जी हाँ.............! हमको गर्व है कि हम एक उदारवादी, सुधारवादी और प्रजातान्त्रिक देश में रहते हैं।हमारे भारत में सप्ताह में तो एक-दो आतंकवादी पकड़ ही लिए जाते हैं। उनके पास से गोला-बारूद और अस्त्र-शस्त्र भी बरामद हो जाते हैं। फिर किन सबूतों के लिए उन्हें जिन्दा रखा जाता है? पकी-पकाई रोटियाँ उन्हें क्यों खिलाई जाती हैं? इनके पास से बरामद सबूतों को तुरन्त ही न्यायालय में पेश भी किया जाता है। लेकिन न्यायाधीश सजा का निर्धारण करने में कई साल क्यों बरबाद कर देते हैं? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं। जिनका उत्तर मैं ही नही, भारत का हर जागरूक नागरिक देश की न्याय-व्यवस्था से माँग रहा है। आतंकवाद पर रोक तो तुरन्त लग सकती है। अगर इनको तुरन्त दण्ड मिल जाये। |
सार्थक प्रश्न है ...मगर आपने किया किस्से है ..भैंस के आगे बीन बजाते रहिये ..भैंस को क्या फर्क पड़ना है ..!!
ReplyDeleteक्या बात करते हो शास्त्री जी, इस देश में सारी कर्रप्सन की जड़ तो हमारा न्याय तंत्र है ! देश इतना भरष्ट ना होता अगर न्याय तंत्र ही भरष्ट नहीं होता तो ! अगर ये ऐसा नहीं लटकायेंगे केस को तो इनकी दाल रोटी चलेगी कैसे ? ये अगर इतने ही इमानदार होते तो संपत्ति घोषित करने में इतनी आनाकानी क्यों ? ये लोग भी तो हमारे ही भाई-बंध है, इसी भरष्ट समाज का हिस्सा है, इसलिए इनसे किसी निष्पक्षता की उम्मीद कैसे कर सकते है? ये लोगो को और देश को तो बड़े-बड़े दिशानिर्देश देने में तो माहिर है, मगर जब अपनी पे आती है तो शान में गुस्ताखी न हो, इनको कोई दिक्कत न हो इसलिए सुप्रीम कोर्ट के बाहर बस कोरिडोर का निर्माण कार्य रुकवाने पर ही आमदा है !
ReplyDeleteबहुत ही सही प्रश्न उठायें है आप ने.
ReplyDeletePadhen "Gazab qaanoon"
ReplyDeletehhtp://lalitlekh.blogspot.com
To pata cahlega aatakwaad kyon nahee ruk sakta.
Ye shama ji ka blog hai. Spasht vivaran hai...jhakjhor dene wala..
shastri ji
ReplyDeleteaap to jante hi hain..........sabhi jagah rajniti hai........har koi apni roti senkne mein laga hai........desh ki parwaah hai kisko..........bas kursi bachni chahiye aur kaun billi ke gale mein ghanti baadhe...........kisi bhi aatankvadi ko maut ki sazaa dena billi ke gale mein ghanti bandhne jaisa hai..........hum janta sirf sawaal hi kar sakti hai magar jawaab sirf ek hi hai.......marne ko taiyaar raho.....hum aatankvadiyon ke sath hain.........aisi sarkar hai aur aisa desh ka haal hai.
शायद ग़लती की कोई गुजाइश न रह जाये इस छूट का फ़ायदा उठा रहे हैं।
ReplyDelete---
तख़लीक़-ए-नज़र
जब तक आतंकवादी को देश द्रोही का दर्जा नहीं दिया जाता और उसे तुरंत मौत के घाट नहीं उतारा जाता, तब तक आतंकवाद पुष्पित, पल्लवित होता रहेगा॥
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी ,
ReplyDeleteआपका कहना बिलकुल सही है....लेकिन सवाल है इसे कौन सुलझाएगा.?
पूनम
शास्त्री जी सही बात सौ टके
ReplyDeleteपंकज
Mera bhi yahi manana hai. aatankion ke khilaf jald aur sakth kadam uthane chahiye.
ReplyDeleterhaul ko ashirwad dene ke lye apka abhaar
सौ फीसदी खरी बात.. हैपी ब्लॉगिंग
ReplyDeletebilkul sahi baat hai ji...
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने और अब जागने की जरुरत है।
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी,
ReplyDeleteआपका उठाया प्रश्न और तर्क सभी जायज है, फिर नाजायज क्या, कहने की जरूरत नहीं, हर कोई समझता है.
आपके लेख में जो एक बात छूट गई, वो ये कि अफज़ल भाई, जिन्हें "संसद गोली कांड" में भले ही देर-सबेर, पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा मुक़र्रर की गयी थी, फिर भी "आतंकवाद और बर्दाश्त नहीं करेंगें", आतंकवादी किसी भी कीमत पर छोडे नहीं जायेंगें" आदि जुमले प्रायः प्रयोग करने वाले आखिर आज तक सुप्रीम कोर्ट की सजा को अमली जमा क्यों न पहुंचा सके, छोटे- मोटे अपराधियों की फांसी की सजा तो मुक़र्रर होने पर रहम की सुनवाई के लिए उसे जिन्दा तो नहीं रखा जाता, फिर अफज़ल गुरू के साथ क्यों.
सरकार को इस पर तुरत -फुरत फैसले लेने से, आपातकालीन मीटिंग बुला कर फैसला करने से क्या जनता या देश की सुप्रीम कोर्ट रोक रही है, या कुछ और..........ज्वलंत प्रश्न है.
जैसे कंधार का भूत आज भी गाहे-बगाहे प्रश्न उठता है, आने वाली पीढियां इस पर भी प्रश्न उठायेंगी, और कुछ तब भी इसे हमारे वर्तमान नेताओं (जो उस समय पूर्व हो चुके होंगें)के इन कृत्यों को आदर्श की तरह पेश करते हुए इससे भी ज्यादा गलत कर्म करते पाए जायेंगे, शायद इसमें तनिक भी संदेह नहीं..............जैसा बोया है , शायद वैसा या उससे भी बुरा काटना पड़ेगा.
सोंचे, अगर अफज़ल गुरू की योजना जांबाज सुरक्षा कर्मी यदि शहीद होकर भी विफल न कर पते, तो शायद उस समय संसद में मौजूद कई सांसद भी वर्तमान में शहीद कहला रहे होते..............और उनके परिवार के प्रतिनिधि क्या सजा की पेंडेंसी बर्दाश्त कर पाते?...............
आपका प्रश्न इतना ज्वलंत था कि टिपण्णी कुछ ज्यादा ही लम्बी हो गई.
चन्द्र मोहन गुप्त