"ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर। जरा-जरा सी बात पर, अपने बनते गैर।।" 32 वर्ष पहले की बात है। हमारे पड़ोस में उन दिनों अपने एक स्वजातीय की किराने की दूकान थी। उस समय उनकी दूकान में प्रतिदिन 15 से 20 हजार रुपये तक की बिक्री होती थी। समय बदला और धीरे-धीरे उनकी दुकानदारी कम होती गई। अब हालात यह थे कि लेनदारों के साथ उनकी तू-तू, मैं-मैं भी होने लगी थी। हमने उनकी बैंक लीमिट में गारण्टर के रूप में हस्ताक्षर किये हुए थे। यह देखकर हमारे कान खड़े होने लगे थे। एक दिन हमने उनसे पूछा- "भाई साहब क्या बात है? लोग आजकल आपसे अक्सर तू-तू, मैं-मैं क्यों करने लगे हैं?" बस इसी बात पर वो हमसे नाराज हो गये। हमने बैंक से उनकी गारण्टी वापिस ले ली। इसका असर यह हुआ कि उनसे बोल-चाल भी बन्द हो गई। एक दिन किसी मीटिंग में उनके पास ही बैठना पड़ा। सिर्फ हाँ-हूँ में बातें होने लगी। आखिर हमने कह ही दिया कि जितने दिन हमने आपकी गारण्टी रखी उतने दिन का तो उपकार मानिए। लकिन उपकार और इस युग में! यह तो ऐसा था जैसे कि सरदारों के मुहल्लों में नाई की दूकान! अब तो गुटबन्दी शुरू हो गई। उनका एक-आध चमचा देख लेने की धमकी भी दे गया। हमें तो कोई अन्तर नही पड़ा लेकिन कालान्तर में उनकी दुकानदारी चौपट हो गई! अगर आप भी इस चमचागिरि से ग्रस्त हैं तो समय की नजाकत को पहचानते हुए चमचों से दूर रहने की कोशिश कीजिए! यही सुखी रहने का रहस्य है! "कबिरा इस संसार में, चमचों की भरमार। चमचे ही मझधार में, गुम करते पतवार।।" |
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Wednesday, 14 April 2010
“चमचों की तो यहाँ भी भरमार है”
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शास्त्री जी, सत्य वचन! यहाँ भी आधे से अधिक लोगो की दुकानदारी सिर्फ चमचागिरी के बूते पे चल रही है.....
ReplyDeleteशास्त्री जी...बिलकुल सही कहा आपने...
ReplyDeleteबढ़िया...सीख देता संस्मरण
यथार्थ लेखन।
ReplyDeleteblogjagat ke liye bhi ek katu satya hai....
ReplyDelete;)
सीख तो अच्छी है..संदर्भ ज्ञात न हो पाया.
ReplyDeletesatya vachan...
ReplyDeletergds,
surender
http://shayarichawla.blogspot.com/
सुन्दर प्रसंग लेकिन चमचों वाली बात जबरदस्ती घुसाई गई सी लगती है. घटिया लेखन. (देखिये मैं बढ़िया कहता तो आपका चमचा कहलाता.)
ReplyDeleteयह तो नेकी करके कुएं में डालने वाली बात है जी बेचारे चमचा को जबरन परेशान कर रहे हैं आप । तभी तो चमचा आपको देख लेने की धमकी दे गया है ।
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने..............अच्छी सीख देता संस्मरण
ReplyDeleteबढ़िया संस्मरण....बिना चमचागिरी के आज कल कहीं दाल गलती है???????????
ReplyDeleteसंदेशात्मक पोस्ट
बढ़िया ! बिलकुल सही कहा आपने !
ReplyDeleteसत्यवचन शास्त्री जी , इसी लिए मैं तो सीधे ही करछा बनता हूँ, चमचा बिलकुल नहीं बनता
ReplyDeleteदुकानदारी कम क्यों हुई , ये नहीं बताया आपने ।
ReplyDeleteवैसे बुरा वक्त पड़ने पर साथ कौन रहता है ।
दोहे से शुरुआत है, दोहे से ही अंत!
ReplyDeleteछुपी हुई इस पोस्ट में, महिमा बहुत अनंत!
बिलकुल सही कहा है.... आपने ......
ReplyDeleteयथार्थ लेखन . सीख देता संस्मरण.
ReplyDeleteaajkal chamche dhundhe nahi milte ,aap keh rahe hain ki bharmaar hai?
ReplyDeleteaajkal 'nindak' milte hain nindak..
Read your blog and it forced me to accept that yes this world is full of "Chamchas" specially indian politics and government offices. We cannot deny for private organisations also.
ReplyDeleteSeedhi saral bhasha aur andaaz me pateki baat bata gaye aap!
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