मुक्तकों का उपवन है "वसुन्धरा"
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इस सप्ताह में मुझे “वसुन्धरा” काव्यसंग्रह
की प्रति डाक से मिली थी। आज इसको बाँचने का समय मिला तो “वसुन्धरा” काव्यसंग्रह
के बारे में कुछ शब्द लिखने का प्रयासभर ही मैंने किया है।
रचनाकार कामेश्वर प्रसाद डिमरी जी से कभी मेरा साक्षात्कार
तो नहीं हुआ लेकिन पुस्तक के माध्यम से उनकी हिन्दी साहित्य के प्रति गहरी लगन देख
कर मेरा मन गदगद हो उठा। आज साहित्य जगत में कम ही लोग ऐसे हैं जिन्होंने वसुन्धरा
के बारे में अपनी लेखनी चलाई है।
इस
कृति के बारे में आदरणीय महेन्द्र प्रताप पाण्डेय नन्द लिखते हैं-
“साहित्यानन्द ब्रह्मानन्द का सरोवर है। यह उक्ति कामेश्वर प्रसाद डिमरी जी की रचनाकृति वसुन्धरा के अवलोकन तथा पठन के बाद समीचीन प्रतीत
होता है। हिन्दी साहित्याकाश में नक्षत्ररूपी कवियों की अधिकता से सभी परिचित हैं।
हिन्दी की सरलता ही बहुत लोगों को सर्जक बनाने का सत्कार्य करती है।
.....डिमरी जी के साहित्य में पुष्ट तार्किकता, ऐतिहासिकता,
सामाजिक विद्रूपता, समाज की विषमता, फैसन की उड़ान, पर्यावरणीय असंतुलन, मानव
सत्रांश का अगर जिक्र किया गया है तो तो वहीं उन समस्त समस्याओं का सरल सुझाव भी
कृति प्रदान करती है...।“
वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार सग़ीर अश़रफ़ ने अपने शुभाशीष
देते हुए पुस्तक के बारे में लिखा है-
“....इस बाजारवाद की भीड़ से पृथक पं. कामेश्वर प्रसाद डिमरी का
चतुर्थ काव्य संग्रह “वसुन्धरा” पूर्वरचित काव्यों की भाँति एक विषयान्तर्गत पर्यावरण व
प्रकृति को काव्य का आधार मान वर्तमान से आगत के शुभाशुभ से जन-मन को सचेत करने का
एक सफल प्रयास है...”
कवि कामेश्वर प्रसाद डिमरी ने अपने निवेदन में भी यह स्पष्ट किया है-
“वसुन्धरा काव्य वर्तमान के रूप-स्वरूप का प्रत्यक्ष दर्शन
है। इस पर मात्र चिन्ता नहीं चिन्तन की महती आवश्यकता है।.....ओजोन कवच दरक रहा है,
हम मात्र एक-दूसरे को चेता भर रहे हैं, चेत नहीं रहे हैं। आज इस चेतना को व्यवहार
में लाने की कोशिश करें तो शुभप्रभात की सुखद कल्पना साकार हो सकती है....।“
वसुन्धरा में छन्दों के माध्यम से कवि अपनी वेदना का स्वर
मुखरित करते हुए कहता हैं-
“सद्यजात ये शिशु अबोध,
है खेल रहा निज पोरों से,
काम-क्रोध अरु राग-द्वेष से,
दूर अभी तक औरों से।“
अपनी वसुन्धरा के बारे में कवि आगे कहता है-
“सकल तत्व की छाया-माया,
विधि-विरंची ये वसुधा है,
प्राची ने प्राण दिये जग को,
निशा में शीतल-शान्त सुधा है।“
रचनाकार के इस काव्य में कुछ
कालजयी मुक्तकों का भी समावेश है जो किसी भी परिवेश और काल में सटीक प्रतीत होते
हैं-
“निर्वसन नहीं कर पाये रिपु,
वह एक अकेली थी नारी,
निज कर ही हाँ हार रही,
आज द्रोपदी निज सारी।“
कवि देश के आचार्यों को आह्वान करते हुए कहता है-
“दहक रही पावन धरती,
रे! पाञ्चजन्य में प्राण भरो,
खींचे वल्गा श्रीसमर में-
ऐसा अर्जुन तैयार करो।“
पर्यावरण के प्रति अपनी चिन्ता
प्रकट करते हुए कवि कहता है-
“भाग्य धरा का किसने लूटा,
लुटा प्रकृति का भी यौवन,
सब नीड़-बसेरे मौन हुए,
निर्वसन हुए वन-उपवन।“
भारत के किरीट हिमालय के प्रति अपनी
वेदना प्रकट करते हुए कवि आगे लिखता है-
“भू-भारत का प्रथम प्रहरी-
यह भारत का उच्च भाल,
रजत मुकुट से महिमामंडित,
अरू हृदय था परम विशाल।“
...
