“तस्कर साहित्यकार”
कुछ दिन पूर्व मेरे पास एक जुगाड़ू कवि आये। बोले- “मान्यवर! अपना एक फोटो दे दीजिए!” मैंने पूछा- “क्या करोगे?” कहने लगे- “आपको बाल साहित्य के पुरस्कार से सम्मानित करना है! मैं एक कार्यक्रम करा रहा हूँ। उसमें केवल उन्हीं को सम्मानित किया जायेगा जो दो सौ रुपये की रसीद कटावायेंगे।” मैंने कहा- “कार्यक्रम की रूपरेखा बताइए!” उन्होंने बताना शुरू किया-“7-8 महीने पूर्व धनानन्द प्रकाश की पत्नी की डैथ हुई थी, वो उनकी स्मृति में पुरस्कारों का व्यय वहन कर रहे हैं। एक उद्योगपति ने खाने-रहने और वेन्यू की व्यवस्था कर दी है! इसके अलावा जनरल चन्दा-उगाही भी करेंगे। ” मैंने कहा- “मित्रवर! दान के नाम पर तो हजार-पाँच सौ रुपये दे सकता हूँ। लेकिन पुरस्कार खरीदने के लिए दो सौ रुपये मेरे पास नही हैं।” अच्छा एक बात बताइए- “पुरस्कार और रहने खाने की व्यवस्था तो मुफ्त में हो रही है तो दान-चन्दा और पुरस्कार के एवज में 200 रुपये क्यों माँग रहे हो?” अब वो बुरा सा मुँह बना कर बोले- “अरे यार! क्या मैं किसी के बाप का नौकर हूँ? आखिर मुझे भी तो पारिश्रमिक चाहिए!” जानना चाहते हो इन साहित्यकारों को क्या कहते हैं? इनके लिए तो एक ही नाम है- “तस्कर साहित्यकार!” |
हा हा हा"तस्कर साहि्त्यकार"
ReplyDeleteनामकरण अच्छा किया शास्त्री जी।
राम-राम
बढ़िया नाम दिया है ऐसे साहित्यकारों को....
ReplyDeleteउनका असली नाम क्यों नहीं छापा सरकार?
ReplyDelete--------
संवाद सम्मान 2009
जाकिर भाई को स्वाईन फ्लू हो गया?
मौकापरस्त लोगो की भरमार है शास्त्री जी !
ReplyDeleteतस्कर नहीं
ReplyDeleteबहिष्कृत किया जाये
ऐसे असाहित्यकार।
अच्छी पोल खोली शास्री जी...
ReplyDeleteजय हिंद...
आज के युग में सबकुछ धंघा है .. बहुत दिनों से सुनती आ रही हूं इस तरह की बातें !!
ReplyDeleteहद हो गई...सम्मान भी बिकने लगा अब..
ReplyDeleteसबसे पहले जाकिर भाई को स्वाइन फ्लू से बचाने का प्रयत्न किया जाना चाहिये. यह तो विदेशों में भी चलता है, मुझे तो लग रहा था कि भारत कहीं पिछड़ न जाये.
ReplyDeleteतस्कर साहित्यकार :) हा हा हा...इनका बिल्कुल सही नामकरण किया आपने शास्त्री जी...
ReplyDeleteसम्मान पाने का आसान तरीका...:))
ReplyDeletepuraskaaron ka haal bhi aisa ho chala hai !
ReplyDeleteआज का समय कुछ ऎसा ही चल रहा है जहां सब कुछ पेसॊ से ही तोला जाता है "तस्कर साहि्त्यकार" "नाईस" नाम
ReplyDeleteतस्कर साहित्यकार!..हा हा!! आपका साधुवाद कि फिर भी इन्हें साहित्यकार तो कहा ही!!
ReplyDelete"तस्कर साहि्त्यकार"
ReplyDeleteबहुत सही नाम दिया है , शास्त्री जी।
bilkul sahi naam diya hai..........vaise asli naam bhi bata dena chahiye aise logon ko to benakaab jaroor karna chahiye.
ReplyDeleteSahitya ka aisa vyapaar ....sahityakaro ka aapamaan hai! kintu main bhi aapki bhalmansata ki kayal hui jaati hun ki aapane aise Taskaro ko bhi Sahityakar kaha ....Aabhar!!
ReplyDeletehttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
yahi ho raha hai.nice
ReplyDeleteइनकि भी कमी नही है, यह प्राणी हर जगह पाया जाता है.
ReplyDeleteरामराम.
लेकिन एक बात है...यह तस्कर है सत्यवादी वर्ना गुमराह भी कर सकता था :)
ReplyDeleteशास्त्री जी!
ReplyDeleteआपने "तस्कर साहित्यकार" के बारे में
जो सच सबको बताया है,
उसके लिए हम सब आपके आभारी हैं!
इस काम को आपसे अधिक
अच्छे ढंग से कोई दूसरा नहीं कर सकता था!
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रजनीश भाई!
आपको भी तो पता है!
फिर पूछने का नाटक क्यों कर रहे हैं?
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कह रहीं बालियाँ गेहूँ की - "वसंत फिर आता है - मेरे लिए,
नवसुर में कोयल गाता है - मीठा-मीठा-मीठा! "
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संपादक : सरस पायस
"तस्कर साहि्त्यकार"
ReplyDeleteबहुत सही नाम दिया है......
बढिया बत्ती दी शास्त्री जी आपने।प्रणाम करता हूं आपको।आजकल पुरस्कार दिये नही बल्कि लिये जाते हैं ऐसे ही रसीद कटा-कटा कर्।पोल खोल कर बाज़ा बजा दिया आपने।
ReplyDeleteहोली में मारा करारा....कटाक्ष!
ReplyDeleteमयंक जी आपने सही कहा है ऐसे लोगों के कारन ही सहित्य की दुर्गति हो रही है एक दूसरा रिवाज आपसे पैसे ले कर अपनी किताब मे आपकी एक अध कविता छाप देना और उस किताब की बिक्री से अपनी जेब भरन ये भी आजक्ल हो रहा है सब कवियों से पैसे ऐँठ कर और रचनायें ले कर कमाई का साधन बना रहे हैं ऐसे लोग। धन्यवाद इस जानकारी के लिये
ReplyDeleteaisa bhee hota hai......?
ReplyDeletestabdh ..................
मयंक जी
ReplyDeleteहालत को बखूबी बयां किया आपने........पुरुस्कारों ने साहित्य क्षेत्र में जो गंध फैलाई है उससे बचना ही साहित्यकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है......