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Friday, 19 February 2010

“दो सौ रुपये दीजिए! सम्मान लीजिए!!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)

“तस्कर साहित्यकार”


कुछ दिन पूर्व मेरे पास एक जुगाड़ू कवि आये।
बोले- “मान्यवर! अपना एक फोटो दे दीजिए!”
मैंने पूछा- “क्या करोगे?”
कहने लगे- “आपको बाल साहित्य के पुरस्कार से सम्मानित करना है! मैं एक कार्यक्रम करा रहा हूँ। उसमें केवल उन्हीं को सम्मानित किया जायेगा जो दो सौ रुपये की रसीद कटावायेंगे।”
मैंने कहा- “कार्यक्रम की रूपरेखा बताइए!”
उन्होंने बताना शुरू किया-“7-8 महीने पूर्व धनानन्द प्रकाश की पत्नी की डैथ हुई थी, वो उनकी स्मृति में पुरस्कारों का व्यय वहन कर रहे हैं। एक उद्योगपति ने खाने-रहने और वेन्यू की व्यवस्था कर दी है!  इसके अलावा जनरल चन्दा-उगाही भी करेंगे। ”
मैंने कहा- “मित्रवर! दान के नाम पर तो हजार-पाँच सौ रुपये दे सकता हूँ। लेकिन पुरस्कार खरीदने के लिए दो सौ रुपये मेरे पास नही हैं।”
अच्छा एक बात बताइए- “पुरस्कार और रहने खाने की व्यवस्था तो मुफ्त में हो रही है तो दान-चन्दा और पुरस्कार के एवज में 200 रुपये क्यों माँग रहे हो?”
अब वो बुरा सा मुँह बना कर बोले- “अरे यार! क्या मैं किसी के बाप का नौकर हूँ? आखिर मुझे भी तो पारिश्रमिक चाहिए!”
जानना चाहते हो इन साहित्यकारों को क्या कहते हैं?
इनके लिए तो एक ही नाम है-

“तस्कर साहित्यकार!”

27 comments:

  1. हा हा हा"तस्कर साहि्त्यकार"
    नामकरण अच्छा किया शास्त्री जी।
    राम-राम

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  2. बढ़िया नाम दिया है ऐसे साहित्यकारों को....

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  3. मौकापरस्त लोगो की भरमार है शास्त्री जी !

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  4. तस्‍कर नहीं

    बहिष्‍कृत किया जाये

    ऐसे असाहित्‍यकार।

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  5. अच्छी पोल खोली शास्री जी...

    जय हिंद...

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  6. आज के युग में सबकुछ धंघा है .. बहुत दिनों से सुनती आ रही हूं इस तरह की बातें !!

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  7. हद हो गई...सम्मान भी बिकने लगा अब..

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  8. सबसे पहले जाकिर भाई को स्वाइन फ्लू से बचाने का प्रयत्न किया जाना चाहिये. यह तो विदेशों में भी चलता है, मुझे तो लग रहा था कि भारत कहीं पिछड़ न जाये.

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  9. तस्कर साहित्यकार :) हा हा हा...इनका बिल्कुल सही नामकरण किया आपने शास्त्री जी...

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  10. सम्मान पाने का आसान तरीका...:))

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  11. आज का समय कुछ ऎसा ही चल रहा है जहां सब कुछ पेसॊ से ही तोला जाता है "तस्कर साहि्त्यकार" "नाईस" नाम

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  12. तस्कर साहित्यकार!..हा हा!! आपका साधुवाद कि फिर भी इन्हें साहित्यकार तो कहा ही!!

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  13. "तस्कर साहि्त्यकार"

    बहुत सही नाम दिया है , शास्त्री जी।

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  14. bilkul sahi naam diya hai..........vaise asli naam bhi bata dena chahiye aise logon ko to benakaab jaroor karna chahiye.

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  15. Sahitya ka aisa vyapaar ....sahityakaro ka aapamaan hai! kintu main bhi aapki bhalmansata ki kayal hui jaati hun ki aapane aise Taskaro ko bhi Sahityakar kaha ....Aabhar!!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

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  16. इनकि भी कमी नही है, यह प्राणी हर जगह पाया जाता है.

    रामराम.

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  17. लेकिन एक बात है...यह तस्कर है सत्यवादी वर्ना गुमराह भी कर सकता था :)

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  18. शास्त्री जी!
    आपने "तस्कर साहित्यकार" के बारे में
    जो सच सबको बताया है,
    उसके लिए हम सब आपके आभारी हैं!
    इस काम को आपसे अधिक
    अच्छे ढंग से कोई दूसरा नहीं कर सकता था!
    --
    रजनीश भाई!
    आपको भी तो पता है!
    फिर पूछने का नाटक क्यों कर रहे हैं?

    --
    कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
    नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
    --
    संपादक : सरस पायस

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  19. "तस्कर साहि्त्यकार"

    बहुत सही नाम दिया है......

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  20. बढिया बत्ती दी शास्त्री जी आपने।प्रणाम करता हूं आपको।आजकल पुरस्कार दिये नही बल्कि लिये जाते हैं ऐसे ही रसीद कटा-कटा कर्।पोल खोल कर बाज़ा बजा दिया आपने।

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  21. होली में मारा करारा....कटाक्ष!

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  22. मयंक जी आपने सही कहा है ऐसे लोगों के कारन ही सहित्य की दुर्गति हो रही है एक दूसरा रिवाज आपसे पैसे ले कर अपनी किताब मे आपकी एक अध कविता छाप देना और उस किताब की बिक्री से अपनी जेब भरन ये भी आजक्ल हो रहा है सब कवियों से पैसे ऐँठ कर और रचनायें ले कर कमाई का साधन बना रहे हैं ऐसे लोग। धन्यवाद इस जानकारी के लिये

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  23. aisa bhee hota hai......?
    stabdh ..................

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  24. मयंक जी
    हालत को बखूबी बयां किया आपने........पुरुस्कारों ने साहित्य क्षेत्र में जो गंध फैलाई है उससे बचना ही साहित्यकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है......

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