“हार रहा है वहाँ हिमालय,
यहाँ तप-तापी थे तापस,
विकास पुरुष के सिंहनाद से,
है छाया कैसा यह आतस।“
परमात्मा से प्रार्थना करते हुए कवि
ने लिखा है-
“द्वार तुम्हारे हूँ आया,
अति व्याकुल हूँ स्वामी,
मैं बालक अति अज्ञानी,
करें क्षमा, सझ नादानी।“
और अन्तिम छन्द में कवि निवेदन करते
हुए कहता है-
“मात्र निवेदन बस इतना,
डम-डम का नाद न हो,
आस तुम्हीं, विश्वास तुम्हीं,
हो न हो, विवाद न हो।“
समीक्षा की दृष्टि से मैं कृति के बारे में इतना जरूर कहना चाहूँगा कि इस काव्य
संकलन में रोचकता, ओज और जिज्ञासा मणिकांचन संगम है। कृति पठनीय ही नही अपितु
संग्रहणीय भी है और कृति में सीधा काव्य का नैसर्गिक सौन्दर्य निहित है। जो पाठकों के हृदय पर सीधा असर करता है।
कामेश्वर प्रसाद डिमरी द्वारा रचित इस कृति को ग्लैक्सी
प्रिंटर्स विकासनगर (देहरादून) द्वारा मुद्रित किया गया है जिसका सर्वाधिकार स्वयं
कवि का ही है। हार्डबाइंडिंग वाली
इस कृति में 58 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य मात्र 100/- रुपये है। सहजपठनीय मोटे फॉंट के साथ प्रति पृष्ठ पर तीन-तीन
मुक्तकों को छापा गया है और अनावश्यकरूप से खाली स्थान छोड़कर कृति में कहीं भी
कागज की बर्बादी नही की गई है।
अन्त में इतना ही कहना चाहूँगा कि मुझे पूरा विश्वास है कि “वसुन्धरा” काव्यसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों में चेतना जगाने में सक्षम है। इसके
साथ ही मुझे आशा है कि वसुन्धरा काव्य संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय
सिद्ध होगा।
यह पुस्तक कामेश्वर प्रसाद डिमरी के पते विद्यापीठ मार्ग,
विकासनगर, जिला-देहरादून (उत्तराखण्ड) से प्राप्त की जा सकती है। रचनाकार से दूरभाष-(01360)251433
या मोबाइल नम्बर-9411721533 से भी सीधा सम्पर्क किया जा सकता है।
अपने सभी पाठकों को नववर्ष की शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार
टनकपुर-रोड, खटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
E-Mail .
roopchandrashastri@gmail.com
Website. http://uchcharan.blogspot.com/
फोन-(05943) 250129
मोबाइल-09368499921
ReplyDeleteअन्त में इतना ही कहना चाहूँगा कि मुझे पूरा विश्वास है कि “वसुन्धरा”काव्यसंग्रह (से) सभी वर्ग के पाठकों में चेतना जनाने(जगाने में ) में सक्षम है।
आभार इस स-हृदय समीक्षा के लिए .सुन्दर ,अर्थ पूर्ण ,नेहपूर्ण .
बहुत बढ़िया पुस्तक समीक्षा ..डिमरी जी को हार्दिक बधाई और प्रस्तुति हेतु आपका आभार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और विस्तृत समीक्षा की है।
ReplyDeleteबधाई।
प्रभावी !!
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!
आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़ )
बधाई हो
ReplyDelete---
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बढ़िया प्रस्तुति..
ReplyDeleteपरिचय हुआ। समुचित जानकारी मिली।
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteSMM PANEL
ReplyDeleteSmm Panel
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