आज स्वामी दयानन्द बोधरात्रि है! शिवरात्रि को ही बालक मूलशंकर को बोध हुआ था! परम शैव भक्त कर्षन जी तिवारी के घर टंकारा गुजरात में बालक मूल शंकर का जन्म हुआ था! शिव भक्त होने के कारण इस बालक ने भी शिवरात्रि का व्रत रखा था! रात्रि में शिव मन्दिर में बालक मूलशंकर आखों पर पानी के छींटे डाल-डाल कर जगता रहा कि आज सच्चे शिव के साक्षात् दर्शन हो जायेंगे! आधी रात के पश्चात जब सब भक्त जन सो रहे थे तो कुछ चूहे शिव की पिण्डी पर चढ़कर प्रसाद खाने लगे और वहीं पर विष्टा भी करने लगे! यह देखकर मूलशंकर को बोध हुआ! उन्होंने कहा कि सच्चा शिव तो कोई और ही है! यह शिव जब अपनी रक्षा भी नही कर सकता तो जग का कल्याण कैसे करेगा? यह कह कर उन्होंने व्रत तोड़ दिया और सच्चे शिव की खोज में निकल पड़े! हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने कुरीतियों का खण्डन किया और सत्य सनातन वैदिक धर्म का प्रचार किया! वेदों का महाभाष्य किया तथा दुनिया को सत्य धर्म का मार्ग बताया! महर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन! |
महर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!
ReplyDeletemeri taraf se bhi naman guru ji..
ReplyDeleteहम तो आर्य समाज के मानने वाले हैं , इसलिए हवन आदि में विश्वास रखते हैं।
ReplyDeleteमहर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!
बहुत अच्छी बात बताई है!
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"महाशिवरात्रि पर आपके लिए हार्दिक शुभकामनाएँ!"
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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा!"
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संपादक : सरस पायस
महर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!
ReplyDeleteऔर एक राज खोलूं
ReplyDeleteमैं भी कुछ इस विषय पर बोलूं
वही चूहे अब माउस बनकर आ गए हैं
कंप्यूटर रूपी शिव पर धमाल मचा रहे हैं
और हम चूहे को अपनी आदत बना रहे हैं
आदत यह अच्छी है
चूहा सिर्फ चूहा नहीं रहा है कभी
यह प्रतीक है सच्चा
बना रहेगा सदा।
महर्षि दयानन्द सरस्वती को मेरा भी नमन
ReplyDeleteमाननीय ,
ReplyDeleteजय हिंद
महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर यह
शिवस्त्रोत
नमामि शमीशान निर्वाण रूपं
विभुं व्यापकं ब्रम्ह्वेद स्वरूपं
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाश माकाश वासं भजेयम
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं
गिराज्ञान गोतीत मीशं गिरीशं
करालं महाकाल कालं कृपालं
गुणागार संसार पारं नतोहं
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं .
मनोभूति कोटि प्रभा श्री शरीरं
स्फुरंमौली कल्लो लीनिचार गंगा
लसद्भाल बालेन्दु कंठे भुजंगा
चलत्कुण्डलं भू सुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननम नीलकंठं दयालं
म्रिगाधीश चर्माम्बरम मुंडमालं
प्रियम कंकरम सर्व नाथं भजामि
प्रचंद्म प्रकिष्ट्म प्रगल्भम परेशं
अखंडम अजम भानु कोटि प्रकाशम
त्रयः शूल निर्मूलनम शूलपाणीम
भजेयम भवानी पतिम भावगम्यं
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्ज्नानंद दाता पुरारी
चिदानंद संदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी
न यावत उमानाथ पादार विन्दम
भजंतीह लोके परे वा नाराणं
न तावत सुखं शान्ति संताप नाशं
प्रभो पाहि आपन्न मामीश शम्भो .
महर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!
ReplyDeleteआदरणीय सर, महर्षि दयानन्द सरस्वती जी के बारे में बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने । हार्दिक शुभकामनायें। पूनम
ReplyDeleteमहर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!
ReplyDeleteमेरा भी शत शत नमन है इस पुन्यात्मा को।धन्यवाद्
ReplyDeleteमेरी तरफ से भी शत्-शत् नमन.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा !!
ReplyDeleteपहली बार आया.अब बार-बार होगा आना....
महर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!
ReplyDelete.लोग कहते हैं मूर्ति पूजा से ईश्वर का ध्यान लगाना आसान होता है, चलो एक बार को मान भी लें किन्तु इस से देश का नुक्सान अधिक होता है जैसे मूर्ति पूजा के कारण हिन्दू अनेक सम्प्रदायों में विभक्त हो गया है, इस जाति-व्यवस्था ऊंच-नीच आदि सामाजिक दोष भी मंदिरों के पंडो ने अपने हित के लिये फैलाये हैं
ReplyDeleteमहर्षि दयानन्द सरस्वती को शत्-शत् नमन!
बहुत कम शब्दों में अच्छी जानकारी दी है आपने. धन्यवाद.
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