआ रेट ले लेता पर इसने बद-तमीजी क्यों की है। अन्ततः निकट के पुलिस स्टेशन पर एफ आई आर दर्ज कराने चले गये। थानेदार ने रिपोर्ट दर्ज करने में आना-कानी की तो मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने बाहर जाकर अपने किसी सचिव मित्र से लखनऊ में सम्पर्क साधा। पूरी बात बताई तो उन्होने बरेली के एस0एस0पी0 को फोन कर दिया। जब तक मैं दोबारा थानेदार के पास आया, तब तक एस0एस0पी0 साहब का फोन थानेदार के पास आ गया था। अब तो नजारा ही बदल गया था। थानेदार मय-फोर्स के भट्टे पर हमारे साथ गया। मुनीम की भी पूरी बात सुनी। फिर कुछ गुणा भाग करने लगा। उसने मुनीम से जो बात कही बस वो ही बताने के लिए ये पोस्ट लगाई है। थानेदार ने कहा- ‘‘अच्छा मुनीम जी यह बताइए कि शादी में टेण्ट लगाने के लिए जब एडवांस दिया जाता है तो पूरा पेमेण्ट तो कार्य हो जाने के बाद ही किया जाता है। आपने पूरी ईंट भेजे बिना ही अपना एग्रीमेंट क्यों तोड़ दिया।’’ अब तो मुनीम की हालत देखने लायक थी। वह बोला- ‘‘साहब ईंटें पहुँच जायेंगी। बल्कि मैं एक हजार ईंटे अधिक दे दूँगा।’’ थाने दार ने उसकी एक न सुनी और बिल बुक माँग ली। बिल बुक में तो सारे फर्जी बिल कटे थे और 15 सौ रुपये प्रति हजार की दर से बिल कटे हुए थे। अब थानेदार ने शर्मा जी से कहा कि मैं आपकी एफ आई आर दर्ज करूँगा, मगर शर्त यह है कि आप यह एफ आई आर वापिस नही लेंगे। आज भट्टा-मालिक व मुनीम दोनों जेल में हैं और उन पर टैक्स चोरी, वैट चोरी आदि के न जाने कितनी धाराएँ लगाई गयीं हैं। बाद में पता चला कि थानेदार एक आई0पी0एस0 आफीसर था जो ट्रेनिंग पर थाना इंचार्ज के पद पर तैनात था। |
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Monday, 3 August 2009
‘‘शठे शाठ्यं समाचरेत’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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अच्छा वाकया बयान किया आपने.
ReplyDeleteऐसे घोटाले रोज ही होते रहते है और बहुत ही सामान्य ढंग से.
ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही व्यवहार होना चाहिए। प्रेरक संस्मरण।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
जैसे को तैसा ..वाह ..! पढ़ के कलेजे को बड़ी ठंडक मिली ..न्याय देरसे सही हुआ तो ...!
ReplyDeleteachha laga
ReplyDeleteachha hua police station se he jail chala gaya warna jab on-the-job aata toh pata nahi kitno ko thagta....
ReplyDeletenice one shastri ji...
जैसे को तैसा
ReplyDeletesahi hai....jab tak hum ghotale karne valon ko yah kahkar chhodte rahenge ki iske muh kya lagna....tab tak ghotale hote rahenge......shuruvaat chhote paimane se ho tab bhi baad me bada asar jaroor layegi.....aap logon ne ye prayaas kiya iske liye DHANYAWAAD
ReplyDeletejab tak iint ka jawab patthar se na do kisi ko samajh kab aata hai......bahut badhiya kiya.
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