“पहाड़ी मनीहार”
आज सुबह–सुबह मेरे आयुर्वेदिक चिकित्सालय में गठिया-वात का इलाज कराने के लिए जाहिद हुसैन पधारे!
जाहिद हुसैन जब अपनी औषधि ले चुके तो मुझसे बोले - “सर! आप देसी हैं या पहाड़ी हैं।”
मैंने उत्तर दिया - “35 साल से ज्यादा समय से तो यहीँ पहाड़ की तराई में रह रहा हूँ। फिर यह देशी-पहाड़ी की बात कहाँ से आ गई?”
अब मुझे भी जाहिद हुसैन के बारे में जानने की उत्सुकता हुई! मैंने इनसे पूछा- “अच्छा अब तुम यह बतलाओ कि तुम देशी हो या पहाड़ी।”
जाहिद हुसैन ने कहा- “सर जी! हम तो पहाड़ी हैं।”
अब चौंकने की बारी मेरी थी।
मैंने इनसे पूछा- “अच्छा तो यह बतलाइए कि तुम्हारे घर में आपस में सब लोग पहाड़ी भाषा में बात करते हैं या मैदानी भाषा में।”
जाहिद हुसैन ने बतलाया- “सर जी! हम लोग घर में आपस में पहाड़ी भाषा में बात-चीत करते हैं।”
मैंने पूछा- “तो क्या तुम मूल निवासी पहाड़ के ही हो?”
जाहिद हुसैन ने कहा- “सर जी! हमारे पुरखे यानि 5-7 पीढ़ी पहले के लोग राजस्थान के रहने वाले थे। जो बाद में दिल्ली में आकर बस गये थे। आपने गली मनीहारान का नाम सुना होगा। आज भी हमार बहुत से रिश्तेदार वहीं रहते हैं।
कुमाऊँ के चन्द राजा की शादी राजस्थान में हुई थी। उनकी दुल्हिन रानी रानी साहिबा को चूड़ी पहनाने के लिए मनीहार के रूप में हम लोग साथ आये थे।”
मैंने पूछा कि तुम्हारे पूर्वज चूड़ी पहनाने के बाद वापिस राजस्तान या दिल्ली क्यों नहीं चले गये थे?
जाहिद हुसैन ने कहा- “सर जी! राजे-महाराजों की बात आप क्या पूछते हो? रानी को हमारे पुरखे सुबह को चूड़ियाँ पहनाते थे रात को रनिवास में राजा के साथ रास लीला में रानी की चूड़ियाँ टूट जाती थीं तो सुबह को फिर रानी नई चूड़ियाँ पहनती थी।”
उसने आगे कहा- “इसलिए तत्कालीन चन्द राजा ने स्थायीरूप से कुछ मनीहारों को दिल्ली से पहाड़ में बुला लिया और उनके रहने के लिए एक गाँव और उसके आस-पास का इलाका खेती करने के लिए दे दिया।”
मैंने पूछा- “जाहिद हुसैन! क्या आज भी पहाड़ में आपका कोई गाँव है?”
जाहिद हुसैन ने फरमाया- “जी सर! चम्पावत से 7 किमी आगे लोहाघाट की ओर पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राज मार्ग-125 पर “खूना मलिक” के नाम से एक गाँव है। वही हमारा प्राचीन पहाड़ी गाँव है। जिसमें आज भी केवल मनीहार लोग ही निवास करते हैं ।”
अच्छा जाहिद हुसैन यह बतलाओ कि टनकपुर के पास “मनीहार-गोठ” के नाम से जो आपका गाँव है उसका इतिहास क्या है?
जाहिद हुसैन ने कहा- “सर जी! पहले पहाड़ों पर आने-जाने के साधन नहीं थे। इसलिए हम लोग जब अपने मूल निवास राजस्थान जाया करते थे तो पहाड़ से नीचे मैदान में आने पर 1-2 दिन यहाँ आराम किया करते थे। बाद में इसका नाम मनीहार-गोठ पड़ गया और इसके आस-पास की भूमि पर हमारे पुरखे खेती करने लगे। आज भी हर एक मनीहार परिवार की भूमि और घर “मनीहार-गोठ” और “खूना मलिक” में भी है।”
"इसीलिए सर! मैंने आपको बतलाया है कि हम लोग पहाड़ी हैं और इस्लाम मज़हब को मानने वाले हैं।” |
पहाड़ी मनिहारों की बात पहली बार जानने को मिली
ReplyDeleteपहाड़ी मनिहार के बारे में जानकर बहुत बढ़िया लगा! बहुत ही सुन्दरता से आपने प्रस्तुत किया है! दिलचस्प लगा!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति .. बातों ही बातों में इतिहास की एक परत खुलकर सामने आयी !!
ReplyDeleteये तो बहुत अच्छी और नयी जानकारी प्राप्त हुयी………………आभार्।
ReplyDeleteMaloomaat mili lekin padhte samay laga jaise koyi kahani padh rahe hon!
ReplyDeleteखूना मलिक और मनिहार गोठ के बारे में पहली बार सुना. पहाड़ के मुसलमान पहाड़ी बोली में बात चीत करते हुए मिलना आम बात है.पहाड़ी- देसी का भेद पहाड़ों में होता है. कुछ लोग पीढ़ियों से पहाड़ों में रहने के बावजूद देसी हैं क्योंकि उन्होंने पहाडी रीति रिवाज शादी ब्याह आदि की पहाड़ी रीति नहीं अपनाई है.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा इन्हें जान कर।
ReplyDeleteएक सरस शैली में लिखी रोचक प्रस्तुति।
अच्छी प्रस्तुति,
ReplyDeleteयहाँ भी पधारें :-
अकेला कलम
Satya`s Blog
सहज शब्दों में किया गया वार्तालाप, इस कदर दिलचस्प हो गया कि जब तक पूरा पढ़ नहीं लिया, रूका ही नहीं गया, बधाई, इस सुन्दर लेखन को सलाम ।
ReplyDeleteएकदम नई और दिलचस्प जानकारी ।
ReplyDeleteआभार शास्त्री जी ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.............
ReplyDeleteजाहिद हुसैन जी से रोचक मुलाकात करवाने का शुक्रिया ...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति .. बातों ही बातों में इतिहास की एक परत खुलकर सामने आयी !
ReplyDeleteनई जानकारी मिली.
ReplyDeleteअगर यही जाहिद हुसैन कश्मीर के होते तो ना तो खुद को पहाडी कहते और ना भारतीय।
ReplyDeleteकुछ तो बात है उत्तराखण्ड और हिमाचल में। बडे गर्व से लोग कहते हैं कि म्यार पहाड।
बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट।
पहाड़ी मनिहारों के बारे में पढ़कर अच्छा लगा...यही तो हमारी विविधता है.
ReplyDelete________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
दिलचस्प प्रस्तुति...
ReplyDeleteउम्दा जानकारी !
ReplyDeleteपता ही नहीं लगा
ReplyDeleteकि कब शुरू हुई
और कब हो गई खत्म
ऐसे सिलसिलों को तो
जारी रहना चाहिए।
दिलचस्प
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