दो दिन पूर्व एक पोस्ट लगाई थी- ‘‘अँगूठा छाप’’ इस पोस्ट पर आई टिप्पणियों में कुछ मित्रों ने मुझे श्रमिक विरोधी प्रमाणित करने में कोई-कोर कसर नही छोड़ी। जबकि इस प्रविष्टी में मेरा कहने का यह उद्देश्य था कि पढ़े-लिखों की हमारे देश में कितनी दयनीय स्थिति है। जहाँ तक श्रमिकों का प्रश्न है मैं यह दावे के साथ कह सकता हूँ कि आज हमारे देश में मजदूर खुशहाल है। इस विषय में मेरी कई श्रमिकों से बात हुई है। सबने यही स्वीकार किया है कि वर्तमान समय में बिना पढ़े-लिखे श्रमिक आज चैन की वंशी बजा रहे हैं। रही बात एक-दो प्रतिशत मजदूरों की, उनमें केवल वो ही दुखी हैं जो कामचोर है। परिश्रमी लोगों को प्रतिदिन काम मिल ही जाता है। लेकिन पोस्ट ग्रेजुएशन करने के उपरान्त भी आज पढ़े लिखे लोगों को 1500/- रु0 प्रतिमाह की नौकरी भी नही मिलती है। आप विचार करें कि उनके दिलों पर क्या गुजरती होगी जिन्होंने उच्च-शिक्षा प्राप्त करने के लिए कितने ही रुपये बरबाद किये होंगे? दूसरी ओर शिक्षा पर बिना कोई पैसा व्यय किये मजदूर आज 4-5 हजार रुपये महीना आराम से कमा रहे हैं और अपने परिवार की गुजर-बसर कर रहे हैं। श्रमिक खुशहाल हों यह तो अच्छी बात है मगर शिक्षित भी तो खुशहाल होने ही चाहिएँ। शासन में बैठे लोगों को इसकी कोई चिन्ता ही नही है। शासन-प्रशासन तो इतना भ्रष्ट हो चुका है कि वो सीधे-सीधे ही कहता है - ‘‘यदि नौकरी चाहिए तो दो साल के वेतन का पैसा एडवांस रिश्वत में दो और नौकरी खरीद लो।’’ यानि नौकरी अब खरीदी जाने लगी है। यदि गाँठ में माल नही है तो नौकरी की परिकल्पना ही बेमानी है। ऐसे में कौन अपने पाल्यों को शिक्षित करना पसन्द करेगा? यह विचारणीय प्रश्न है। |
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Sunday, 20 September 2009
‘‘शिक्षित बेरोजगार’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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सही लिखा आपने , बेरोजगारी तो सिर्फ पढ़े लिखों के लिए है | अनपढ़ श्रमिक तो खेत व कारखाना मालिको के लिए अवतार का रूप लेता जा रहा है | गांवों में नरेगा के चलते किसानो को श्रमिक नहीं मिलते | शहरो में कारखानों में भी श्रमिको का अकाल रहने के कारण कारखाना मालिक श्रमिको के नखरे सहने को मजबूर है | आज का श्रमिक तो राजा है जी राजा |
ReplyDeleteसहमत हूँ आपके बातो से।
ReplyDeleteआपके विचार से पूर्ण सहमत हूँ
ReplyDeleteआपका आभार
ऐसे विषयों पर आलेख और आने चाहियें.........
अच्छा लिखा है आपने कुछ बाते ऐसी भी है जो आदमी को शिक्षित तो बना देती है लेकिन ......
ReplyDeleteआपके विचार से पूर्ण सहमत हूँ
ReplyDeleteबेरोजगारी तो सिर्फ पढ़े लिखों के लिए है |
शिक्षित लोगों की समस्या ये है की किसी इंटरव्यू में तो अंडर क्वालिफाइड रह जाते है और किसी में ओवर क्वालिफाइड. अब जॉब मिले तो कैसे. लेकिन कॉम्पिटिशन का जमाना है, तो उसके लिए तो तैयार रहना पड़ेगा.
ReplyDeleteBat to ekdam sahi kahi apne.
ReplyDeleteशारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनायें !!
हमारे नए ब्लॉग "उत्सव के रंग" पर आपका स्वागत है. अपनी प्रतिक्रियाओं से हमारा हौसला बढायें तो ख़ुशी होगी.
"बेरोजगारी सिर्फ पढ़े लिखों के लिए है"
ReplyDeleteआप ने एकदम दुरुस्त फ़रमाया है...बहुत बहुत बधाई...
सही कहा बेरोजगारी तो सिर्फ़ पढ़े लिखो के लिये है ।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी,
ReplyDeleteमैं भी आपकी बातों से पूरी तरह से सहमत हूं। आपको नवरात्र की हार्दिक बधाई।
पूनम
आपको नवरात्र की ढेर सारी शुभकामना। कामना है, आपकी सभी मनोकामना पूरी हो।
ReplyDeletebahut he acha lekh hai shastri ji...
ReplyDeletevichaarniya baat...
aapne bilkul sahi bat kahi hai .yha benglor me khana bnane vali mhilaye 7 se 8 hjar rupya mheena kmati hai .aur ak shikhsika 2 se 3 hjar rpye kmati hai .khana bnane vali mhila ke ghar me lgbhag har vykti kmata hai aur uka rhn sahn ka khrcha bhi ghro se hi nikal jata hai .aur bechari shikshika ko smaj me apna stets bhi rakhna hota hai is mnhgai me .
ReplyDelete"बेरोजगारी सिर्फ पढ़े लिखों के लिए है"
ReplyDeleteआप ने एकदम दुरुस्त फ़रमाया है...
आप ने यह भी बिलकुल सही कहा कि
"यदि गाँठ में माल नही है तो नौकरी की परिकल्पना ही बेमानी है। ऐसे में कौन अपने पाल्यों को शिक्षित कराना चाहेगा?" पर फिर भी लोग गाँठ की कमी लगा -लगा कर ही अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों में भेज रहे हैं........यह भी सच है.......
सारगर्भित लेख और विचारणीय प्रश्न के लिए आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
bilkul sahi kaha aapne
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